"छाया को मत छूना" कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए?
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दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना मन,
होगा दुख दूना।
प्रसंग- यहाँ कवि ने बताया है कि दुविधा-ग्रस्त मनुष्य को जीवन में कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है। उसे समय पर न मिलने वाली वस्तुओं का दुख है। इसी ओर संकेत करते हुए कवि कहता है कि-
भावार्थ(सार)- व्यक्ति के पास अदम्य साहस होते हुए भी वह दुविधा-ग्रस्त दिखाई देता है। वह जीवन के ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ से उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है। शरीर के आराम के लिए तो सभी तरह की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध है किंतु मन के अन्दर समाए हुए दुख का कोई अन्त नहीं है। मन को इस बात का दुख है कि सर्दी की ठण्ड भरी रात में चाँद की चाँदनी नहीं बिखरी। बसंत-ऋतु के व्यतीत हो जाने के बाद यदि फूल खिलते हैं तो क्या हुआ? माना की समय बीतने के बाद वस्तु की उपलब्धि की उपादेयता नहीं रहती है और कई बार समय बीतने के बाद उपलब्धि मनुष्य को आनंद प्रदान करती है। बसंत के जाने के बाद फूलों का खिलना मनुष्य को आनन्द भी प्रदान कर सकता है। किनु बसंत में उसका महत्त्व अधिक होता है। वर्तमान का चुनाव करो। बीती हुई यादों को भुलाकर वर्तमान में जीते हुए भविष्य का चयन करो। बीते सुखद दिनों को मन में यादकर दुविधा में मत पड़ना, नहीं तो वर्तमान के दुख और अधिक बढ़ जाएंगे।