essay on mother teresa in hindi
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मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 को एक अल्बानियाई परिवार में उस्कुव नामक स्थान में हुआ था, जो अब मेसिडोनिया गणराज्य में है | उनके बचपन का नाम एग्नेश गोंक्शा बोजक्सिहाउ था | जब वे मात्र 9 वर्ष की थीं, उनके पिता का देहांत हो गया | फिर उनकी मां ने उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली | उन्हें बचपन में पढ़ना, प्रार्थना करना और चर्च में जाना अच्छा लगता था इसलिए सन 1928 में वे आयरलैंड की संस्था ‘सिस्टर्स ऑफ लोरेटो’ में शामिल हो गईं, जहां सोलहवीं सदी के एक प्रसिद्ध संत के नाम पर उनका नाम ‘टेरेसा’ रखा गया और बाद में लोगों के प्रति ममतामयी व्यवहार के कारण जब दुनिया ने उन्हें ‘मदर’ कहना शुरू किया तब वे ‘मदर टेरेसा’ के नाम से प्रसिद्ध हो गईं |
धार्मिक जीवन की शुरुआत के बाद वे इससे संबंधित कई विदेशी-यात्राओं पर भी गईं | इसी क्रम में 1929 ई. की शुरूआत में वे मद्रास (भारत) पहुँचीं | फिर उन्हें कलकत्ता में शिक्षिका बनने हेतु अध्ययन करने के लिए भेजा गया | अध्यापन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वे कलकत्ता के लोरेटो एटली स्कूल में अध्यापन कार्य करने तथा अपने कर्तव्यनिष्ठा एवं योग्यता के बल पर प्रधानअध्यापिका के पद पर प्रतिष्ठित हुईं | प्रारंभ में कलकत्ता में ही उनका निवा था, किन्तु बाद में वे सर्कुल रोड स्थित आवास में रहने लगीं | वह आवास आज विश्वभर में ‘मदर हाउस’ के नाम से जाना जाता है |
प्रस्तावना- ‘मदर टेरेसा’ दया, सेवा और ममता की साक्षात मूर्ति थीं। उन्होंने अपाहिजों, अंधों, लूले लंगड़ों तथा दीन हीनों की सेवा को अपना धर्म बना लिया था। संसार भर के दीन हीन लोग उन्हें पाकर सनाथ हो गए।जीवन-परिचय- मदर टेरेसा का जन्म 28 अगस्त 1910 में यूगोस्लाविया में हुआ था। इनका बचपन में नाम था अगनेस गोवसा बेयायू। 12 वर्ष की अवस्था में आप संन्यासिनी बन गईं और संसार के मानव मात्र की सेवा का व्रत ले लिया।
भारत में सेवा कार्य- मदर टेरेसा ने भारत में सबसे पहले दार्जलिंग में सेवा का कार्य आरम्भ किया। सन् 1929 से 1948 तम आप निरक्षरों को पढ़ाने का कार्य करती रहीं। आप बच्चों को पढ़ाने में भी रूचि लेती थीं। आप को बच्चों से बहुत प्रेम था। सन् 1931 में आपने अपना नाम बदल लिया। उन्होंने अपना नाम रखा टेरेसा। सन् 1946 में ईश्वर की प्रेरणा से और मानव मात्र के कष्टों को दूर करने की प्रतिज्ञा ली। आपने अपना सारा जीवन पीडि़तों, दलितों दीन और दुखियों की सेवा में लगा दिया। आपका विचार था कि यदि रोग के होते ही उस पर ध्यान देना आरम्भ कर दें तो रोग शीघ्र ही दूर हो जाता है।
हदय होम की स्थापना-मदर टेरेसा ने सन् 1952 में कलकत्ता में हदय होम की स्थापना की। उन्होंने सन् 1957 में ‘कुष्ठ रोगालय’की स्थापना की। जो रोगी दूसरे अस्पतालों से निराश होकर यहाँ आते थे, उन्हें वे तत्काल ही इस रोगालय में प्रवेश दे देती थीं। आपने आसनसोल में कुष्ठ रोगियों के लिए शांतिगृह की भी स्थापना की। उन्होंने कलकत्ता में धीरे धीरे 60 सेवा केन्द्र खोले। उनके आदर्शें से प्रेरणा प्राप्त कर 700 के लगभग संन्यासिनियाँ सेवा कार्य में जुटी हुई हैं।
पुरस्कार- सन् 1931 में मदर टेरेसा को 23वां पुरस्कार प्राप्त हुआ। आपको शांति पुरस्कार और टेम्पलेटन फाउण्डेशन पुरस्कार भी उन्हें मिले। आप उन्हें उनकी सेवाओं के लिए ‘सेविकोत्तम’ की पदवी भी दी गई। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया। उन्हें सन् 1979 में उनके मानव-कल्याण के कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। आपने सभी पुरस्कारों से मिली धन राशि को मानव के कार्यों में लगा दिया।
उपसंहार- मानव सेवा में लगे रहने के कारण उन्हें बहुत पुरस्कार मिले। जनता ने भी दिल खोलकर आपका सम्मान किया। यह सब होते हुए भी आप में घमंड का लेष भी नहीं आया। सेवा कार्य को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया था और उसी में उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया। मदर टेरेसा वास्तव में दया, सेवा और ममता की मूर्ति थीं। उनके दर्शन मात्र से कई लोगों को इतनी राहत मिली थी कि वे अपना दुख तक भूल जाते थे। उन्होंने अपने सेवा कार्यों से लोगों के हदय को जीत लिया था। यही कारण है कि लोग आज भी मदर टेरेसा का नाम आदर और श्रद्धा से लेते है l
मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थी जो “गटरों की संत” के रुप में भी जानी जाती थी। वो पूरी दुनिया की एक महान शख्सियत थी। भारतीय समाज के जरुरतमंद और गरीब लोगों के लिये पूरी निष्ठा और प्यार के परोपकारी सेवा को उपलब्ध कराने के द्वारा एक सच्ची माँ के रुप में हमारे सामने अपने पूरे जीवन को प्रदर्शित किया। उन्हें “हमारे समय की संत” या “फरिश्ता” या “अंधेरे की दुनिया में एक प्रकाश” के रुप में भी जनसाधारण द्वारा जाना जाता है। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।
उनका जन्म के समय अग्नेसे गोंकशे बोज़ाशियु नाम था जो बाद में अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धियों के बाद मदर टेरेसा के रुप में प्रसिद्ध हुयी। एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में मेसेडोनिया के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 को उनका जन्म हुआ था। अपने शुरुआती समय में मदर टेरेसा ने नन बनने का फैसला कर लिया था। 1928 में वो एक आश्रम से जुड़ गयी और उसके बाद भारत आयीं (दार्जिलिंग और उसके बाद कोलकाता)।
एक बार, वो अपने किसी दौरे से लौट रही थी, वो स्तंभित हो गयी और उनका दिल टूट गया जब उन्होंने कोलकाता के एक झोपड़-पट्टी के लोगों का दुख देखा। उस घटना ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था और इससे कई रातों तक वो सो नहीं पाई थीं। उन्होंने झोपड़-पट्टी में दुख झेल रहे लोगों को सुखी करने के तरीकों के बारे में सोचना शुरु कर दिया। अपने सामाजिक प्रतिबंधों के बारे में उन्हें अच्छे से पता था इसलिये सही पथ-प्रदर्शन और दिशा के लिये वो ईश्वर से प्रार्थना करने लगी।