essay on 'nadi ki atmakatha' in hindi
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मैं नदी हूं आज मैं आपको मेरे उद्गम से लेकर अत तक के सफर की आत्मकथा सुनाने जा रही हूं. मेरे उद्गम के कई स्थान है मैं कभी हिमालय से बहती हूं तो कभी पहाड़ों से, झरनों से तो कभी मैं वर्षा के जल से अस्तित्व में आती हूं. मैं जब बहना चालू करती हूं तब मैं बहुत कम स्थान घेरती हूँ.
लेकिन जैसे-जैसे मैं मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं वैसे-वैसे मेरा आकार भी बड़ा होता जाता है और मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने के बाद मेरा आकार इतना बड़ा हो जाता है कि मेरे एक तट से दूसरे तट पर जाने के लिए नाव या पुल का सहारा लेना पड़ता है.
यह उसी प्रकार है जिस प्रकार मनुष्य जन्म लेता है तो छोटा होता है और जैसे-जैसे समय बीतता है वह बड़ा होता चला जाता है उसी प्रकार जब मेरा जन्म होता है तो मैं बहुत छोटी होती हूं लेकिन दूरी बढ़ने के साथ मैं भी बड़ी होती जाती हूं.
मैं जब बहना शुरू करती हूं तब मेरे सामने कई प्रकार की बाधाएं आती हैं जैसे कभी कोई बड़ा पहाड़ आ जाता है तो मैं डरती नहीं हूं मैं उसे काट कर आगे बढ़ जाती हूं. मुझ में बहुत शक्ति होती है मैं किसी भी कठोर से कठोर वस्तु को काट सकती हूं चाहे वो बड़ा पहाड़ी क्यों ना हो.