एक ऐसी बच्ची जो अपना टिफिन में रखा खाना प्रतिदिन फेंक देती थी उसे यह समझाते हुए किया गलत है एक बड़ी छेद लिखें और उसे यह भी शिक्षा दीजिए की चीजों की बर्बादी नहीं करनी चाहिए लगभग 50 से 60 शब्दों में
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भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है और यही कारण है कि भोजन झूठा छोड़ना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। मगर आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपना यह संस्कार भूल गए हैं। यही कारण है कि होटल-रेस्त्रां के साथ ही शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में सैकड़ों टन खाना रोज बर्बाद हो रहा है। भारत ही नहीं, समूची दुनिया का यही हाल है। एक तरफ अरबों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन खाना बर्बाद किया जा रहा है।
दुनियाभर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई यानी लगभग 1 अरब 30 करोड़ टन बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। विश्वभर में होने वाली भोजन बर्बादी को रोकने के लिए विश्व खाद्य और कृषि संगठन, अन्तरर्राष्ट्रीय कृषि विकाश कोष और विश्व खाद्य कार्यक्रम ने एकजुट होकर एक परियोजना शुरू की है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आज भी देश में विवाह स्थलों के पास रखे कूड़ाघरों में 40 प्रतिशत से अधिक खाना फेंका हुआ मिलता है।
विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है। अगर इस बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है। विश्व भूख सूचकांक में भारत का 67वां स्थान है। देश में हर साल 25.1 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है लेकिन हर चौथा भारतीय भूखा सोता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं।
हमारा देश पानी की कमी से जूझ रहा है लेकिन अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन को पैदा करने में 230 क्युसिक पानी व्यर्थ चला जाता है जिससे दस करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। एक ऑकलन के मुताबिक अपव्यय से बर्बाद होने वाली धनराशि से पांच करोड़ बच्चों की जिदगी संवारी जा सकती है और उनका कुपोषण दूर कर उन्हें अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है। चालीस लाख लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त किया जा सकता है और पांच करोड़ लोगों को आहार सुरक्षा की गारण्टी तय की जा सकती है।
भूख से मौत या पलायन, वह भी उस देश में जहां खाद्य और पोषण सुरक्षा की कई योजनाएं अरबों रुपये के अनुदान पर चल रही हैं। जहां मध्याह्न भोजन योजना के तहत हर दिन 12 करोड़ बच्चों को दिन का भरपेट भोजन देने का दावा हो। जहां हर हाथ को काम व हर पेट को भोजन के नाम पर हर दिन करोड़ों का सरकारी फंड खर्च होता हो। वैसे भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के 10 लाख बच्चों के भूख या कुपोषण से मरने के आंकड़े संयुक्त राष्ट्र ने जारी किए हैं। देश के 51.14 प्रतिशत परिवारों की आय का जरिया महज अस्थाई मजदूरी है। 4.08 लाख परिवार कूड़ा बीन कर, तो 6.68 लाख परिवार भीख मांग कर अपना गुजारा करते हैं। गांव में रहने वाले 39.39 प्रतिशत परिवारों की औसत मासिक आय दस हजार रुपये से भी कम है।
खाने की बर्बादी रोकने की दिशा में महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। खासकर बच्चों में शुरू से यह आदत डालनी होगी कि उतना ही थाली में परोसें, जितनी भूख हो। एक-दूसरे से बांट कर खाना भी भोजन की बर्बादी को बड़ी हद तक रोक सकता है। भोजन और खाद्यान्न की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपने दर्शन और परम्पराओं के पुर्नचिंतन की जरूरत है। हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। धर्मगुरुओं एवं स्वयंसेवी संगठनों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अभियान सोचें, खाएं और बचाएं भी एक अच्छी पहल है, जिसमें शामिल होकर की भोजन की बर्बादी रोकी जा सकती है। हम सभी को मिलकर इसके लिये सामाजिक चेतना लानी होगी तभी भोजन की बर्बादी रोकी जा सकती है।