डी. पी. मुकर्जी की परम्पराओं की अवधारणा पर प्रकाश डालिये?
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डी.पी. मुकर्जी की परम्पराओं की अवधारणा–परम्पराओं का अर्थ समाज की प्रथाओं, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, विचार एवं संस्कारों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित करना है। भारत में समाज के अन्दर परम्पराएँ प्राचीन समय से आज तक अस्तित्व में बनी हुई हैं। इन परम्पराओं में समय के अनुसार कुछ परिवर्तन अवश्य हुए हैं।
डी. पी. मुकर्जी ने भारतीय समाजशास्त्र में भारतीय परम्पराओं के अध्ययन को सम्मिलित किया है। उनके अनुसार परम्पराएँ ही भारतीय समाजशास्त्र की प्रमुख विषयवस्तु है। उन्होंने अपने अध्ययन में परम्पराओं को जानने पर विशेष बल दिया है।
पश्चिमी परम्पराओं के आदर्श पर भारतीय समाजशास्त्र को ढालने पर मुकर्जी ने इसका विरोध किया है। मुकर्जी ने अपने लेखों एवं भाषण में भारतीय सामाजिक परम्पराओं के अध्ययन पर जोर दिया है। उनका मानना है कि व्यक्ति को उन परम्पराओं का अध्ययन करना जरूरी है जहाँ उसने जन्म लिया है। उनका विचार है कि भारतीय समाजशास्त्री के लिए एक समाजशास्त्री की अपेक्षा एक भारतीय होना आवश्यक है। भारतीय समाज व्यवस्था को समझने के लिए उसे उसकी जनरीतियों, विचारों, रूढ़ियों, प्रथाओं एवं व्यवहार आदि का अध्ययन करना चाहिए एवं सीखना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि उसे स्थानीय भाषाओं का ज्ञान भी हो। डी. पी. मुकर्जी ने भारतीय परम्पराओं में परिवर्तन लाने वाले प्रमुख सिद्धान्त बताए हैं- श्रुति, स्मृति और अनुभव।
मुकर्जी के अनुसार अच्छी परम्पराएँ प्रमुख रूप से बौद्धिक थीं जो श्रुति एवं स्मृतियों पर आधारित थीं। वाद-विवाद, तर्क-बुद्धि-विचार से इनमें परिवर्तन होता रहता है। परम्पराएँ श्रुति से, स्मृति से बनी थीं और उनमें बौद्धिकता के कारण परिवर्तन होता था। यह एक क्रान्तिकारी सिद्धान्त भी है। व्यक्तिगत अनुभव ही परिवर्तन का मुख्य कारण रहा है। यदि हम भारत के विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों, सम्प्रदायों और मठों की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त करें तो हम पाते हैं कि उनका प्रारम्भ उनके जन्मदाता संतों के व्यक्तिगत विचार एवं अनुभव के कारण ही हुआ जो धीरे-धीरे सामूहिक अनुभव के रूप में फैलता चला गया।
मुकर्जी ने स्मृति, श्रुति और अनुभव के द्वारा भारतीय समाज में विद्यमान परम्पराओं में आने वाले परिवर्तन को बताने का प्रयास किया है। अपने सिद्धान्त द्वारा मुकर्जी ने यह सिद्ध किया कि वर्तमान का अध्ययन अतीत के संदर्भ में भी हो सकता है। आधुनिकीकरण के दौर को समझने से पहले अपनी परम्पराओं को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा है कि परम्पराएँ नहीं मरतीं, वह नवीन परिस्थितियों के साथ अपना सामंजस्य एवं अनुकूलन करती हैं। तेज गति से होने वाले परिवर्तन ही परम्पराओं को खत्म कर सकते हैं।
मुकर्जी ने कहा है कि परम्परा एक गतिशील तथ्य है। यह एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है। परम्पराओं के अभाव में आधुनिकीकरण का कोई भी महत्व नहीं रह जाता है। परम्परा स्थिर अवधारणा नहीं है, वह गतिशील है। परम्परा आधुनिकता के लिए प्रेरक का कार्य करती है। उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परम्पराओं में श्रुति, स्मृति व अनुभव के कारण परिवर्तन होता है। परिवर्तन ही परम्पराओं के मध्य होने वाला द्वन्द्व है।
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was given by the life of prisoners by D P Mukherjee