darmik par ek hindi me nibandh
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उत्तर और साथ ही दक्षिण भारत में हिंदू देवताओं और देवी की पूजा व्यापक है। देश भर में समान उत्साह के साथ रामायण और महाभारत जैसे महाकाय का अध्ययन किया जाना जारी है। मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया है, इन्हें कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवादित किया गया है। पूरे भारत में धर्म के पवित्र स्थान और केंद्र फैले हुए हैं ताकि लोगों को इन स्थानों पर जाने के लिए अनिवार्य हो। साईवती 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा करते हैं, सप्तों के पास 52 पिठ हैं और वैष्णवों के पूरे भारत में कई पिठ हैं। दक्षिण में कांचीपुरम से, पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बद्रीनाथ और पूर्व में पुरी (चार्टुधम) पूरे देश को पवित्र स्थानों के नेटवर्क के साथ बिंदीदार बनाया गया है, जो एकता का भाव पैदा करता है।
धार्मिक विचारों जैसे एकेश्वरवाद, आत्मा की अमरता, पुनः अवतार, कर्म, निर्वाण, मोक्ष इत्यादि सभी देश भर में लोगों को प्रेरित करते हैं। पूरे देश में धार्मिक संस्कार और अनुष्ठान एकरूपता हैं। साधु और संत, धार्मिक प्रचारक और तीर्थयात्रियों ने कभी भी उत्तर और दक्षिण के बीच भेदभाव नहीं किया है अगर शंकराचार्य ने दक्षिण से उत्तर तक संदेश ले लिया, तो बौद्ध धर्म और जैन धर्म उत्तर से दक्षिण तक फैल गए। चिंतन्य, कबीर और नानक ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच जोड़ने का संबंध बनाया।धर्म आपसी सद्भाव एवं एकता का प्रतीक है क्योंकि किसी धर्म विशेष को मानने वाले लोग एक ही प्रकार की जीवन पद्धति का पालन करते हैं। धर्म या मजहब अपने अनुयायिओं को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करते हुए भारत के प्रसिद्ध कवी महम्मद इकबाल की १९०४ में लिखी गई पंक्तियां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। जब-जब किसी भी विदेशी आक्रांता ने भारत पर आक्रमण किया है उसने धर्म के बजाए समाज मे साम्प्रदायिक की भावनाओं को पनपाकर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। धार्मिक एकता को विखंडित करने के बाद ही वे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो पाए। अंग्रेजों ने भी यही किया और 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। हम निश्चित रूप से इतने वर्षों की गुलामी से बच जाते अगर हमने साम्प्रदायिकता की भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए, सर्वधर्म समभाव एवं धर्म की मूल भावना को सही अर्थों में समझा और अपनाया होता।
HOPE it will help you...........
उत्तर और साथ ही दक्षिण भारत में हिंदू देवताओं और देवी की पूजा व्यापक है। देश भर में समान उत्साह के साथ रामायण और महाभारत जैसे महाकाय का अध्ययन किया जाना जारी है। मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया है, इन्हें कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवादित किया गया है। पूरे भारत में धर्म के पवित्र स्थान और केंद्र फैले हुए हैं ताकि लोगों को इन स्थानों पर जाने के लिए अनिवार्य हो। साईवती 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा करते हैं, सप्तों के पास 52 पिठ हैं और वैष्णवों के पूरे भारत में कई पिठ हैं। दक्षिण में कांचीपुरम से, पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बद्रीनाथ और पूर्व में पुरी (चार्टुधम) पूरे देश को पवित्र स्थानों के नेटवर्क के साथ बिंदीदार बनाया गया है, जो एकता का भाव पैदा करता है।
धार्मिक विचारों जैसे एकेश्वरवाद, आत्मा की अमरता, पुनः अवतार, कर्म, निर्वाण, मोक्ष इत्यादि सभी देश भर में लोगों को प्रेरित करते हैं। पूरे देश में धार्मिक संस्कार और अनुष्ठान एकरूपता हैं। साधु और संत, धार्मिक प्रचारक और तीर्थयात्रियों ने कभी भी उत्तर और दक्षिण के बीच भेदभाव नहीं किया है अगर शंकराचार्य ने दक्षिण से उत्तर तक संदेश ले लिया, तो बौद्ध धर्म और जैन धर्म उत्तर से दक्षिण तक फैल गए। चिंतन्य, कबीर और नानक ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच जोड़ने का संबंध बनाया।धर्म आपसी सद्भाव एवं एकता का प्रतीक है क्योंकि किसी धर्म विशेष को मानने वाले लोग एक ही प्रकार की जीवन पद्धति का पालन करते हैं। धर्म या मजहब अपने अनुयायिओं को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करते हुए भारत के प्रसिद्ध कवी महम्मद इकबाल की १९०४ में लिखी गई पंक्तियां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। जब-जब किसी भी विदेशी आक्रांता ने भारत पर आक्रमण किया है उसने धर्म के बजाए समाज मे साम्प्रदायिक की भावनाओं को पनपाकर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। धार्मिक एकता को विखंडित करने के बाद ही वे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो पाए। अंग्रेजों ने भी यही किया और 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। हम निश्चित रूप से इतने वर्षों की गुलामी से बच जाते अगर हमने साम्प्रदायिकता की भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए, सर्वधर्म समभाव एवं धर्म की मूल भावना को सही अर्थों में समझा और अपनाया होता।
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