eassy on urbanisation in hindi . plzzzzzzzzzzz snd fast .
tomorrow is my xam
rohit488:
plzzz ans.
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भारत में पिछले कुछ दशकों से जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है । साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या का पलायन भी शहरों एवं बड़े-बड़े महानगरों की ओर हो रहा है । परिणामस्वरूप शहरों में बढती आबादी अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है, जिनका समाधान किया जाना अति आवश्यक है ।
चिन्तनात्मक विकास: बढ़ते हुये शहरीकरण के फलस्वरूप शहरों में अनेक भयंकर समस्यायें उत्पन्न हो रही हैं; जैसे, जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, गरीबी, अपराध, बाल-अपराध, महिलाओं की समस्यायें, भीड़-भाड़, गन्दी बस्तियां, आवास की कमी, बिजली एवं जलपूर्ति की कमी, प्रदूषण, मदिरापान एवं अन्य मादक वस्तुओं का सेवन, यातायात सम्बंधी समस्यायें आदि ।
इस कारण शहरों में दबाब और कुण्ठाएं एवं तनाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है । इन समस्याओं का समाधान किया जाना अत्यावश्यक है । कुछ उपाय हैं जिनके द्वारा शहरों की समस्याओं को समाप्त किया जा सकता है अथवा कम किया जा सकता है, जैसे-नगरों का योजनाबद्ध विकास, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, उद्योगों को बढ़ावा देना, सरकार द्वारा वित्तीय साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना, इत्यादि ।
उपसंहार:
आज देश के समक्ष महत्वपूर्ण प्रश्न है कि हम अपने यहँ। नगर विकास की नियोजित दृष्टि व परिकल्पना किस प्रकार से शुरू करें ? स्पष्ट बात है कि हमारे नगरों को आर्थिक-सामाजिक सद्भावयुक्त; स्वस्थ पर्यावरण वाला तथा राजनीतिक रूप से सकारात्मक स्वरूप वाला बनाने का कार्य किसी अकेले के बस का नहीं है । इसके लिए तो सारे देश को समन्वित प्रयास करना होगा ।
पिछले कुछ दशको में भारतीय समाज और जीवन मे अनेक वृहदस्तरीय परिवर्तन हुये है । ये परिवर्तन महानगरो और शहरो में विशेषरुपेण परिलक्षित होते है । जनसख्या वृद्धि कई साथ-साथ महानगरो और शहरो की जनसख्या बेतहाशा बडी है ।
गावो-कत्त्वो से एक बडी सख्या में लोगों ने इनकी ओर रूख किया है । नतीजा यह है कि सडकों-बाजारो में लोग ही लोग दिखाई पड़ते हैं । अपराध, बाल अपराध, मदिरापान और मादक वस्तुओ का सेवन, आवास की कमी, भीड-भाड और गन्दी बस्तिया, बेरोजगारी और निर्धनता, प्रदूषण और शोर, सचार और यातायात नियन्त्र जैसी अनेक जटिलतम समस्याएं उत्पन्न हुई है ।
किन्तु यदि शहरीकरण दबाव एवं तनाव का स्थान है तो वह सभ्यता एवं संस्कृति का केन्द्र भी है । वे सक्रिय, नावचारयुक्त और सजीव है । यह प्रत्येब व्यक्ति को उसकी अभिलाषाओं एवं आकाक्षाओ को प्राप्त करने हेतु अवसर प्रदान करते है ।
हमें देश का भविष्य जितना ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से सम्बधित है उतना ही शहरो एव महानगर के क्षेत्रों के विकास से । शहरीकरण से उत्पन्न सभी समस्याओ का विश्लेषण करने से पूर्व हमा लिए शहरीकरण की अवधारणा को जानना अत्यन्त आवश्यक है
