Doordarshan ka Vidyarthi Jeevan par Prabhav par nibandh
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टीवी पर हिंसा के कार्यक्रम देखने वाले बच्चों की मानसिकता पर हिंसा ही छाई रहती है। इससे उनके व्यवहार में तब्दीली आना स्वाभाविक है। काल्पनिक दुनिया का असल जीवन में ऐसा दखल निश्चय ही घातक है। हाल में आई एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक टेलीविजन कार्यक्रमों में बढ़ती अश्लीलता और आपत्तिजनक शब्दों के प्रयोग ने अभिभावकों की नींद उड़ा दी है। एसोचैम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 6 से 17 साल की आयुवर्ग के ज्यादातर बच्चे एक हफ्ते में कम से कम 35 घंटे से ज्यादा टीवी से चिपके रहते हैं। वहीं ज्यादा टीवी देखने से इन बच्चों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। बच्चों की मनोवृत्ति बदल रही है और उनमें हिंसक प्रवृत्ति में भी इजाफा हो रहा है।
एसोचैम के इस सर्वे में तीन हजार अभिभावकों और दो हजार अल्पवयस्कों को लिया गया। सर्वे में 90 प्रतिशत अभिभावकों ने माना है कि टीवी कार्यक्रम बदतर होते जा रहे हैं। साथ ही इमोशनल अत्याचार, डेट ट्रैप जैसे कार्यक्रमों में फूहड़ता परोसी जा रही है जिन्हें आजकल के बच्चे बड़े चाव से देखते हैं। वहीं ऐसे कार्यक्रमों की भेड़चाल बढ़ती जा रही है। इस वजह से 65 फीसद अभिभावक टीवी कार्यक्रमों पर नए नियम बनाए जाने के पक्ष में हैं।
एसोचैम ने ये सर्वे दिल्ली, मुंबई, गोवा, कोच्चि, चेन्नाई, हैदराबाद, इंदौर, पटना, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों में किया है। हाल ही में सिस्टल (वाशिंगटन) के विशेषज्ञों ने 600 से ज्यादा बच्चों की टीवी. देखने की आदतों का जायजा लिया। विशेषज्ञों को पता चला है कि जो बच्चे अधिक टीवी देखते हैं वे ज्यादा हिंसक होते जा रहे हैं। टीवी पर हिंसा के कार्यक्रम देखने वाले बच्चों की मानसिकता पर हिंसा ही छाई रहती है।
बच्चे टीवी पर आने वाले अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को देखने के बाद हूबहू वही करने की कोशिश करते हैं जिसे वे अपने रोल मॉडल को टीवी पर करता हुआ देखते हैं। भले ही टीवी पर परोसे जाने वाले कार्यक्रमों के प्रसारित होने से पहले बता दिया जाता है कि जो कुछ भी कार्यक्रम के दौरान दिखाया जा रहा है वह सब काल्पनिक है, लेकिन ये बच्चे इन कार्यक्रमों को हकीकत के रूप में ही देखना और जीना पसंद करते हैं।
अध्ययन में यह भी पता चला है कि दस साल से कम उम्र के 4 प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिता से मारपीट करने से भी गुरेज नहीं करते। यदि बच्चों की कोई बात नहीं मानी जाए तो वे अपने माता-पिता के प्रति बहुत ही हिंसक और उग्र हो जाते हैं। बच्चों की इस उभरती तस्वीर को लेकर मनोवैज्ञानिकों ने अभिभावकों को भी सचेत किया है।
मौजूदा दौर में अधिकांश लोग छोटे परिवार को तवज्जो दे रहे हैं। आज परिवारों में एक या दो बच्चों का चलन बढ़ रहा है। इस वजह से बच्चों को दुलार-प्यार मिलता है और वे जिद के चलते अपने माता-पिता पर हावी होते जा रहे हैं। अपनी जिद पूरी करवाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चों की अत्यधिक टीवी देखने की आदतों पर गंभीरता से लगाम लगाएँ।
टेलीविजन आज सबसे आम जन संचार माध्यमों में से एक है। हम टेलीविजन में विभिन्न कार्यक्रमों और विज्ञापनों को देखते हैं।
विभिन्न टेलीविजन चैनल अपने कार्यक्रमों के ब्रेक स्लॉट में विज्ञापन दिखाते हैं।
इस विज्ञापन में से कुछ वयस्क सामग्री भी हैं जो बच्चों को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं।
कुछ विज्ञापन बुरी तरह से महंगे उत्पाद खरीदने के लिए बच्चों को प्रभावित करते हैं।
दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों के मन और स्वभाव में बहुत प्रभाव
पड़ता है | अकसर बच्चे माता-पिता से जिद करने लगते हमें यह चाहिए | कई बार चीज़ें इतनी महंगी होती है माता-पिता नहीं खरीद सकते और बच्चे इसी कारण गलत रास्ते पर चल पड़ते है | बच्चे दूरदर्शन पर कुछ खाने-पीने के विज्ञापन देख कर गलत चीजों का सेवन करना शुरू कर देते है |
बच्चों और उनके माँ-बाप के बीच रिश्ते खराब हो जाते है | गलत ढंग से टेलीविजन देखते रहने से अनेक हानियों का पता लगा है । इस तरह से दूरदर्शन ने युवा पीढ़ी के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डाला है|