Hindi, asked by umbrella22, 8 months ago

Essay on ISRO in hindi....

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Answered by Anonymous
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भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 15 अगस्त 1969 में की गयी थी। तब इसका नाम 'अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति' (INCOSPAR) था। भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। ... इसरो ने बाद में दो अन्य रॉकेट विकसित किए।

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Answered by biswaskumar3280
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Explanation:

1962 में जब भारत सरकार द्वारा भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्‍कोस्‍पार) का गठन हुआ तब भारत ने अंतरिक्ष में जाने का निर्णय लिया। कर्णधार, दूरदृष्‍टा डॉ. विक्रम साराभाई के साथ इन्‍कोस्‍पार ने ऊपरी वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए तिरुवनंतपुरम में थुंबा भूमध्‍यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र (टर्ल्‍स) की स्‍थापना की।

1969 में गठित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने तत्‍कालीन इन्‍कोस्‍पार का अधिक्रमण किया। डॉ. विक्रम साराभाई ने राष्‍ट्र के विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका तथा महत्‍व को पहचानते हुए इसरो को विकास के लिए एजेंट के रूप में कार्य करने हेतु आवश्‍यक निदेश दिए। तत्‍पश्‍चात् इसरो ने राष्‍ट्र को अंतरिक्ष आधारित सेवाएँ प्रदान करने हेतु मिशनों पर कार्य प्रारंभ किया और उन्‍हें स्‍वदेशी तौर पर प्राप्‍त करने के लिए प्रैद्योगिकी विकसित की।

इन वर्षों में इसरो ने आम जनता के लिए, राष्‍ट्र की सेवा के लिए, अंतरिक्ष विज्ञान को लाने के अपने ध्‍येय को सदा बनाए रखा है। इस प्रक्रिया में, यह विश्‍व की छठी बृहत्‍तम अंतरिक्ष एजेंसी बन गया है। इसरो के पास संचार उपग्रह (इन्‍सैट) तथा सुदूर संवेदन (आई.आर.एस.) उपग्रहों का बृहत्‍तम समूह है, जो द्रुत तथा विश्‍वसनीय संचार एवं भू प्रेक्षण की बढ़ती मांग को पूरा करता है। इसरो राष्‍ट्र के लिए उपयोग विशिष्‍ट उपग्रह उत्‍पाद एवं उपकरणों का विकास कर, प्रदान करता है: जिसमें से कुछ इस प्रकार हैं – प्रसारण, संचार, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन उपकरण, भौगोलिक सूचना प्रणाली, मानचित्रकला, नौवहन, दूर-चिकित्‍सा, समर्पित दूरस्‍थ शिक्षा संबंधी उपग्रह।

इन उपयोगों के अनुसार, संपूर्ण आत्‍म निर्भता हासिल करने में, लागत प्रभावी एवं विश्‍वसनीय प्रमोचक प्रणालियां विकसित करना आवश्‍यक था जो ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (पी.एस.एल.वी.) के रूप में उभरी। प्रति‍ष्ठित पी.एस.एल.वी. अपनी विश्‍वसनीयता एवं लागत प्रभावी होने के कारण विभिन्‍न देशों के उपग्रहों का सबसे प्रिय वाहक बन गया जिसने पहले कभी न हुए ऐसे अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया। भू तुल्‍यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट (जी.एस.एल.वी.) को अधिक भारी और अधिक माँग वाले भू तुल्‍यकाली संचार उपग्रहों को ध्‍यान में रखते हुए विकसित किया गया।

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