छायावाद का महत्व बताओ
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द्विवेदी युग के पश्चात हिंदी साहित्य में जो कविता-धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। छायावाद की कालावधि सन् 1917 से 1936 तक मानी गई है। वस्तुत: इस कालावधि में छायावाद इतनी प्रमुख प्रवृत्ति रही है कि सभी कवि इससे प्रभावित हुए और इसके नाम पर ही इस युग को छायावादी युग कहा जाने लगा।
छायावाद क्या है?
छायावाद के स्वरूप को समझने के लिए उस पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है,जिसने उसे जन्म दिया। साहित्य के क्षेत्र में प्राय: एक नियम देखा जाता है कि पूर्ववर्ती युग के अभावों को दूर करने के लिए परवर्ती युग का जन्म होता है। छायावाद के मूल में भी यही नियम काम कर रहा है। इससे पूर्व द्विवेदी युग में हिंदी कविता कोरी उपदेश मात्र बन गई थी। उसमें समाज सुधार की चर्चा व्यापक रूप से की जाती थी और कुछ आख्यानों का वर्णन किया जाता था। उपदेशात्मकता और नैतिकता की प्रधानता के कारण कविता में नीरसता आ गई। कवि का हृदय उस निरसता से ऊब गया और कविता में सरसता लाने के लिए वह छटपटा उठा। इसके लिए उसने प्रकृति को माध्यम बनाया। प्रकृति के माध्यम से जब मानव-भावनाओं का चित्रण होने लगा,तभी छायावाद का जन्म हुआ और कविता इतिवृत्तात्मकता को छोड़कर कल्पना लोक में विचरण करने लगी।
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का विभाजन हम तीन या दो शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं।
पहले के अनुसार- 1. विषयगत, 2. विचारगत और 3. शैलीगत।
दूसरे के अनुसार- 1. वस्तुगत और 2. शैलीगत।
विषयगत प्रवृत्तियाँ संपादित करें
छायावादी कवियों ने मूलतः सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना की है जिसे हम तीन खण्डों में विभाजित कर सकते हैं-
1. नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण तथा
2. प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना
3. इसके आगे चलकर छायावाद अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद के रूप में सामने आता है। कुछ आचार्य इसे छायावाद की ही एक प्रवृत्ति मानते हैं और कुछ इसे साहित्य का एक नया आंदोलन।
नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण छायावादी कवियों ने नारी को प्रेम का आलंबन माना है। उन्होंने नारी को प्रेयसी के रूप में ग्रहण किया जो यौवन और ह्रृदय की संपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण है। जिसमें धरती का सौंदर्य और स्वर्ग की काल्पनिक सुषमा समन्वित है। अतः इन कवियों नो प्रेयसी के कई चित्र अंकित किये हैं। कामायनी में प्रसाद ने श्रद्धा के चित्रण में जादू भर दिया है। छायावादी कवियों का प्रेम भी विशिष्ट है।
इनके प्रेम की पहली विशेषता है कि इन्होंने स्थूल सौंदर्य की अपेक्षा सूक्ष्म सौंदर्य का ही अंकन किया है। जिसमें स्थूलता, अश्लीलता और नग्नता नहींवत है। जहाँ तक प्रेरणा का सवाल है छायावादी कवि रूढि, मर्यादा अथवा नियमबद्धता का स्वीकार नहीं करते। निराला केवल प्राणों के अपनत्व के आधार पर, सब कुछ भिन्न होने पर अपनी प्रेयसी को अपनाने के लिए तैयार हैं।
इन कवियों के प्रेम की दूसरी विशेषता है - वैयक्तिकता। जहाँ पूर्ववर्ती कवियों ने कहीं राधा, पद्मिनी, ऊर्मिला के माध्यम से प्रेम की व्यंजना की है तो इन कवियों ने निजी प्रेमानुभूति की व्यंजना की है।
इनके प्रेम की तीसरी विशेषता है- सूक्ष्मता। इन कवियों का श्रृंगार-वर्णन स्थूल नहीं, परंतु इन्होंने सूक्ष्म भाव-दशाओं का वर्णन किया है। चौथी विशेषता यह है कि इनकी प्रणय-गाथा का अंत असफलता में पर्यवसित होता है। अतः इनके वर्णनों में विरह का रुदन अधिक है। ह्रृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना छायावादी कविता का सबसे बड़ा कार्य है।
प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना प्रकृति सौंदर्य का सरसतम वर्णन और उससे प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की शृंगारिकता का दूसरा रूप है।
छायावाद के प्रकृतिप्रेम की पहली विशेषता है कि वे प्रकृति के भीतर नारी का रूप देखते हैं, उसकी छवि में किसी प्रेयसी के सौंदर्य-वैभव का साक्षात्कार करते हैं। प्रकृति की चाल-ढाल में किसी नवयौवना की चेष्टाओं का प्रतिबिंब देखते हैं। उसके पत्ते के मर्मर में किसी बाला-किशोरी का मधुर आलाप सुनते हैं। प्रकृति में चेतना का आरोपण सर्व प्रथम छायावादी कवियों ने ही किया है।
स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्ति इस प्रवृत्ति का प्रारंभ श्रीधर पाठक की कविताओं से होता है। पद्य के स्वरूप, अभिव्यंजना के ढंग और प्रकृति के स्वरूप का निरीक्षण आदि प्रवृत्तियाँ छायावाद में प्रकट हुई। साथ-साथ स्वानुभूति की प्रत्यक्ष विवृत्ति, जो व्यक्तिगत प्रणय से लेकर करुणा और आनंद तक फैली हुई है। आलोचकों ने छायावाद पर स्वच्छन्दता का प्रभाव बताया है तो दूसरी ओर इसका विरोध भी प्रकट किया है।
छायावाद क्या है?