शहर’ अथवा ‘नगर’ क्या है? इस शब्द का प्रयोग दो अर्थो मे होता है- जनाकिकीय में और समाजशास्रीय रूप में । प्रथम अर्थ मे जनसख्या के आकार, जनसंख्या के घनत्व झै वयस्क पुरुषों मे से अधिकांश के रोजगार के स्वरूप पर बल दिया जाता है, जबकि दूसरे ठ मे ठिसमता अवैयक्तिकता, अन्योन्याश्रयता और जीवन की गुणवता पर ध्यान केंद्रित रहता – परिस्थितियों, परिवर्तन में तेजी और अवैयक्तिक अन्त-क्रिया पर बल दिया है ।”
रुथ ग्लास जैसे विद्वानो ने नगर को जिन कारकों द्वारा परिभाषित किया है वे हैं जनसंख्या का आकार, जनसंख्या की सघनता, प्रमुख आर्थिक व्यवस्था, प्रशासन की सामान्य रचना, और कुछ सामाजिक विशेषताएं । 1961 का आधार 1971, 1981 1991 की जनगणनाओं के अनुसार शहर एव महानगर की परिभाषा इस प्रकार की गई है; जिन क्षेत्रो की जनसंख्या 5000 और 20,000 के बीच है छोटा कस्बा माना जाता है, जिनकी 20,000 और 50,000 के बीच है उन्हें बड़ा कस्वा माना जाता है ।
जिनकी जनसंख्या 50,000 और एक लाख के बीच है, उन्हें शहर कहा जाता है, जिनकी एक लाख और 10 लाख के बीच है उन्हे बडा शहर कहा जाता है, जिन क्षेत्रों में 10 और 50 लाख के बीच व्यक्ति होते हैं उन्हे विशाल नगर कहा जाता है और जिनमे 50 लाख से अधिक व्यक्ति हैं उन्हें महानगर कहा जाता है ।
समाजशास्त्री ‘नगर’ की परिभाषा में जनसख्या के आकार को अधिक महत्व नहीं देते क्योकि न्यूनतम जनसख्या के मानदण्ड काफी बदलते रहते हैं । थिओडॅर्सन ने दशहरी समुदाय की परिभाषा इस प्रकार दी है यह वह रामुदाय है जिसकी जनसंख्या का घनत्व बहुत है, जहाँ गैर-कृषिक व्यवसायों की सर्वाधिकता है, एक ऊँचे स्तर की विशेषता है जिसके फलस्वरूप श्रम-विभाजन जटिल होता है, और स्थानीय शासन की औपचारिक ढंग से व्यवस्था होती है ।
चिन्तनात्मक विकास: बढ़ते हुये शहरीकरण के फलस्वरूप शहरों में अनेक भयंकर समस्यायें उत्पन्न हो रही हैं; जैसे, जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, गरीबी, अपराध, बाल-अपराध, महिलाओं की समस्यायें, भीड़-भाड़, गन्दी बस्तियां, आवास की कमी, बिजली एवं जलपूर्ति की कमी, प्रदूषण, मदिरापान एवं अन्य मादक वस्तुओं का सेवन, यातायात सम्बंधी समस्यायें आदि ।
इस कारण शहरों में दबाब और कुण्ठाएं एवं तनाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है । इन समस्याओं का समाधान किया जाना अत्यावश्यक है । कुछ उपाय हैं जिनके द्वारा शहरों की समस्याओं को समाप्त किया जा सकता है अथवा कम किया जा सकता है, जैसे-नगरों का योजनाबद्ध विकास, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, उद्योगों को बढ़ावा देना, सरकार द्वारा वित्तीय साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना, इत्यादि ।
उपसंहार:
आज देश के समक्ष महत्वपूर्ण प्रश्न है कि हम अपने यहँ। नगर विकास की नियोजित दृष्टि व परिकल्पना किस प्रकार से शुरू करें ? स्पष्ट बात है कि हमारे नगरों को आर्थिक-सामाजिक सद्भावयुक्त; स्वस्थ पर्यावरण वाला तथा राजनीतिक रूप से सकारात्मक स्वरूप वाला बनाने का कार्य किसी अकेले के बस का नहीं है । इसके लिए तो सारे देश को समन्वित प्रयास करना होगा ।
