Dadu ke Kavya ki Samanya visheshta par Prakash daliye
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दादूदयाल (1544-1603 ई.) हिन्दी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख सन्त कवि थे। इनके 52 पट्टशिष्य थे, जिनमें गरीबदास, सुंदरदास, रज्जब और बखना मुख्य हैं। दादू के नाम से 'दादू पंथ' चल पडा। ये अत्यधिक दयालु थे। इस कारण इनका नाम 'दादू दयाल' पड गया। दादू हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि कई भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने शबद और साखी लिखीं। इनकी रचना प्रेमभावपूर्ण है। जात-पाँत के निराकरण, हिन्दू-मुसलमानों की एकता आदि विषयों पर इनके पद तर्क-प्रेरित न होकर हृदय-प्रेरित हैं।
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दादू के काव्य में कृषक एवं शिल्पी जीवन सम्बन्धी पृष्टभूमि को अच्छी तरह से समझने के लिए दादू का जीवन परिचय, व्यक्तित्व, जीवन दर्शन आदि परिवेश के बारे में जानना आवश्यक है। सन्त शिरोमणि दादूदयाल का आविर्भाव साहित्य और समाज की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
नका व्यक्तित्त्व केवल मानसिक गुण-दोष एवं प्रवृत्तियों का सार ही नहीं है बल्कि उनके चरित्र की विशेषताओं का आधार स्तम्भ था। वह उनके आन्तरिक जीवन का प्रकाशन है जिसमें व्यक्ति की प्रकृति, स्वभाव, अनुभवजन्य प्रवृत्तियाँ, चारित्रिक गुण-दोष, व्यक्तियों के प्रति व्यवहार, क्रिया-कलाप, रूप सौन्दर्य, ऐन्द्रिक क्षमताएँ, स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति, ज्ञान, तर्क-वितर्क, चिन्तन शक्ति, बौद्धिक और भावात्मक प्रवृत्तियों का समावेश होता है।
दादू के उपदेश मुख्यतः काव्य सूक्तियों और ईश्वर भजन के रूप में हैं, जो 5,000 छंदों के संग्रह में संग्रहीत है, जिसे बानी (वाणी) कहा जाता है।