Essay on Badalta vyavhar tootta parivaar
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समाज यानी लोगों का समूह है, सभी लोगों का मिल जुल कर साथ रहना, मानवीय सुरक्षा आदि को ही समाज कहते हैं। समाज संस्कृत के दो शब्दों सम्+अज से मिलकर बना है। सम् का अर्थ "एक साथ" तथा अज का अर्थ "साथ रहना" होता हैं। जब भी समाज का नाम हमारे दिमाग में आता है तो चार तरंगे हमारे दिमाग में स्वत: ही उत्पन होती है- प्रशासनिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, इसके बाद बदलाव की भूमिका सामने आती हैं।
एक ज़माना था जब परिवार में कितने ही लोग होते थे और परिवार हँसता खेलता था और एक दूसरे से एक एकदम जुड़ा रहता था. पैसे कम होते थे पर उसमे भी बहुत बरकत होती थी। घर में कोई ख़ुशी की बात होती थी तो बाहर वालों को बुलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। आज परिवार कितने छोटे हो गए हैं और टूटते जा रहे हैं, हमारे रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। माँ बाप, भाई बहिन, चाचा चची, मामा मामी इत्यादि रिश्ते दिखने में तो बहुत प्रिय लगते हैं, लेकिन उनमे मिठास नाम की चीज़ बिलकुल ख़तम सी होती जा रही है. हरेक को अपनी अपनी पड़ी है कि बस सब कुछ हमें मिल जाये।
पीछे मुड़ के देखते तक नहीं कि हम अपनी इस विचारधारा से कितना कुछ खोते चले जा रहे हैं। कोई दिन ऐसा नहीं होगा जब कोई परिवार न टूट रहा हो। एक बाप कितने चाव से घर की आधारशिला रखता है, लेकिन आज उस आधारशिला की ईंटे इतनी कमज़ोर पड़ गई हैं कि जितना मर्ज़ी सीमेंट लगा लो, वो आपस में जुड़ने का नाम ही नहीं लेती। क्या हो गया है हमको, क्यों ऐसा कर रहे हैं हम? बातें तो हम बहुत करते हैं, लेकिन खुद में आये बदलाव को बिलकुल नज़र अंदाज़ कर रहे हैं. दिखावे के लिए रिश्तों को निभाना कुछ एहमियत नहीं रखता, जब तक आप उसे दिल से न माने।
आज आप खुश हैं और आप चाहते हैं सब आपकी ख़ुशी में शामिल हों। लेकिन ऐसी ख़ुशी का क्या फायदा जिसमे किसकी दुआ, अपनों का प्यार शामिल ना हो. आज जो आपके पास है, कल वो किसी और के पास भी हो सकता है। दूसरों को अपना बनाने के लिए आप उनके पीछे भाग रहे हैं और जो आपके अपने हैं उनसे आप बिना वजह कट रहे हैं,क्यों? बिना मतलब कोई आपके पास नहीं फटकेगा, लेकिन आपका अपना जिसे आप बेगाना समझ रहे हैं, ख़ुशी ख़ुशी हर मोड़ पे आपका साथ देगा।
अगर आपको खुद अपने पर विश्वास नहीं, तो क्या खाक आप किसी और पे विश्वास करेंगे। अन्दर से आप बिलकुल खोखले हो चुके हैं, लेकिन दिखावा करने से आप बाज़ नहीं आते। लोगों का क्या है, उन्हें तो थोड़ी देर की ख़ुशी और खाने पीने को चाहिए, पर आपके अपने परिवार के लोग जो हर कदम पर आपको सहारा दे सकते हैं, उनको आप किसी के बहकावे में आकर अपने से दूर कर रहे हैं. अगर कुछ टूट जाये तो उसे जोड़ना बहुत मुश्किल है, कुछ बिखर जाये तो उसे फिर से समेटा नहीं जा सकता.