पिछले कुछ दशको में भारतीय समाज और जीवन मे अनेक वृहदस्तरीय परिवर्तन हुये है । ये परिवर्तन महानगरो और शहरो में विशेषरुपेण परिलक्षित होते है । जनसख्या वृद्धि कई साथ-साथ महानगरो और शहरो की जनसख्या बेतहाशा बडी है ।
गावो-कत्त्वो से एक बडी सख्या में लोगों ने इनकी ओर रूख किया है । नतीजा यह है कि सडकों-बाजारो में लोग ही लोग दिखाई पड़ते हैं । अपराध, बाल अपराध, मदिरापान और मादक वस्तुओ का सेवन, आवास की कमी, भीड-भाड और गन्दी बस्तिया, बेरोजगारी और निर्धनता, प्रदूषण और शोर, सचार और यातायात नियन्त्र जैसी अनेक जटिलतम समस्याएं उत्पन्न हुई है ।
किन्तु यदि शहरीकरण दबाव एवं तनाव का स्थान है तो वह सभ्यता एवं संस्कृति का केन्द्र भी है । वे सक्रिय, नावचारयुक्त और सजीव है । यह प्रत्येब व्यक्ति को उसकी अभिलाषाओं एवं आकाक्षाओ को प्राप्त करने हेतु अवसर प्रदान करते है ।
हमें देश का भविष्य जितना ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से सम्बधित है उतना ही शहरो एव महानगर के क्षेत्रों के विकास से । शहरीकरण से उत्पन्न सभी समस्याओ का विश्लेषण करने से पूर्व हमा लिए शहरीकरण की अवधारणा को जानना अत्यन्त आवश्यक है
शहर’ अथवा ‘नगर’ क्या है? इस शब्द का प्रयोग दो अर्थो मे होता है- जनाकिकीय में और समाजशास्रीय रूप में । प्रथम अर्थ मे जनसख्या के आकार, जनसंख्या के घनत्व झै वयस्क पुरुषों मे से अधिकांश के रोजगार के स्वरूप पर बल दिया जाता है, जबकि दूसरे ठ मे ठिसमता अवैयक्तिकता, अन्योन्याश्रयता और जीवन की गुणवता पर ध्यान केंद्रित रहता – परिस्थितियों, परिवर्तन में तेजी और अवैयक्तिक अन्त-क्रिया पर बल दिया है ।”
रुथ ग्लास जैसे विद्वानो ने नगर को जिन कारकों द्वारा परिभाषित किया है वे हैं जनसंख्या का आकार, जनसंख्या की सघनता, प्रमुख आर्थिक व्यवस्था, प्रशासन की सामान्य रचना, और कुछ सामाजिक विशेषताएं । 1961 का आधार 1971, 1981 1991 की जनगणनाओं के अनुसार शहर एव महानगर की परिभाषा इस प्रकार की गई है; जिन क्षेत्रो की जनसंख्या 5000 और 20,000 के बीच है छोटा कस्बा माना जाता है, जिनकी 20,000 और 50,000 के बीच है उन्हें बड़ा कस्वा माना जाता है ।
जिनकी जनसंख्या 50,000 और एक लाख के बीच है, उन्हें शहर कहा जाता है, जिनकी एक लाख और 10 लाख के बीच है उन्हे बडा शहर कहा जाता है, जिन क्षेत्रों में 10 और 50 लाख के बीच व्यक्ति होते हैं उन्हे विशाल नगर कहा जाता है और जिनमे 50 लाख से अधिक व्यक्ति हैं उन्हें महानगर कहा जाता है ।
समाजशास्त्री ‘नगर’ की परिभाषा में जनसख्या के आकार को अधिक महत्व नहीं देते क्योकि न्यूनतम जनसख्या के मानदण्ड काफी बदलते रहते हैं । थिओडॅर्सन ने दशहरी समुदाय की परिभाषा इस प्रकार दी है यह वह रामुदाय है जिसकी जनसंख्या का घनत्व बहुत है, जहाँ गैर-कृषिक व्यवसायों की सर्वाधिकता है, एक ऊँचे स्तर की विशेषता है जिसके फलस्वरूप श्रम-विभाजन जटिल होता है, और स्थानीय शासन की औपचारिक ढंग से व्यवस्था होती है ।
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sorry this photo is not clear
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