Doodh ka doodh pani ke Pani Par Ek Kahani
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Explanation:
एक छोटे गांव में एक गूजरी रहती थी। उसके दो भैंसे थी। वह प्रतिदिन शहर में दूध बेचने के लिए जाती थी। एक दिन उसने सोचा – मार्ग में तालाब तो पड़ता ही है यदि मैं पाँच सेर दूध में पांच सेर पानी मिला दूँ, तो मुझे दस सेर के पैसे मिलते रहेंगे। और मेरी चालाकी को कोई पकड़ भी नहीं सकेगा। क्योंकि दूध और पानी एक हो जायेंगे। उसने वैसा ही किया। शहर के लोगों को गूजरी के प्रति विश्वास था कि यह बिल्कुल शुद्ध दूध लाती है, तनिक भी मिलावट नही करती है। इससे किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। गूजरी का काम बनता रहा। उसकी अपनी निपुणता पर अपूर्व गर्व था कि संसार में मेरे जैसी होशियार महिला कोई नहीं है। मैं बड़े-बड़े आदमियों की आंखों में धूल झोंकने वाली हूँ।
चाहे कोई कितनी ही कपटाई करे, किन्तु एक दिन उसका भण्डाफोड़ हुए बिना नहीं रहता। पाप का घड़ा अवश्य फूटता है। “सौ सुनार की एक लुहार की” भी चरितार्थ होकर रहती है। महीना समाप्त होते ही गूजरी ने दूध का सारा हिसाब किया। जितने भी रुपये इकट्ठे हुए, उन सबको कपड़े में बांध टोकरी में रख गूजरी पानी पीने को तालाब में गई।
अचानक एक बन्दर आया। उसने रुपयों की थैली को खाद्य वस्तु समझकर उठा लिया और वृक्ष के ऊपर जाकर बैठ गया गूजरी वापिस आई। रुपयों की थैली न दिखने के कारण अवाक् रह गई। चेहरे पर उदासी छा गई। इधर-उधर अन्वेषण करने पर उसकी नजर बन्दर पर जा पड़ी। करुण आक्रन्दनपूर्वक जोर-जोर से वह पुकारने लगी-“अरे बन्दर! यह थैली तेरे क्या काम आयेगी? इसमें तनिक भी खाद्य वस्तु नही। मुझ पर कृपा कर। मैं तेरा उपकार कभी नही भूलूंगी। मेरी थैली मुझे दे दे।”
बन्दर स्वभावतः चंचल होता ही है। उसने अपने नाखूनों से थैली को फाडा़ और क्रमशः एक रुपया टोकरी में और एक तालाब में डालना प्रारम्भ कर दिया। रुपया ज्यों ही पानी में गिरता त्यों ही गूजरी का कलेजा कराह उठता। वह हाय-हाय करती पर क्या उपाय। आखिर आधे रुपये टोकरी में आये और आधे तालाब (पानी में) में चले गये।
इतने में एक कवि वहां पर आ गया। उसने पूछा-“बहिन! रोती क्यों हो?’ गूजरी ने कहा-“अरे भाई! इस दुष्ट बन्दर ने मेरे आधे रूपये पानी में डाल दिये। इसी दुख में बेहाल हो रही हूँ।”
कवि बड़ा अनुभवी था। उसने कहा-“बहिन! तूने कभी दूध में पानी तो नहीं मिलाया? सच-सच बोल।” गूजरी-“मैंने अधिक तो नहीं मिलाया? किन्तु पांच सेर दूध में पांच सेर पानी अवश्य मिलाया था।” कवि-“तो फिर दुखी क्यों हो रही है? बन्दर ने यथोचित न्याय कर दिया। ’दूध का दूध, और पानी का पानी’ दूध के पैसे तुझे मिल गये और पानी के पैसे तालाब को मिल गये। जानती हो न्याय के घर देर है, अन्धेर नहीं।” गूजरी हाथ मलती हुई अपने घर को चल पड़ी।
कहानी लेखन
निम्नलिखित अकबर और बीरबल की बहुत प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि एक बार अकबर अपने पसंदीदा दरबारी बीरबल के साथ सैर के लिए निकला था। अकबर को अपने देश पर बहुत गर्व था। उनका दृढ़ विश्वास था कि उनके देशवासी वफादार और सच्चे हैं। यह सुनकर बीरबल ने कहा कि यह एक गलत धारणा थी और अकबर को असलियत का पता नहीं है। इससे अकबर नाराज हो गया। उन्होंने आहत महसूस किया और बीरबल को अपनी बात साबित करने का आदेश दिया। अगले दिन, बीरबल ने एक आधिकारिक घोषणा करते हुए कहा कि शहर के प्रत्येक नागरिक को भगवान कृष्ण द्वारा पूजे जाने वाले एक बड़े त्योहार के लिए दूध के जार में योगदान देना था। दूध का इस्तेमाल भगवान को प्रसाद के रूप में मक्खन बनाने के लिए किया जाएगा। उसी के लिए, अदालत के द्वार के सामने एक विशाल कंटेनर स्थापित किया गया था, लेकिन कोई गार्ड नहीं थे क्योंकि शहर में हर कोई सच्चा था। लोग दिन में किसी भी समय आ सकते थे और दूध का जार कंटेनर में डाल सकते थे। अगले दिन, बीरबल अकबर को अपने साथ ले गया, यह देखने के लिए कि कैसे दूध एकत्र किया गया था। कंटेनर भरा हुआ था लेकिन बहुत कम ईमानदार लोगों ने इसमें दूध डाला था। दूध की मात्रा इतनी कम थी कि दूध और पानी को अलग-अलग देखा जा सकता था। तो, अंत में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है। हालांकि, दूध और पानी को मिश्रित होने पर अलग नहीं किया जा सकता है, लेकिन अंत में जब सच्चाई के साथ बहुत अधिक झूठ होता है, तो सच्चाई अंततः सामने आ जाती है।