Essay On Dussehra In Hindi For Class 6
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दशहरा (विजयादशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि)। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
दशहरा
TYPICAL Dussehra Celebrations 02 Oct 2006.jpg
रावण एवं मेघनाद के पुतले
आधिकारिक नाम
दशहरा
अन्य नाम
विजयादशमी, बिजोया, आयुध पूजा
अनुयायी
हिन्दू, भारतीय
प्रकार
Hindu
उद्देश्य
धार्मिक निष्ठा, उत्सव, मनोरंजन
उत्सव
सार्वजनिक सजावट, झांकियाँ
अनुष्ठान
रामलीला, रावण-दहन, आयुध-पूजन
आरम्भ
रामायण काल से
तिथि
अश्विन दशमी
समान पर्व
नवरात्रि
इस दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं (जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि)। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।[1]
अनुक्रम
महत्त्व संपादित करें
लंकापति दशानन रावण
दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर 'सिलंगण' के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामवासी सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
भारत के विभिन्न प्रदेशों का दशहरा संपादित करें
रावण के पुतले दहन से पूर्व
रावण के पुतले का दहन
रावण के पुतले दहन के बाद
मैसूर के मैसूर महर की विजयादशमी के दिन दीपमालिका से सज्जा की जाती है।
मैसूर के हाथियों का श्रंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है।।
बंगाल में दुर्गा पूजा
रामलीला मंचन
दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं।
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य स्थानों की ही भाँति यहाँ भी दस दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। स्त्रियाँ और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी आदि-आदि जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूम धाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं। इस जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नटी नृत्य करते हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है।[2]
पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं, व मैदानों में मेले लगते हैं।
बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को राम की रावण पर विजय ना मानकर, लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं। यहां यह पर्व पूरे ७५ दिन चलता है। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है। प्रथम दिन जिसे काछिन गादि कहते हैं, देवी से समारोहारंभ की अनुमति ली जाती है। देवी एक कांटों की सेज पर विरजमान होती हैं, जिसे काछिन गादि कहते हैं। यह कन्या एक अनुसूचित जाति की है, जिससे बस्तर के राजपरिवार के व्यक्ति अनुमति लेते हैं। यह समारोह लगभग १५वीं शताब्दी से शुरु हुआ था। इसके बाद जोगी-बिठाई होती है, इसके बाद भीतर रैनी (विजयदशमी) और बाहर रैनी (रथ-यात्रा) और अंत में मुरिया दरबार होता है। इसका समापन अश्विन शुक्ल त्रयोदशी को ओहाड़ी पर्व से होता है।[3
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भारत में दशहरा त्यौहार का बहुत महत्व है दशहरा भारत में पौराणिक काल से ही मनाया जाता आ रहा है। दशहरा हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ त्योहार है यह 10 दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके मनाए जाने का कारण पौराणिक कथाओं में सुनने को मिलता है जिसके अनुसार जब रावण द्वारा माता सीता का हरण कर लिया गया था l तब भगवान श्रीराम ने रावण से आग्रह किया था कि वह मां सीता को सकुशल वापस लौटा दी नहीं तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। लेकिन रावण अपने अहंकार में इतना चूर हो गया था कि उसने भगवान राम की बात नहीं मानी।अंत में भगवान श्रीराम ने विजयदशमी के के दिन लंका नरेश रावण का वध कर दिया। दशहरा त्योहार पर रावण का पुतला जलाया जाता है और इससे यह संदेश मिलता है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है।दशहरा भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। दशहरा त्योहार को पूरे भारत में अलग-अलग तरह से पूरे हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है। यह त्योहार अशिवन महीने के शुक्ल पक्ष में दस दिनों तक मनाया जाता है।
भारत में यह त्यौहार विभिन्न रीति रिवाजों के अनुसार विभिन्न प्रांतों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है जैसे कि पश्चिमी बंगाल झारखंड बिहार आदि राज्यों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है
यह पूजा 9 दिनों तक लगातार की जाती है जिसमें प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।
विजयदशमी के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया था और उसी दिन भगवान राम ने भी अहंकारी रावण का वध किया था। उत्तर भारत में इन 9 दिनों में रामलीला का मंचन किया जाता है
जिसमें बताया जाता है कि भगवान राम ने रावण का वध कैसे किया और दसवें दिन रावण के साथ मेघनाद, कुंभकर्ण का पुतला भी जलाया जाता है।
दशहरा त्योहार के माध्यम से बताया जाता है कि असत्य कितना भी मजबूत क्यों ना हो सत्य की एक किरण उसे हरा ही देती है। इस त्यौहार को असत्य पर सत्य की जीत पर मनाया जाता है।