Hindi, asked by zaid42, 1 year ago

define kartrivachya,karmavachya and bhavvachya?

Answers

Answered by IshanS
18
Hi there!

क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वाक्य में क्रिया द्वारा संपादित विधान का विषय कर्ता है, कर्म है, अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।

क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है।

वाच्य के तीन प्रकार हैं : -

♦ कर्तृवाच्य- क्रिया के उस रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो।

जैसे- राम पुरतक पढ़ता है, मैंने पुस्तक पढ़ी।

♦ कर्मवाच्य- क्रिया के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो।

जैसे- पुस्तक पढ़ी जाती है; आम खाया जाता है।

यहाँ क्रियाएँ कर्ता के अनुसार रूपान्तररित न होकर कर्म के अनुसार परिवर्तित हुई हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अँगरेजी की तरह हिन्दी में कर्ता के रहते हुए कर्मवाच्य का प्रयोग नहीं होता; जैसे- 'मैं दूध पीता हूँ' के स्थान पर 'मुझसे दूध पीया जाता है' लिखना गलत होगा। हाँ, निषेध के अर्थ में यह लिखा जा सकता है- मुझसे पत्र लिखा नहीं जाता; उससे पढ़ा नहीं जाता।

♦ भाववाच्य- क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो ।

जैसे- मोहन से टहला भी नहीं जाता। मुझसे उठा नहीं जाता। धूप में चला नहीं जाता।

यहाँ यह स्पष्ट है कि कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों हो सकती है, किन्तु कर्मवाच्य में केवल सकर्मक और भाववाच्य में अकर्मक होती

[ Thank you! for asking the question. ]
Hope it helps!
Answered by Anonymous
5
Hey dear

कर्तृवाच्य-
क्रिया के लिंग तथा वचन कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार ही होते हैं।

कर्मवाच्य-
क्रिया के लिंग एवं वचन कर्म के लिंग एवं वचन के अनुसार होते हैं।

भाववाच्य-
भाववाच्य में भावों की प्रधानता होने के कारण अकर्मक क्रियाओं का प्रयोग होता है, जो सदैव अन्य पुरुष, एकवचन एवं पुंलिंग होती है।


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Anonymous: mark it brainlist if u like
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