Dinkar ji ki kavyagat visheshta par Prakash daliye
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राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की चार कृतियों ‘‘प्रण-भंग’’, ‘‘रश्मिरथी’’ और ‘‘उर्वशी’’ का पुनर्मुल्यांकन एक कठिन काम है, जिसे लेखक डा. नवीन कुमार ने बड़ी सफलता से पूरा किया है। पुस्तक वस्तुतः एक शोध प्रबंध है, जिसमें चार अध्याय हैं - 1. दिनकर की प्रबंध-कृतियों का कथानक-शिल्प 2. दिनकर की प्रबंध-कृतियों का संवाद-शिल्प 3. दिनकर की प्रबंध-कृतियों की चरित्र-सृष्टि में नूतन शिल्प-विधान विवेचन और 4. दिनकर की प्रबंध-कृतियों के शिल्प की मौलिकताएं और अन्य वैशिष्ट्य। इसमें विभिन्न लेखकों-विद्वानों के अभिमत को एकत्रित कर प्रसंगानुसार पूरी मेहनत से उन्हें उद्धृत किया गया है।
‘‘प्रण-भंग’’ लघु प्रबंध काव्य है, जो ‘दिनकर’ की आरंभिक काव्य प्रबंधन क्षमता का प्रतीक है। सन् 1929 में रचित और उसी वर्ष प्रकाशित इस छोटे-से संडकाव्य का जिक्र राजचंद्र शुक्ल के हिन्दी साहित्य के इतिहास में आ जाने से इसके प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ गयी थी। यह खण्डकाव्य कृष्ण और भीष्म की कथा से संबंधित है।
सात सर्गोंं में विभाजित ‘‘कुरूक्षेत्र’’ के बारे में लेखक ने अपनी अलग खोजपूर्ण दृष्टि प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार यह खंडकाव्य न तो लक्षणोन्मुख प्रबंध रचना है और न पूर्णतः लक्षणमुक्त ही। यह एक विवादास्पद प्रबंध काव्य है, जिसकी कथा महाभारत युद्ध के बाद भीष्म और युधिष्ठिर के संवाद पर अधारित है। इस काव्य के रचनाकार ने इसे माहभारत की कथा का अनुकरण नहीं मान कर युद्ध, शांति और विज्ञान जैसी आधुनिक समस्याओं का विश्लेषण माना है।