Hindi, asked by soabakther3422, 1 year ago

Essay on nar nari ek saman in 2000 words in Hindi

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Answered by Jitendrabharti
104
शारीरिक संरचना के अतिरिक्त नर-नारी में कोई अन्तर नहीं है । हमारे पुरुष-प्रधान समाज में नारी को पुरुष से कमजोर माना जाता रहा है । आधुनिक युग में नारी ने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को सिद्ध किया है । अपनी योग्यता के बल पर वह कई क्षेत्रों में पुरुषों को भी मात दे रही है ।

हमारे देश के संविधान में नर-नारी को एक समान अधिकार प्राप्त हैं । नर-नारी में भेद-भाव करना कानून ही दृष्टि में, अपराध है । परन्तु अधिकांश पुरुष-वर्ग आज भी नर को श्रेष्ठ मानकर नारी की अवहेलना कर रहा है । वास्तव में नर-नारी एक-दूसरे के पूरक हैं । दोनों के परस्पर सहयोग से ही जीवन, समाज सम्भव है ।

नारी  आरम्भ से ही घर-परिवार और बच्चों की देखभाल करती आ रही है । सन्तानोत्पत्ति और बच्चों के लालन-पालन का कठिन कार्य नारी के द्वारा ही सम्भव हो सका है । पुरुष के लिए यह कार्य करना सम्भव नहीं है । पुरुष घर से बाहर राज-काज सम्भालने अथवा मेहनत-मजदूरी के द्वारा परिवार का भरण-पोषण आदि कार्य करता आ रहा है ।

लेकिन नारी घर-परिवार सम्भालने के साथ मेहनत-मजदूरी के कार्यों में भी पुरुष को सहयोग देती रही है । ग्रामीण महिलाएँ गृह कार्य भी करती हैं और खेत-खलीहानों में भी पुरुषों को सहयोग देती हैं ।  मजदूर वर्ग की महिलाएँ भी पुरुषों के साथ कठिन परिश्रम करती हैं ।

शिक्षा एवं स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त करने के उपरान्त तो आज नारी घर से बाहर निकलकर प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष के कन्धे से  कन्धे मिलाकर आगे बढ़ रही है । पुरुष के समान आज नारी राज-काज भी सम्भाल रही है और अन्य क्षेत्रों में भी अपनी योग्यता प्रमाणित कर रही है ।

वह किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है और स्पष्टतया यह सिद्ध कर रही है कि नर-नारी एक समान हैं । वास्तव में समानता के इस युग में समाज के विकास की गति बड़ी है । पहले नारी को चूल्हे-चौके तक सीमित किया हुआ था । विकास की जिम्मेदारी केवल पुरुष की हुआ करती थी ।

नारी की प्रतिभाओं पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था । लेकिन आज समाज की मानसिकता में बदलाव आ रहा है । आज माता-पिता भी लड़का-लड़की में अधिक भेद-भाव नहीं करते ।  लड़कियों को लडकों की भाँति शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाता है । उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।

आज किसी कारणवश यदि परिवार के पुरुषों द्वारा घर का खर्च नहीं चलाया जाता तो नारी इस दायित्व को उत्साहित होकर सम्भालती है ।  प्रत्येक विषम परिस्थिति में वह यही सिद्ध करने का प्रयास करती है कि नर-नारी एक समान हैं ।

समाज में आया यह सुखद परिवर्तन है । आज यह सिद्ध हो गया है कि नारी को घर की चारदीवारी में कैद करके रखना न्यायोचित नहीं था । वास्तव में नर-नारी, दोनों में ही समाज के विकास को गति प्रदान करने की योग्यता है । पहले नारी की प्रतिभाओं पर अंकुश लगाकर समाज के विकास की गति में अवरोध ही उत्पन्न किया जाता था । आज नारी समाज एवं राष्ट्र के विकास में अपना भरपूर सहयोग दे रही है ।

अपनी प्रतिभाओं से उसने यह प्रमाणित कर दिया है कि परिवार की लड़कियाँ भी परिवार को प्रतिष्ठा  एवं  सम्मान दिला सकती हैं । वास्तव में नर हो या नारी, प्रत्येक व्यक्ति की कार्य-क्षमता में अन्तर हो सकता है ।

नारी को कोमल शरीर होने के कारण अधिक शारीरिक श्रम के कार्यो के अयोग्य माना जाता रहा है । लेकिन नारी ने इस मान्यता को गलत सिद्ध कर दिया है । नारी ने विभिन्न खेल प्रतियोगिताएँ जीतकर, हिमालय की ऊँची चोटियों को छूकर, पुलिस विभाग की नौकरी में खतरनाक अपराधियों को पटकनी देकर अपनी शारीरिक क्षमताओं को भी प्रमाणित किया है ।

दूसरी ओर एक पुरुष अधिक शारीरिक श्रम के कार्यो को करने में सदैव सफल होता हो, यह भी आवश्यक नहीं है । नर और नारी, दोनों की अपनी-अपनी कार्य-क्षमताएँ हैं । परन्तु दोनों की ही समाज को आवश्यकता है । नर-नारी में किसी भी दृष्टिकोण से भेद-भाव करना उचित नहीं है । वास्तव में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, दोनों एक समान हैं और यही सत्य है ।

