डिजीभारतम se hame kya Sikh milti hai
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संवाद सहयोगी, हरिद्वार: हमें भारतीय होने पर गर्व है। भारतीय संस्कृति से संवेदनाओं की सीख मिलती है। हम सदैव भारतीय संस्कृति की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। यह बात पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण महाराज ने चिंतन प्रवाह की ओर से एक होटल में आयोजित भारत नीति रीजनल कांफ्रेंस की अध्यक्षता करते हुए कही।
भारत नीति के तहत डिजीटल युग में भारतीय संस्कृति पर आयोजित कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि कोई इंडिया कहकर पुकारता है तो कोई भारत कहकर। लेकिन वास्तविकता में लोग हमें भारतीय संस्कृति के तहत ही जानते हैं। इसलिए हमें भाषा का विरोध नहीं करना चाहिए। हम अभी डिजिटल युग की ओर अग्रसर है। कहा कि एक ओर जहां बाइबिल लगभग तीन हजार भाषाओं में उपलब्ध है, वहीं आज भगवत गीता का मात्र 70 भाषाओं में ही अनुवाद हो पाया है। डिजिटल युग में भारतीय संस्कृति की पहचान बनाने के लिए बहुत संसाधन है। हमें भगवत गीता को भी अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद करना होगा। दिव्य प्रेम सेवा मिशन के अध्यक्ष आशीष गौतम ने कहा कि संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के चिह्न मिल रहे हैं। यह डिजीटल मीडिया से ही संभव हुआ है। कहा कि डिजीटल युग में अधिक सावधानी की आवश्यकता है। पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं विधायक मदन कौशिक ने कहा कि आज हम डिजीटल युग में जा रहे हैं। डिजीटल युग में नौजवानों को भारतीय संस्कृति का भी चिंतन करना चाहिए। भेल के कार्यपालक निदेशक प्रकाश चंद ने कहा कि भारतीय इंजीनियर विश्व में विख्यात हैं दुनिया में भारत नाम आगे बढ़ाया है। डिजीटल युग भारतीय संस्कृति को पूरे विश्व में पहुंचाएगा। कत्थक नृत्यांगना नलिनी ने कहा कि डिजीटल से डाटा तो मिल जाएगा, लेकिन संघर्ष व्यक्तिगत रूप में ही करना पड़ेगा।