Hindi, asked by Anahat, 1 year ago

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Anahat: atleast 5 points in Hindi

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Answered by swanand18
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आज समाज के हर तबके में यह आवाज उठने लगी है कि देश में नारी की दशा सुधरनी चाहिए। लेकिन कैसे? क्या पश्चिम के नक्शे कदम पर चलकर? क्या पश्चिम की महिलाएं वाकई आजाद हैं?


सद्‌गुरु: आज हम इस देश में एक विचित्र दशा में हैं। यह एक ऐसा देश है जहां हमने हमेशा नारीत्व को पूजा है। हम इस ग्रह को धरती माता कहते आए हैं – और देश के बारे में भी हमारा विचार नारीत्व से जुड़ा है – यह भारत माता है। यहां एक भी ऐसा गांव नहीं मिलेगा, जहाँ देवी या मां के रूप में नारीत्व को न पूजा जाता हो। इसके साथ ही, एक देश के रूप में, हमने महिलाओं को कई तरह से दूसरेे दर्जे का नागरिक मानना शुरु कर दिया है – कन्या भ्रूण हत्या आदि बातों को देख कर लगता है कि हम अपने लिए कन्याएँ नहीं चाहते।
इसे महिलाओं के खिलफ नहीं माना जाना चाहिए। बुनियादी समस्या यह है कि कुछ समय के बाद, लोगों के बीच किसी भी तरह का अंतर एक भेदभाव प्रक्रिया में बदल दिया जाता है। हम एक दूसरे के साथ जाति, पंथ, पंथ धर्म व संप्रदाय के नाम पर भेदभाव करते आए हैं, लेकिन लिंग के नाम पर होने वाला यह भेदभाव अपने-आप में सबसे बुरा है, क्योंकि इसे ठीक करने का कोई तरीका नहीं है। यह स्त्री-पुरुष की बात नहीं है, यह सोच से जुड़ी हुई बात है। कुछ लोग सोचते हैं कि ‘जो भी मुझसे अलग है, वह मेरा शत्रु है।’


अन्याय से न्याय की ओर
फिलहाल हम मौजूदा हालातों को देखकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं, और आज़ादी के बारे में हमारे विचार इसी प्रतिक्रया से बन रहे हैं। आज़ादी की समझ ऐसे नहीं बननी चाहिए। 
जब हम मौजूदा हालात के रिएक्शन में न्याय करने की कोशिश करते हैं, तो इससे हम केवल एक अलग तरह का अन्याय ही कर सकेंगे – यह हमें न्याय की ओर नहीं ले जाएगा। हमें जीवन को और अधिक गहराई से देखना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जो इस ग्रह पर सभी इंसानों के लिए लाभदायक हो सके। प्रकृति ने पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को कहीं अधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। उसे अगली पीढ़ी को तैयार करना है – यह कोई छोटी जिम्मेदारी नहीं है।
यह एक ऐसा देश है जहाँ पुरुष व स्त्रियाँ स्त्रियां जीवन के सभी क्षेत्रों में बराबरी का जीवन जीते आए थे, परंतु पिछले दो से ढाई हज़ार वर्षों के दौरान, हमने उस बराबरी को कहीं खो दिया। हम कई कारणों से बहुत ही विकृत समाज बन गए। उन कारणों को जानने से कोई लाभ नहीं, लेकिन देखना यह है कि इसका सुधार कैसे हो सकता है।


आज़ादी बस तकनीक की वजह से आई है
दुर्भाग्य से, आजादी के बारे में हमारे विचार जरुरत से ज्यादा पश्चिम से प्रभावित हैं, बल्कि पश्चिम से उधार लिया हुआ है। हमारे मन में यही बात बसी है कि जो भी पश्चिम से आया है, वही आधुनिक है। जबकि ऐसा नहीं है। पश्चिम में महिलाओं को जो आजादी मिली, उसकी वजह वहां के लोगों की सोच में बदलाव नहीं थी, उसकी वजह थी टेक्नोलाॅजी। आज आप टेक्नोलाॅजी की वजह से कहीं भी जा सकते हैं, कितनी भी दूर बात-चीत कर सकते हैं, संदेश भेज सकते हैं, क्योंकि अब कई बातों के लिए शारीरिक बल की जरुरत नहीं होती। अगर केवल तलवार के बल पर ही देश का शासन तय होता तो कोई महिला किसी देश का शासन नहीं संभालती। आज प्रजातंत्र है, जिसमें उसे भी किसी दूसरे व्यक्ति की तरह शासन चलाने के लिए चुना जा सकता है, यही वजह है कि कई देशों को महिला राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री मिलीं। इसलिए जिसे पश्चिम में जिसे आजादी कहा और समझा जाता है, उसे किसी मानसिक या वैचारिक बदलाव की वजह से नहीं पाया गया, यह सब तकनीकी प्रगति के कारण है।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत वही गलती नहीं करे, जो उन्होंने की। पश्चिम में दूसरी पीढ़ी की महिलाएँ बहुत खुश नहीं हैं। पहली पीढ़ी आजादी पाने के लिए लड़ी और उन्हें भौतिक आजादी मिली भी। जीत को हासिल कर उन्हें लगा कि उन्हें परम सुख मिल गया। लेकिन इस जीत का बस इतना मतलब था कि वे किसी दूसरे इंसान से थोड़ी बेहतर हो र्गइं थीं, इसका मतलब यह नहीं था कि वे आजाद हो गईं थीं। उस समय भले ही अच्छा लगा हो, लेकिन यह आजादी नहीं थी।


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Anahat: actually I am from Punjab but live in Delhi
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