छायावाद के स्वरूप को समझने के लिए उस पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है,जिसने उसे जन्म दिया। साहित्य के क्षेत्र में प्राय: एक नियम देखा जाता है कि पूर्ववर्ती युग के अभावों को दूर करने के लिए परवर्ती युग का जन्म होता है। छायावाद के मूल में भी यही नियम काम कर रहा है। इससे पूर्व द्विवेदी युग में हिंदी कविता कोरी उपदेश मात्र बन गई थी। उसमें समाज सुधार की चर्चा व्यापक रूप से की जाती थी और कुछ आख्यानों का वर्णन किया जाता था। उपदेशात्मकता और नैतिकता की प्रधानता के कारण कविता में नीरसता आ गई। कवि का हृदय उस निरसता से ऊब गया और कविता में सरसता लाने के लिए वह छटपटा उठा। इसके लिए उसने प्रकृति को माध्यम बनाया। प्रकृति के माध्यम से जब मानव-भावनाओं का चित्रण होने लगा,तभी छायावाद का जन्म हुआ और कविता इतिवृत्तात्मकता को छोड़कर कल्पना लोक में विचरण करने लगी।
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का विभाजन हम तीन या दो शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं।
पहले के अनुसार- 1. विषयगत, 2. विचारगत और 3. शैलीगत।
दूसरे के अनुसार- 1. वस्तुगत और 2. शैलीगत।
विषयगत प्रवृत्तियाँ संपादित करें
छायावादी कवियों ने मूलतः सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना की है जिसे हम तीन खण्डों में विभाजित कर सकते हैं-
1. नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण तथा
2. प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना
3. इसके आगे चलकर छायावाद अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद के रूप में सामने आता है। कुछ आचार्य इसे छायावाद की ही एक प्रवृत्ति मानते हैं और कुछ इसे साहित्य का एक नया आंदोलन।
नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण छायावादी कवियों ने नारी को प्रेम का आलंबन माना है। उन्होंने नारी को प्रेयसी के रूप में ग्रहण किया जो यौवन और ह्रृदय की संपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण है। जिसमें धरती का सौंदर्य और स्वर्ग की काल्पनिक सुषमा समन्वित है। अतः इन कवियों नो प्रेयसी के कई चित्र अंकित किये हैं। कामायनी में प्रसाद ने श्रद्धा के चित्रण में जादू भर दिया है। छायावादी कवियों का प्रेम भी विशिष्ट है।
इनके प्रेम की पहली विशेषता है कि इन्होंने स्थूल सौंदर्य की अपेक्षा सूक्ष्म सौंदर्य का ही अंकन किया है। जिसमें स्थूलता, अश्लीलता और नग्नता नहींवत है। जहाँ तक प्रेरणा का सवाल है छायावादी कवि रूढि, मर्यादा अथवा नियमबद्धता का स्वीकार नहीं करते। निराला केवल प्राणों के अपनत्व के आधार पर, सब कुछ भिन्न होने पर अपनी प्रेयसी को अपनाने के लिए तैयार हैं।
इन कवियों के प्रेम की दूसरी विशेषता है - वैयक्तिकता। जहाँ पूर्ववर्ती कवियों ने कहीं राधा, पद्मिनी, ऊर्मिला के माध्यम से प्रेम की व्यंजना की है तो इन कवियों ने निजी प्रेमानुभूति की व्यंजना की है।
इनके प्रेम की तीसरी विशेषता है- सूक्ष्मता। इन कवियों का श्रृंगार-वर्णन स्थूल नहीं, परंतु इन्होंने सूक्ष्म भाव-दशाओं का वर्णन किया है। चौथी विशेषता यह है कि इनकी प्रणय-गाथा का अंत असफलता में पर्यवसित होता है। अतः इनके वर्णनों में विरह का रुदन अधिक है। ह्रृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना छायावादी कविता का सबसे बड़ा कार्य है।
प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना प्रकृति सौंदर्य का सरसतम वर्णन और उससे प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की शृंगारिकता का दूसरा रूप है।
छायावाद के प्रकृतिप्रेम की पहली विशेषता है कि वे प्रकृति के भीतर नारी का रूप देखते हैं, उसकी छवि में किसी प्रेयसी के सौंदर्य-वैभव का साक्षात्कार करते हैं। प्रकृति की चाल-ढाल में किसी नवयौवना की चेष्टाओं का प्रतिबिंब देखते हैं। उसके पत्ते के मर्मर में किसी बाला-किशोरी का मधुर आलाप सुनते हैं। प्रकृति में चेतना का आरोपण सर्व प्रथम छायावादी कवियों ने ही किया है।
स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्ति इस प्रवृत्ति का प्रारंभ श्रीधर पाठक की कविताओं से होता है। पद्य के स्वरूप, अभिव्यंजना के ढंग और प्रकृति के स्वरूप का निरीक्षण आदि प्रवृत्तियाँ छायावाद में प्रकट हुई। साथ-साथ स्वानुभूति की प्रत्यक्ष विवृत्ति, जो व्यक्तिगत प्रणय से लेकर करुणा और आनंद तक फैली हुई है। आलोचकों ने छायावाद पर स्वच्छन्दता का प्रभाव बताया है तो दूसरी ओर इसका विरोध भी प्रकट किया है।
Raghav138:
what?
