Sociology, asked by sanjana8091, 11 months ago

एक निबंध लिखकर उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइए जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता के दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण है और उनकी समस्याओं का अनुभव किया है।

Answers

Answered by adhvaith2007
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Answer: पिछले दो या तीन दशकों में, दुनिया भर की सरकारों ने – भारत सहित – शिक्षा के सभी क्षेत्रों में लिंग संबंधी और सामाजिक पक्षपातों को संबोधित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की है। इस अवधि में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में और उसे शिक्षकों द्वारा कैसे प्रदान किया जा सकता है उसमें आमूल–चूल परिवर्तन हुए हैं। बदलते रुझानों को निम्न प्रकार से संक्षेप में सारांशित किया जा सकता है:

असमताओं को दूर करने पर अधिक जोर

सभी के लिए न्यायोचित शिक्षा

बच्चे पर केंद्रित, जरूरत पर आधारित शिक्षा

सीखने की प्रक्रिया में हर बच्चे की प्रतिभागिता को अधिकाधिक करना।

ये रुझान प्रमुख भारतीय नीति दस्तावेजों में प्रतिबिंबित हैं, जिनमें शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति (एनपीई, 1986), द नेशनल करिकुलम फॉर एलीमेंटरी एंड सेकंडरी एजुकेशन (1988), और द रिवाइज्ड एनपीई एंड प्रोग्राम फॉर एक्शन (1992) इत्यादि शामिल हैं।

अभी हाल ही में, 2005 के राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) ने एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसमें सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण समावेशी शिक्षा प्रदान करने के तरीके शामिल किए गए हैं। वह शिक्षकों द्वारा निम्नलिखित कामों को करने की जरूरत को स्पष्ट करती है:

हर बच्चे की अनोखी जरूरतों के प्रति संवेदनशील होना

बच्चे पर केंद्रित, सामाजिक रूप से प्रासंगिक और न्यायोचित पढ़ाने/सीखने की प्रक्रिया प्रदान करना

उनके सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भों में विविधता को समझना।

आज कोई भी शिक्षक छात्रों द्वारा अपने साथ विद्यालयों में लाई जा रही असंख्य माँगों और अपेक्षाओं की समझ या उनके प्रति संवेदी हुए बिना व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो सकता है। उन्हें, वर्ग, जाति, धर्म, लिंग और निःशक्तता पर ध्यान दिए बिना सभी छात्रों को संलग्न करने और सीखने के सार्थक अवसर प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए। शिक्षा का अधिकार कानून 2009 (RtE) लिंग और सामाजिक श्रेणी पर ध्यान दिए बिना सभी छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के इस निर्णय को अधिक मजबूत और सुदृढ़ करता है, जिसके लिए उसमें शारीरिक और सीखने के पर्यावरणों, पाठ्यचर्या, और अध्यापन प्रथाओं से संबंधित विस्तृत स्वीकार योग्य नियम निर्धारित किए गए हैं।

उल्लेखनीय परिमाण में शोध द्वारा पुष्टि की गई है कि शिक्षकों के कौशल, रवैये और प्रोत्साहन सुविधाहीन और अधिकारहीन समुदायों के बच्चों की संलिप्तता, प्रतिभागिता और उपलब्धि उल्लेखनीय ढंग से बढ़ा सकते हैं। समावेशी विद्यालय कक्षा में शिक्षकों द्वारा न्यायोचित शिक्षा प्रदान करने में विद्यालय नेता की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है। सबसे पहले, यह आवश्यक है कि विद्यालय नेता:

को विश्वास हो कि नतीजे न्यायोचित हो सकते हैं, उनके छात्रों के व्यक्तिगत प्रारंभिक बिंदु चाहे कुछ भी हों

स्टाफ और छात्रों को सभी छात्रों की उपलब्धि को ऊपर उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है

छात्रों की सफलता को उनकी शैक्षणिक उपलब्धि से अधिक आधार पर मापता है।

एक विद्यालय नेता के रूप में, आपको बच्चे के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर (1989) से अवगत होना चाहिए जो हर एक सदस्य देश को अपने सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का आदेश देकर विविधता को अपनाने की उल्लेखनीय प्रेरणा देता है। विद्यालय नेता के रूप में अपने विद्यालय के समुदाय में समावेशी रवैयों और बर्तावों का नेतृत्व करना, उन्हें प्रोत्साहित करना और विकसित करना आपकी जिम्मेदारी है।

Explanation:

Answered by dcharan1150
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भारतीय संविधान और इसका साधारण जनता पर प्रभाव ।

Explanation:

किसी भी गणतांत्रिक देश में संविधान का होना यानी गणतांत्रिक शासन प्रणाली को नीतिगत रूप से निभाना होता हैं, क्योंकि संविधान ही गणतांत्रिक शासन व्यवस्था का मूलभूत निव हैं। वैसे अगर मेँ यहाँ पर साधारण जनता की बात करूँ तो, संविधान जनता के हितों की पुष्टि को ही अपना पहला कर्तव्य मानता हैं।

     उदाहरण के स्वरूप आप हाल ही में हुए तीन तलाक कानून और सबरीमाला मंदिर में      महिलाओं के लिए समान अधिकारों को देख सकते हैं। इन दोनों ही घटनाओं में जनता के हितों की पुष्टि संविधान के संशोधन से किया गया हैं। इसके अलावा पुराने समय में जाती,धर्म, वर्ण और लिंग के मध्य मौजूद भेद-भाव को भी संविधान दूर करके सब को अपना-अपना मौलिक अधिकारों की पुष्टि करवाने में इसका बहुत बड़ा किरदार रहा हैं।

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