Essay on naxalism in chhattisgarh in hindi
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इसके पूर्व वर्ष 2009 में नक्सलियों ने बंगाल के लालगढ़ क्षेत्र को अपने प्रभाव में ले लिया था, तथा उसे फ्री-जोन घोषित कर दिया था । लालगढ़ क्षेत्र को नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार को नक्सलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी पड़ी थी ।
नक्सलियों के इन हमलों से फिर यह साबित हो गया है कि रणनीति बनाने और अपनी खास शैली में गुरिल्ला लड़ाई लड़ने वाले इन दरिंदों से निपटने के लिए पुलिस एवं सुरक्षा बलों को छापामार लड़ाई में पारंगत होना ही होगा ।
शासन और व्यवस्था की निरंतर अनदेखी के कारण उपेक्षित क्षेत्रों में नक्सली अपनी गतिविधियों को खतरनाक ढंग से बढ़ाते जा रहे है । नक्सली शोषित आदिवासियों और ग्रामीणों को हिंसक संघर्ष के लिए उकसा रहे हैं । उन्हें बाकायदा ट्रेनिंग भी दे रहे है । देशभर में ऐसे क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं जहाँ नक्सलियों का दबदबा है । एक अनुमान के अनुसार देश के 20 राज्यों के लगभग 170 जिलों में नक्सली अपने संगठन का विस्तार कर चुके हैं ।
अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में नक्सली सत्ता प्रतिष्ठानों को भी चुनौती देने लगे हैं । वे लोगों से लेवी वसूल करते एवं समानान्तर अदालतें लगाते हैं । उनके अदालत में दी जाने वाली सजाएँ घोर उत्पीड़क एवं अमानवीय होती है । सत्ता का संरक्षण एवं प्रशासन तक पहुँच न हो पाने के कारण स्थानीय लोग अब नक्सलियों पर ही विश्वास करने लगे हैं । अशिक्षा और विकास कार्य की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच के गठबंधन को और भी मजबूत बना दिया है ।
नक्सली आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं । रेल पटरियाँ उड़ाना, सुरक्षा बलों पर हमला एवं बैंक लूट में भी नक्सली शामिल हो गए हैं । हद तो तब हो गई जब नक्सलियों ने बिहार के जहानाबाद जेल पर हमला कर उसमें बंद अपने साथियों को छुड़ा लिया ।
ग्रामीण क्षेत्र में नक्सलवाद ने सामाजिक तनाव का रूप ले लिया है । समृद्ध भूमिपतियों का शहरों की ओर पलायन हो रहा है । इससे खेती चौपट हो रही है । जमीन पर अधिकार को लेकर जातीय संघर्ष भी बड़े हैं साथ ही हिंसक संघर्ष भी देखने को मिल रहे है ।
नक्सलियों के बढ़ते प्रभाव व हिंसा को देखते हुए अब उनके खिलाफ कठोर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है । नक्सलवाद से निपटने के लिए सरकार सेना के इस्तेमाल पर भी विचार कर रही है । सैन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना को नक्सल ऑपरेशनों में सीधे शामिल किए बिना परोक्ष तौर पर ही जरूरी मदद ली जानी चाहिए । स्थानीय पुलिस बलों, एसपीओ और नक्सल विरोधी टास्कफोर्स को प्रशिक्षण देने में सेना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ।
वायुसेना को भी नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में सीमित भूमिका के लिए तैयार किया जा सकता है । जैसे कि सुरक्षा बलों को एक जगह से दूसरी जगह लाना, ले जाना, नक्सल प्रभावित इलाकों के ऊंचाई से फोटो खींचना, दूरबीन से उनकी गतिविधियों और आवाजाही पर नजर रखना जैसे अहम कार्य शामिल है ।
नक्सलियों के इन हमलों से फिर यह साबित हो गया है कि रणनीति बनाने और अपनी खास शैली में गुरिल्ला लड़ाई लड़ने वाले इन दरिंदों से निपटने के लिए पुलिस एवं सुरक्षा बलों को छापामार लड़ाई में पारंगत होना ही होगा ।
शासन और व्यवस्था की निरंतर अनदेखी के कारण उपेक्षित क्षेत्रों में नक्सली अपनी गतिविधियों को खतरनाक ढंग से बढ़ाते जा रहे है । नक्सली शोषित आदिवासियों और ग्रामीणों को हिंसक संघर्ष के लिए उकसा रहे हैं । उन्हें बाकायदा ट्रेनिंग भी दे रहे है । देशभर में ऐसे क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं जहाँ नक्सलियों का दबदबा है । एक अनुमान के अनुसार देश के 20 राज्यों के लगभग 170 जिलों में नक्सली अपने संगठन का विस्तार कर चुके हैं ।
अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में नक्सली सत्ता प्रतिष्ठानों को भी चुनौती देने लगे हैं । वे लोगों से लेवी वसूल करते एवं समानान्तर अदालतें लगाते हैं । उनके अदालत में दी जाने वाली सजाएँ घोर उत्पीड़क एवं अमानवीय होती है । सत्ता का संरक्षण एवं प्रशासन तक पहुँच न हो पाने के कारण स्थानीय लोग अब नक्सलियों पर ही विश्वास करने लगे हैं । अशिक्षा और विकास कार्य की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच के गठबंधन को और भी मजबूत बना दिया है ।
नक्सली आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं । रेल पटरियाँ उड़ाना, सुरक्षा बलों पर हमला एवं बैंक लूट में भी नक्सली शामिल हो गए हैं । हद तो तब हो गई जब नक्सलियों ने बिहार के जहानाबाद जेल पर हमला कर उसमें बंद अपने साथियों को छुड़ा लिया ।
ग्रामीण क्षेत्र में नक्सलवाद ने सामाजिक तनाव का रूप ले लिया है । समृद्ध भूमिपतियों का शहरों की ओर पलायन हो रहा है । इससे खेती चौपट हो रही है । जमीन पर अधिकार को लेकर जातीय संघर्ष भी बड़े हैं साथ ही हिंसक संघर्ष भी देखने को मिल रहे है ।
नक्सलियों के बढ़ते प्रभाव व हिंसा को देखते हुए अब उनके खिलाफ कठोर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है । नक्सलवाद से निपटने के लिए सरकार सेना के इस्तेमाल पर भी विचार कर रही है । सैन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना को नक्सल ऑपरेशनों में सीधे शामिल किए बिना परोक्ष तौर पर ही जरूरी मदद ली जानी चाहिए । स्थानीय पुलिस बलों, एसपीओ और नक्सल विरोधी टास्कफोर्स को प्रशिक्षण देने में सेना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ।
वायुसेना को भी नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में सीमित भूमिका के लिए तैयार किया जा सकता है । जैसे कि सुरक्षा बलों को एक जगह से दूसरी जगह लाना, ले जाना, नक्सल प्रभावित इलाकों के ऊंचाई से फोटो खींचना, दूरबीन से उनकी गतिविधियों और आवाजाही पर नजर रखना जैसे अहम कार्य शामिल है ।
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