Hindi, asked by 7799234892adi, 4 months ago

essay in hindi class vi

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Answered by deepakshikabra997
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Answer:

I have give 3 topic

  1. विद्यार्थी जीवन
  2. स्वतंत्रता दिवस
  3. मेरा जीवन लक्ष्य

Explanation:

1. विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ है, क्योंकि समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर करती है? अतः विद्यार्थी जीवन पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा।  

विद्यार्थी जीवन को स्वर्णिम काले है। इसी काल में भावी जीवन की तैयारी की जाती है तथा शक्तियों का विकास किया जाता है। इस काल में बालक के मस्तिष्क रूपी स्लेट पर कुछ अंकित हो जाता है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।  

विद्यार्थी जीवन की महत्ता को जानते हुए प्राचीन काल में विद्यार्थी को घरों से दूर गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था, गुरु के कठोर अनुशासन को उसे पालन करना पड़ता था। गुरु अपने शिष्यों को तपा-तपाकर स्वर्ण बना देता था।  

लेकिन आधुनिक युग में विद्यार्थी विद्यालयों में विद्याध्ययन करता है। आज गुरु ओं के कठोर अनुशासन का अभाव है। आज शिक्षा का संबंध धन से जोड़ा जाता है। विद्यार्थी यह समझता है कि वह धन देकर विद्या प्राप्त कर रहा है। उसमें गुरुओं के प्रति सम्मान के भाव की कमी पाई जाती है। शिक्षा में नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इन्हीं कारणों से आज विद्यार्थी अनुशासनहीन पश्चिमी सभ्यता का अनुयायी तथा भारतीय संस्कृति से दूर हो गया है।

आदर्श विद्यार्थी के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है

काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।

अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन पंचलक्षणं ॥

 

अर्थात विद्यार्थी को कौए के समान चेष्ठावान, बगुले के समान एकाग्रचित्त, कुत्ते के समान कम सोने वाला, कम खाने वाला तथा विद्याध्ययन के लिए त्याग करने वाला होना चाहिए। दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक विद्यार्थी में इन गुणों का अभाव पाया जाता है। विद्यार्थी ही देश के भविष्य होते हैं। इसलिए विद्यार्थियों में विनयशीलता, संयम आज्ञाकारिता जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।

आज के विद्यार्थी वर्ग के पतन के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों को भी कर्तव्य है कि वे भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हों।

2. स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्र रहने की इच्छा केवल मनुष्य में ही नहीं पशु, पक्षियों में भी पाई जाती है। हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए हमारे देश के अनेक नेताओं ने अपना बलिदान दिया था उन्हीं के बलिदान के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 में हमें अंग्रेजी शासन से मुक्ति मिली। थी। इसी दिन से भारत एक स्वतंत्र देश गिना जाने लगा। तब से लेकर हर वर्ष 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में आयोजित किया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस पर पूरे देश में अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जिनमें देशभक्तों को याद किया जाता है तथा राष्ट्रीय ध्वज फ हराया जाता है। दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले पर भारत के प्रधानमंत्री प्रातः ध्वजारोहण करते हैं। राष्ट्रीय ध्वज को तोपों की सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात प्रधानमंत्री देशवासियों के नाम अपना संदेश देते हैं। इस कार्यक्रम को दूरदर्शन पर सीधा प्रसारित किया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद दिलाता है। हमारा कर्तव्य है कि उन देश भक्तों की कुरबानी को न भूलें जिन्होंने अपने मस्तक देकर हमें स्वतंत्रता का उपहार प्रदान किया। इस दिन हमें देश की एकता और अखंडता की रक्षा । का प्रण लेना चाहिए।

3. मेरा जीवन लक्ष्य

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का कुछ न कुछ लक्ष्य अवश्य होता है। वह अपने भविष्य के बारे में तरह-तरह के सपने संजोता है तथा उस लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश भी करता है; जैसे-कुछ युवक डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि बनना चाहते हैं। मैंने भी अपने जीवनकाल के बारे में एक स्वप्न देखा है। मैं बड़ा होकर एक चिकित्सक बनना चाहता हूँ परंतु मेरे माता-पिता मुझे इंजीनियर बनाना चाहते हैं लेकिन मैंने प्रण लिया है कि मैं बड़ा होकर एक चिकित्सक ही बनूंगा।  

सब लोग समझते हैं कि चिकित्सक के व्यवसाय में खूब आय होती है तथा आज के समय में लोग धनी व्यक्ति को ही सम्मान देते हैं, लेकिन मैंने चिकित्सक बनने का लक्ष्य धन की कमाई को ध्यान में रखकर निर्धारित नहीं किया है। मैंने यह लक्ष्य इसलिए निर्धारित किया है क्योंकि में आज देखता हूँ कि अधिकांश गरीब लोगों को चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती जिसके कारण उन्हें अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा कभी-कभी तो उनके परिवार के सदस्य की बिना उपचार के असमय ही मृत्यु हो जाती है या जीवन भर रोगों से घिरे रहते हैं। मैं एक चिकित्सक बनकर इन गरीब दीन-दुखियों की सेवा में भी कुछ समय लगाना चाहता हूँ। इसका अर्थ यह नहीं कि मैं अपने परिवार के लिए कुछ नहीं कमाऊँगा। धनी व्यक्तियों से पूरी फीस लँगा, पर अपनी कमाई का कुछ भाग गरीबों के लिए खर्च करूंगा। मैं कमाई के साथ-साथ समाज सेवा करके मनुष्य के कर्तव्य को पूरा करने का प्रयास करूंगा। इससे मैं समाज सेवकों एवं उनकी संस्थाओं से संपर्क करूंगा।

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