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6
नमस्कार दोस्त
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जीवन में, हम अक्सर ध्रुवीय विपरीत के मामले में चीजों के बारे में सोचते हैं: मजबूत / कमजोर, तेज / धीमा, और हल्के / भारी उदाहरण हैं कई मामलों में, हम एक विपरीत के बारे में सोचते हैं जैसे कि दूसरे विपरीत के पास है। उदाहरण के लिए, एक कमजोर व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो शक्ति का अभाव है, धीमी धावक वह है जो गति का अभाव है, और एक प्रकाश वस्तु ऐसी चीज है जो वजन का अभाव है।
जब फोटोग्राफी के क्षेत्र में ले जाया जाता है, तो यह मानसिकता हमें अपने स्वयं के विपरीत के रूप में सोचने के लिए प्रेरित कर सकती है: प्रकाश और छाया - चीजों को देखने का कोई बुरा तरीका नहीं है अगले चरण लेने और छायाओं को केवल प्रकाशा की कमी के रूप में सोचना भी आसान है। एक बार ये किया जाता है, छाया शायद कम महत्वपूर्ण लगती हों।
आखिरकार, हम प्रकाश के बारे में बहुत कुछ पढ़ते हैं और सुनते हैं। उदाहरण के लिए, परिदृश्य फोटोग्राफर जादू घंटे की रोशनी के बारे में लिखते हैं और फैशन / ग्लैमर फोटोग्राफर उन स्टोरीयो रोशनी को ठीक से प्राप्त करने के लिए बहुत दर्द के बारे में बात करते हैं। साहित्य में कम से कम, ऐसा लगता है कि छाया कम महत्वपूर्ण हैंयह निष्कर्ष निकालना आसान होगा कि एक को केवल प्रकाश पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है और छाया की जगह जहां वे हो सकते हैं। यह एक बड़ी गलती होगी - प्रकाश के लिए बिना छाया के कुछ भी नहीं है
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आशा है कि यह आपकी मदद करेगा
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जीवन में, हम अक्सर ध्रुवीय विपरीत के मामले में चीजों के बारे में सोचते हैं: मजबूत / कमजोर, तेज / धीमा, और हल्के / भारी उदाहरण हैं कई मामलों में, हम एक विपरीत के बारे में सोचते हैं जैसे कि दूसरे विपरीत के पास है। उदाहरण के लिए, एक कमजोर व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो शक्ति का अभाव है, धीमी धावक वह है जो गति का अभाव है, और एक प्रकाश वस्तु ऐसी चीज है जो वजन का अभाव है।
जब फोटोग्राफी के क्षेत्र में ले जाया जाता है, तो यह मानसिकता हमें अपने स्वयं के विपरीत के रूप में सोचने के लिए प्रेरित कर सकती है: प्रकाश और छाया - चीजों को देखने का कोई बुरा तरीका नहीं है अगले चरण लेने और छायाओं को केवल प्रकाशा की कमी के रूप में सोचना भी आसान है। एक बार ये किया जाता है, छाया शायद कम महत्वपूर्ण लगती हों।
आखिरकार, हम प्रकाश के बारे में बहुत कुछ पढ़ते हैं और सुनते हैं। उदाहरण के लिए, परिदृश्य फोटोग्राफर जादू घंटे की रोशनी के बारे में लिखते हैं और फैशन / ग्लैमर फोटोग्राफर उन स्टोरीयो रोशनी को ठीक से प्राप्त करने के लिए बहुत दर्द के बारे में बात करते हैं। साहित्य में कम से कम, ऐसा लगता है कि छाया कम महत्वपूर्ण हैंयह निष्कर्ष निकालना आसान होगा कि एक को केवल प्रकाश पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है और छाया की जगह जहां वे हो सकते हैं। यह एक बड़ी गलती होगी - प्रकाश के लिए बिना छाया के कुछ भी नहीं है
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आशा है कि यह आपकी मदद करेगा
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