Hindi, asked by anupviswas8, 1 year ago

Ek buddhimata man ki hoti hai or ek buddhimata dimaag ki

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Answered by Mernaverma
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दिल जो केवल वही बात मानने को तैयार होता है जो कि व्यक्ति आत्मिक रुप से ग्रहण कर सकता हो, और उससे किसी को दुख नहीं पहुंचता हो, जो दिल चाहता है वह अगर उसे नहीं मिलता हो तो भी वह संतुष्ट रहता है कि चलो शायद अपना नहीं था।

     मन जो केवल वही बात मानता है जिसे मन चाहता है, जो कि व्यक्ति बाहरी रुप से ग्रहण करता है, फ़िर उससे किसी को कितनी भी चोट लगती हो उससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, अगर चाही वस्तु मन को नहीं मिली तो हमें बहुत बुरा लगता है और असंतुष्ट असहज रहता है। मन जो चाहता है हासिल करना चाहता है, फ़िर चाहे वह बुरा हो या भला, इससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।

    जब हम कहते हैं कि अपने दिल के बात बताऊँ तो वह एक सच्ची बात होती है, परंतु जब हम मन की बात करते हैं तो वह हमारे ऊपरी आवरण के अहम को संतुष्ट को करने वाली बात करते हैं।

    अगर दिल की बात पूरी नहीं होती है तो हमें बुरा नहीं लगता है, कि चलो कोई बात नहीं कहकर अपना दिल बहला लेते हैं। परंतु अगर मन की बात पूरी नहीं होती है तो गहरी टीस हमेशा मन के किसी कोने में पलती रहती है और धीरे धीरे अहम के रुप में परिवर्तित होती जाती है।

    दिल और मन कहने को हम एक रुप में ही कहते हैं, परंतु दोनों के कर्म और सोच बिल्कुल अलग हैं, दिल अगर साधु प्रकृति का है तो मन दुष्ट प्रकृति का है।

    दिल और मन का विश्लेषण कैसा लगा, आपके ऊपर क्या हावी रहता है, दिल से बताईयेगा मन से नहीं।

Answered by Suryavardhan1
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 \huge{HEY!!}
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एक बुद्धिमता दिल की होती है और एक दिमाग की | हम कई बार जहां दिमाग का प्रयोग करना होता है वह दिल का प्रयोग कर लेते हैं और जहां दिल का प्रयोग करना होता है वह दिमाग का प्रयोग कर लेते हैं | इन दोनों परिस्थितियों में अगर हम गलत फैसले लेते हैं तो हमें पछताना पड़ता है |

जब भी हम ने अपने दिमाग से लेते हैं तो वह निर्णय लेने के पीछे कहीं ना कहीं हमारा स्वार्थ अवश्य होता है | परंतु जब भी हम अपने दिल से निर्णय लेते हैं तो उसमें हमारा स्वार्थ नहीं होता, है हम हमेशा अगले व्यक्ति की सहायता करने का ही सोचते है |

अगर हम तनाव की स्थिति में होते है, तो हम अपनी गहराई से सोचने की क्षमता को देते हैं उसी समय अगर हमें कोई निर्णय लेना हो तो वह निर्णय हमारे दिमाग से लिया जाता है |हम किसी विवाद के समय दिल से सोचते हैं तो वह हमारी सबसे बड़ी भूल होगी यह हमारे लिए ठीक रहेगा कि विवाद के समय हम दिमाग का प्रयोग करें |

सही निर्णय लेने के लिए हमें दिल और दिमाग दोनों का प्रयोग करना होगा अगर हम पहले अपने दिल से निर्णय लेकर फिर उस निर्णय के बारे में दिमाग से सोचें तो हमसे अपने पूरे जीवन में भी गलती नहीं होगी | जिस वक्त दिल दिमाग पर या फिर दिमाग दिल पर हावी हो जाए उसी समय ही तो हम से गलती हो जाती है |

अतः हमें परिस्थितियों के अनुसार सोचना पड़ता है कि दिल से सोचें या दिमाग से लेकिन इन सबके बाद भी सत्य है कि जो बातें हम दिल से लेते हैं उनकी मान्यता दिमाग से लिए जाने वाले निर्णयों से अधिक होती है |
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