Dowry system in hindi essay
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दहेज क्या है? अपनी इच्छा व यथाशक्ति के अनुकूल शादी में अपनी कन्या को दिए गए धन व वस्तुओं को उपहार कहना चाहिए। जब यह धन अपनी सामर्थ्य से अधिक व वरपक्ष के प्रभाव में देना आवशयक हो जाता है, उसको देना एक सामाजिक प्रथा या मर्यादा बन जाती है तो वह दहेज कहलता है। प्रारम्भ में इस प्रथा का विकास उपहार के रूप में हुआ। समाज का हर वर्ग अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुकूल खुशी से अपनी कन्या को कुछ देता था। बाद में धीरे-धीरे सम्पन्न घरों में दी गई वस्तुओं की तरह अन्य लोगों ने भी लड़की पक्ष से मांग करना शुरू कर दिया। कन्या पक्ष गरीब भी हो तो उसको एक बनी हुई प्रथा के अनुसार वरपक्ष को इतना दहेज देना पड़ता हैं कि वह जीवन भर कर्ज में फंस जाता है और उसकी स्थिति जर्जर जो जाती है।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम- आज दहेज प्रथा में इतने विकार पैदा हो गए हैं कि उन्हें निभाना सबके के लिए असंभव हो गया है। वरपश स्वार्थवाश अधिक से अधिक कीमती वस्तुओं, नकद व जेवर आदि की मांग करने लग गया है। बहुत से लोग जो समर्थ है अधिक से अधिक दहेज देकर अपने सिर का बोझ हल्का कर लेते है, परंतु जो लोग वरपश की मांगे पूरी नहीं कर पाते वो या तो कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं या फिर उनकी लड़कियों का विवाह ही नहीं हो पाता। दूसरी ओर तृष्णा कभी पूरी नहीं होती, लालच ख़बी ना खत्म होने वाली बीमारी है इसलिए कम दहेज लाने वाली लड़कियो को कई प्रकार के शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाने पड़ते, कई घरो मई बहुओं को जला दिया जाता हैं, या अन्य प्रकार से उनकी हत्या कर दी जाती है। इस प्रकार दहेज रूपी दानव ना जाने कितनी मासूम लड़कियों को निगल चुका है।
दहेज प्रथा में सुधार- आधुनिक युग में दहेज जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए शिक्षित युवाओं को आगे आना पड़ेगा। सम्पन्न घरों के युवकों को भी दहेज की राशि स्वीकार नहीं करनी चाहिए। सरकार ने दहेज प्रथा पर रोक लगाने के लिए कानून तो बना दिया परन्तु वह समाज में वयवहारिक रूप से लागू नहीं हो पा रहा हैं क्योंकि समाज अभी इस प्रथा को अपनाने में स्लंग्न है। जब तक समाज स्वयं इसको समाप्त नहीं करेगा तब तक कानून भी कुछ नहीं कर सकता।
अगर एक कन्या के विवाह में वर या उनके बन्धु (माता, पिता इत्यादि) वधु के पक्ष वालों से पैसे, सोना, घर के वस्तु , बिजली उपकरण, वाहन, जमीन इत्यादि मांगते हैं, तो यह दहेज़ होता है | अगर लड़की के बन्धु अपनी मर्जी से कुछ धन या अन्य चीजें देता है, तो ठीक है| अगर वह नहीं दे पाता और लडके वाले जबरदस्ती करते हैं, तो यह बहुत बुरी बात है|
दहेज़ की समस्या धनिक लोगों में उतना नहीं जितना गरीब लोगों में है| गरीब लोग अगर दहेज़ नहीं दे पाते तो उनके लड़कियों की शादी नहीं हो पाती| उन्नीस और बीसवीं सदियों में पुरुष की आधिक्यता औरतों से ज्यादा होने से यह और भी गंभीर और दुर्भर परंपरा बन गयी|
इस समस्या को हाल करने के लिए भारत सरकार ने सन 1961 में एक क़ानून बनाया, दहेज़ देने और लेने के खिलाफ | और 2005 में घरेलु हिंसा से बहुत परेशां होती हुई महिलओंको बचाने के लिए एक और कानून भी बनाया | यह शादी शुदा औरतों के लिए बहुत महत्त्व पूर्ण बना| जितना भी करें कहीं न कहीं एक आध दहेज़ के मारे औरत मर जाती है, यह हम अखबार में या मीडिया में पढ़ते हैं |
बीसवीं सदी में बहुत महान नेता दहेज़ के खिलाफ लडे | लोगों को सिखाया | फिर भी यह चलता रहा | और आजकल सारे लोग पढ़ाई कर रहे हैं| और उनका ज्ञान बढ़ गया है| इस लिए बहुत सारे लोग बदले हैं| लेकिन अभी भी निम्न जातियों में दहेज़ चालू है, जिस से वधु के माता पिता को तकलीफ होता है |
पिछेले पचास सालों से अखबार, टीवी, किताबें, नाटक, पाठशाला में पाठ्य और चलन चित्र in सब में दहेज़ के बारे में खूब लखी गयी| तब यह समस्या के बारे में सामाजिक रूप से लोगों में बदलाव आया| और आजकल तो लडके और लड़कियाँ प्रेम विवाह करते हैं, तो इस लिए दहेज़ की समस्या और भी हाल हो गयी|
आजकल लड़कियों के विद्यावान होने से, उनको नौकरी करने की काबियत बढ़ने से, और उनमें स्वतंत्र भाव बढ़ने से , और लड़कों में दहेज़ न लेकर अपना गौरव रखने की इच्छा और भी ज्यादा होने से अब भारत की हालत बदल रही है| और सरकार औरतों की मदद भी करता है पैसों के रूप में, शादी के लिए|
मेरी यह आशा है और भविष्यवाणी है कि एक दो सदियों में यह समस्या पूरा ख़तम हो जायेगा|