जी. एस. घुर्ये के जाति सम्बन्धी विचार पर एक लेख लिखिये?
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जी. एस. घुर्ये की रुचि सभ्यताओं के तुलनात्मक अध्ययन में थी, वे सभ्यता के विकास के अध्ययन के विशेषज्ञ माने जाते हैं। भारतीय समाज उनके अध्ययन का प्रमुख केन्द्र बिन्दु था। प्रजाति एवं जाति ही भारतीय समाज के अध्ययन का मुख्य विषय था। अपनी पुस्तक ‘कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया’ में उन्होंने इनके बारे में विस्तार से लिखा है। प्राचीन विद्वान एवं संतों के अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर यह माना जाता है कि आर्य 2500 ईसापूर्व भारत में आये थे। इनका धर्म वैदिक था, जो गंगा नदी के मैदानी क्षेत्रों में बसे और वहीं अपनी संस्कृति को विकसित किया। यही संस्कृति आगे चलकर हिन्दू संस्कृति कहलायी। घुर्ये, रिजले की प्रजाति अवधारणा से बहुत प्रभावित थे, किन्तु रिजले के विचारों को अस्वीकार किया और सिद्ध किया कि प्रजाति को जाति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने अपनी पुस्तक जाति, वर्ग व व्यवरः । में जाति व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया है। जाति शब्द का अर्थ जो कास्ट से लिया गया है मत विभेद था जाति है। यह अन्तर्विवाही समूह के रूप में है। उन्होंने जाति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित तरह से बतायी हैं
समाज का खण्डात्मक विभाजन :
भारत में जाति व्यवस्था ने समाज को अनेक खण्डों में बाँट दिया है। प्रत्येक खण्ड के सदस्यों के पद, स्थिति और कार्य निश्चित हैं। ये सभी जातियाँ उपखण्डों में विभाजित हैं। जैसेभारत में वर्ण व्यवस्था, भारत की जाति व्यवस्था में सभी के कार्यों का विभाजन किया गया है।
संस्तरण :
भारत में जाति व्यवस्था खण्डों में विभाजित है, इसका यह अर्थ नहीं कि वे सभी एक समाज के रूप में है। जाति व्यवस्था में ऊँच-नीच का एक संस्तरण पाया जाता है। भारत में यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है। इस कारण यहाँ संस्तरण में बड़ी दृढ़ता एवं स्थिरता देखने को मिलती है।
भोजन तथा सामाजिक सहवास पर प्रतिबन्ध :
जाति व्यवस्था में जातियों में परस्पर भोजन एवं व्यवहार के सम्बन्ध में अनेक निषेध पाये जाते हैं, यहाँ ऐसे नियम बनाये गये हैं कि किसी जाति के सदस्य किन-किन जातियों के साथ भोजन कर सकते हैं और किनके साथ नहीं।
नागरिक एवं धार्मिक निर्योग्यताएँ एवं विशेषाधिकार :
जाति व्यवस्था में ऊँच-नीच के संस्तरण के कारण सामाजिक समनाता का अभाव है। इस व्यवस्था के कारण भारत को समाज व्यवस्था में काफी क्षति उठानी पड़ी है।
निश्चित व्यवसाय :
घुर्ये ने जाति व्यवस्था की एक विशेष विशेषता बतायी है कि प्रत्येक जाति का अपना एक व्यवसाय निश्चित होता है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता है। यह सभी जातिगत होते हैं, उनमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होता है। इन व्यवसायों द्वारा ही लोग अपना जीवन-यापन चलाते हैं। उन्हें अपने व्यवसाय को बदलने की अनुमति नहीं थी।
विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्ध :
जाति व्यवस्था के कारण प्रत्येक जाति के व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करने का नियम है, अपनी जाति से बाहर विवाह करने की अनुमति समाज नहीं देता है। भारत में जाति एक अन्तर्विवाही समूह के रूप में है। विवाह करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि जिस स्त्री पुरुष में विवाह हो रहा है वह उसके गोत्र का तो नहीं है। व्यक्ति अपने गोत्र से बाहर ही विवाह कर सकता है, गोत्र के अन्दर विवाह करने की अनुमति समाज एवं जाति नहीं देती है।
घुर्ये ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बताया कि जाति व्यवस्था भारत में बड़ी ही विस्तृत है। जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है इसलिए जाति एक प्रदत्त प्रस्थिति है न कि अर्जित प्रस्थिति।
जाति व्यवस्था में परिवर्तन-जाति व्यवस्था में अनेक परितर्वन हुए हैं :
संस्तरण में परिवर्तन
व्यवसायों में परिवर्तन
खान-पान में परिवर्तन
विवाह-सम्बन्धों में परिवर्तन आदि।
Answer:
घुर्य ने जो कुछ भी लिखा है, उसका केंद्र भारतीय सभ्यता है। इसी सभ्यता ने भारतीय समाज का निर्माण किया है। उन्होंने इस सभ्यता को संस्कृत ग्रंथों के माध्यम से समझा है। उनका कहना है कि भारतीय सभ्यता की संस्कृति बाहरी प्रक्रियाओं से भी प्रभावित रही है।
Explanation:
घुर्ये ने जाति व्यवस्था की एक विशेष विशेषता दी है कि प्रत्येक जाति का एक निश्चित पेशा होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है। ये सभी जाति हैं, इनमें कोई परिवर्तन नहीं है। लोग इन व्यवसायों के माध्यम से अपना जीवन यापन करते हैं। उसे अपना पेशा बदलने की अनुमति नहीं थी।
भारत में जाति व्यवस्था को खंडों में विभाजित किया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे सभी एक समाज बनाते हैं। जाति व्यवस्था में उच्च और निम्न का एक पदानुक्रम है। भारत में यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है। इस वजह से यहां के वर्जन में जबरदस्त मजबूती और स्थिरता देखने को मिलती है।
जाति व्यवस्था में जातियों के बीच परस्पर भोजन और व्यवहार के संबंध में कई निषेध पाए जाते हैं, यहाँ ऐसे नियम बनाए गए हैं कि एक जाति के सदस्य किस जाति के साथ भोजन कर सकते हैं और जिनके साथ वे नहीं कर सकते।
उच्च और निम्न स्तरों के कारण जाति व्यवस्था में सामाजिक समानता का अभाव है। इस व्यवस्था के कारण भारत को सामाजिक व्यवस्था में बहुत नुकसान हुआ है।
जाति व्यवस्था के कारण प्रत्येक जाति के व्यक्ति के लिए अपनी ही जाति में विवाह करने का नियम है, समाज उसकी जाति के बाहर विवाह की अनुमति नहीं देता है। भारत में जाति एक अंतर्विवाही समूह है। विवाह करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि जिस पुरुष से स्त्री का विवाह हो रहा है वह उसके गोत्र का तो नहीं है। एक व्यक्ति अपने गोत्र से बाहर विवाह कर सकता है, समाज और जाति गोत्र के भीतर विवाह की अनुमति नहीं देती है।
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