Answered by ansh28747
31

Answer:

शारीरिक संरचना के अतिरिक्त नर-नारी में कोई अन्तर नहीं है । हमारे पुरुष-प्रधान समाज में नारी को पुरुष से कमजोर माना जाता रहा है । आधुनिक युग में नारी ने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को सिद्ध किया है । अपनी योग्यता के बल पर वह कई क्षेत्रों में पुरुषों को भी मात दे रही है ।

हमारे देश के संविधान में नर-नारी को एक समान अधिकार प्राप्त हैं । नर-नारी में भेद-भाव करना कानून ही दृष्टि में, अपराध है । परन्तु अधिकांश पुरुष-वर्ग आज भी नर को श्रेष्ठ मानकर नारी की अवहेलना कर रहा है । वास्तव में नर-नारी एक-दूसरे के पूरक हैं । दोनों के परस्पर सहयोग से ही जीवन, समाज सम्भव है ।

नारी  आरम्भ से ही घर-परिवार और बच्चों की देखभाल करती आ रही है । सन्तानोत्पत्ति और बच्चों के लालन-पालन का कठिन कार्य नारी के द्वारा ही सम्भव हो सका है । पुरुष के लिए यह कार्य करना सम्भव नहीं है । पुरुष घर से बाहर राज-काज सम्भालने अथवा मेहनत-मजदूरी के द्वारा परिवार का भरण-पोषण आदि कार्य करता आ रहा है ।

लेकिन नारी घर-परिवार सम्भालने के साथ मेहनत-मजदूरी के कार्यों में भी पुरुष को सहयोग देती रही है । ग्रामीण महिलाएँ गृह कार्य भी करती हैं और खेत-खलीहानों में भी पुरुषों को सहयोग देती हैं ।  मजदूर वर्ग की महिलाएँ भी पुरुषों के साथ कठिन परिश्रम करती हैं ।

शिक्षा एवं स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त करने के उपरान्त तो आज नारी घर से बाहर निकलकर प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष के कन्धे से  कन्धे मिलाकर आगे बढ़ रही है । पुरुष के समान आज नारी राज-काज भी सम्भाल रही है और अन्य क्षेत्रों में भी अपनी योग्यता प्रमाणित कर रही है ।

वह किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है और स्पष्टतया यह सिद्ध कर रही है कि नर-नारी एक समान हैं । वास्तव में समानता के इस युग में समाज के विकास की गति बड़ी है । पहले नारी को चूल्हे-चौके तक सीमित किया हुआ था । विकास की जिम्मेदारी केवल पुरुष की हुआ करती थी ।

नारी की प्रतिभाओं पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था । लेकिन आज समाज की मानसिकता में बदलाव आ रहा है । आज माता-पिता भी लड़का-लड़की में अधिक भेद-भाव नहीं करते ।  लड़कियों को लडकों की भाँति शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाता है । उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।

आज किसी कारणवश यदि परिवार के पुरुषों द्वारा घर का खर्च नहीं चलाया जाता तो नारी इस दायित्व को उत्साहित होकर सम्भालती है ।  प्रत्येक विषम परिस्थिति में वह यही सिद्ध करने का प्रयास करती है कि नर-नारी एक समान हैं ।

समाज में आया यह सुखद परिवर्तन है । आज यह सिद्ध हो गया है कि नारी को घर की चारदीवारी में कैद करके रखना न्यायोचित नहीं था । वास्तव में नर-नारी, दोनों में ही समाज के विकास को गति प्रदान करने की योग्यता है । पहले नारी की प्रतिभाओं पर अंकुश लगाकर समाज के विकास की गति में अवरोध ही उत्पन्न किया जाता था । आज नारी समाज एवं राष्ट्र के विकास में अपना भरपूर सहयोग दे रही है ।

अपनी प्रतिभाओं से उसने यह प्रमाणित कर दिया है कि परिवार की लड़कियाँ भी परिवार को प्रतिष्ठा  एवं  सम्मान दिला सकती हैं । वास्तव में नर हो या नारी, प्रत्येक व्यक्ति की कार्य-क्षमता में अन्तर हो सकता है ।

नारी को कोमल शरीर होने के कारण अधिक शारीरिक श्रम के कार्यो के अयोग्य माना जाता रहा है । लेकिन नारी ने इस मान्यता को गलत सिद्ध कर दिया है । नारी ने विभिन्न खेल प्रतियोगिताएँ जीतकर, हिमालय की ऊँची चोटियों को छूकर, पुलिस विभाग की नौकरी में खतरनाक अपराधियों को पटकनी देकर अपनी शारीरिक क्षमताओं को भी प्रमाणित किया है ।

दूसरी ओर एक पुरुष अधिक शारीरिक श्रम के कार्यो को करने में सदैव सफल होता हो, यह भी आवश्यक नहीं है । नर और नारी, दोनों की अपनी-अपनी कार्य-क्षमताएँ हैं । परन्तु दोनों की ही समाज को आवश्यकता है । नर-नारी में किसी भी दृष्टिकोण से भेद-भाव करना उचित नहीं है । वास्तव में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, दोनों एक समान हैं और यही सत्य है ।

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