essay on mero jeevan ko lakshya in nepali with conclusion
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लक्ष्यपूर्ण जीवन के लाभ – जब से मेरे भीतर यह सपना जागा है, तब से मेरे जीवन में अनेक परिवर्तन आ गये हैं | अब मैं अपनी पढाई की और अधिक ध्यान देने लगा हूँ | पहले क्रिकेट के खिलाडियों और फ़िल्मी पत्रिकाओं में गहरी रूचि लेता था, अब में ज्यामिति की रचनाओं और रासायनिक मिश्रणों में रूचि लेने लगा हूँ | अब पढ़ाई में रस आने लगा है | निरुदेश्य पढ़ाई बोझ थी | लक्ष्बुद्ध पढ़ाई में आनंद है | सच ही कहा था कलाईल ने – “ अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ, और इसके बाद अपना सारा शरीरिक और मानसिक बल, जो ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसमें लगा दो |”
मेरा संकल्प – मैंने निश्चय किया है कि मैं इंजीनियर बनकर एक संसार को नए-नए साधनों से संपन्न करूँगा | मेरे देश में जिस वस्तु की आवश्यकता होगी, उसके अनुसार मशीनों का निर्माण करूँगा | देश में जल-बिजली , सड़क या संचार-जिस भी साधन की आवश्यकता होगी, उसे पूरा करने में अपना जीवन लगा दूँगा |
मैं गरीब परिवार का बालक हूँ | मेरे पिता किराए के एक मकान में रहे हैं | धन की तंगी के कारण हम अपना माकन नहीं बना पाए | यही दशा मेरे जैसे करोंड़ों बालकों की है | मैं बड़ा होकर भवन-निर्माण की ऐसी सस्ती, सुलभ योजनाओं में रूचि लूँगा | जिससे माकनहीनों को मकान मिल सकें |
मैंने सुना है कि कई इंजीनियर धन के लालच में सरकारी भवनों, सड़कों, बाँधों में घटिया सामग्री लगा देते हैं | यह सुनकर मेरा ह्र्दय रो पड़ता है | मैं कदपि यह पाप-कर्म नहीं करूँगा, न अपने होते यह काम किसी को करने दूँगा |
लक्ष्य-पूर्ति का प्रयास – मैंने अपने लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करने आरम्भ कर दिए हैं | गणित और विज्ञान में गहरा अध्ययन कर रहा हूँ | अब मैं तब तक आराम नहीं करूँगा, जब तक कि लक्ष्य को पा न लूँ |
कविता की ये पंक्तियाँ मुझे सदा चलते रहने की प्रेरणा देती हैं –
धनुष से छुटता है बाण कब पथ में ठहरता |
देखते ही देखते वह लक्ष्य का ही बेध करता |
लक्ष्य-प्रेरित बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसे ?
लक्ष्य तक पहूँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा ?
निबंध नंबर – 02
जीवन का उद्देश्य
Jeevan Ka Udeshya
‘इस पथ का उद्देश्य नहीं है, श्रांत भवन में टिके रहना, किंतु पहुंचना उस समय तक, जिसके आगे राह नहीं।’
सृष्टि के समस्त चराचरों में मानव सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि केवल उसी में बौद्धिक क्षमता, चेतना, महत्वाकांक्ष होती है। केवल मनुष्य ही अपने भविष्य के लिए अपने समने संजो सकता है, अपने जीवन के लक्ष्य का निर्धारण कर सकता है तथा उसे पाने के लिए सतत् प्रयत्व करने में सक्षम होता है।
मैंने भी अपने जीवन के बारे में एक लक्ष्य निर्धारित किया है, और वह है- एक डॉक्टर बनने का।विश्व में कई प्रकार के व्यवसाय हैं, उद्योग धंधे हैं, नौकरियां और कार्य-व्यापार हैं। उनमें से कई बड़े ही मानवीय दृष्टि से बड़े ही संवेदनशील हुआ करते हैं। उसका सीधा संबंध मनुष्य के प्राणों और सारे जीवन के साथ हुआ करते हैं। डॉक्टर का धंधा कुछ इसी प्रकार का पवित्र, मानवीय संवेदनाओं से युक्त प्राण-दान और जीवन रक्षा की दृष्टि से ईश्वर के बाद दूसरा, बल्कि कुछ लोगों की दृष्टि में ईश्वर के समान ही हुआ करता है। मेरे विचार में ईश्वर तो केवल जन्म देकर विश्व में भेज दिया करता है। उसके बाद मनुष्य -जीवन की रक्षा का सारा उत्तरदायित्व वह डॉक्टरों के हाथ में सौंप दिया करता है। इस कारण बहुधा मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा करते हैं कि यदि मैं डॉक्टर होता तो?