Essay on "Satyameva Jayate": Pandit Madan Mohan Malaviya, a visionary leader in Hindi
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Malaviya is most remembered as the founder of Banaras Hindu University(BHU) at Varanasi in 1916, which was created under the B.H.U. Act, 1915. The largest residential university in Asia and one of the largest in the world, having over 35,000 students across arts, sciences, engineering, medical, agriculture, performing arts, law and technology. Malaviya was Vice Chancellor Of Banaras Hindu University from 1919–1938
सत्यमेव जयते का अर्थ ("सत्य की सदैव ही विजय होती है")
सत्यमेव जयते भारत का 'राष्ट्रीय आदर्श वाक्य' है, जिसका अर्थ है- "सत्य की सदैव ही विजय होती है"। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है। 'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में पंडित मदनमोहन मालवीय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।
इतिहास
सम्पूर्ण भारत का आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ में 250 ई. पू. में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, किंतु इस शिखर में यह आदर्श वाक्य नहीं है।
आदर्श सूत्र वाक्य
प्राचीन भारतीय साहित्य के 'मुण्डकोपनिषद' से लिया गया यह आदर्श सूत्र वाक्य आज भी मानव जगत की सीमा निर्धारित करता है। 'सत्य की सदैव विजय हो' का विपरीत होगा- 'असत्य की पराजय हो'। सत्य-असत्य, सभ्यता के आरम्भ से ही धर्म एवं दर्शन के केंद्र बिंदु बने हुये हैं। 'रामायण' में भगवान श्रीराम की लंका के राजा रावण पर विजय को असत्य पर सत्य की विजय बताया गया और प्रतीक स्वरूप आज भी इसे 'दशहरा' पर्व के रूप में सारे भारत में मनाया जाता है तथा रावण का पुतला जलाकर सत्य की विजय का शंखनाद किया जाता है।
विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य 'महाभारत' में भी एक श्रीकृष्ण के नेतृत्व और पाँच पाण्डवों की सौ कौरवों और अट्ठारह अक्षौहिणी सेना पर विजय को सत्य की असत्य पर विजय बताया गया। कालांतर में वेद और पुराण के विरोधियों ने भी सत्य को 'पंचशील' व 'पंचमहाव्रत' का प्रमुख अंग माना।
गाँधीजी जी नें कहा था
'सत्य' एक बेहद सात्विक किंतु जटिल शब्द है। ढाई अक्षरों से निर्मित यह शब्द उतना ही सरल है, जितना कि 'प्यार' शब्द, लेकिन इस मार्ग पर चलना उतना ही कठिन है, जितना कि सच्चे प्यार के मार्ग पर चलना। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, जिन्हें सत्य का सबसे बड़ा व्यवहारवादी उपासक माना जाता है, उन्होंने सत्य को ईश्वर का पर्यायवाची कहा।
गाँधीजी ने कहा था कि- "सत्य ही ईश्वर है एवं ईश्वर ही सत्य है।" यह वाक्य ज्ञान, कर्म एवं भक्ति के योग की त्रिवेणी है। शायद यही कारण है कि लगभग सभी धर्म सत्य को केन्द्र बिन्दु बनाकर ही अपने नैतिक और सामाजिक नियमों को पेश करते हैं।
धर्म का प्रतीक
सत्य का विपरीत असत्य है। सत्य अगर धर्म है तो असत्य अधर्म का प्रतीक है। हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ 'गीता' में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि- जब-जब इस धरा पर अधर्म का अभ्युदय होता है, तब-तब मैं इस धरा पर जन्म लेता हूँ। भारत सरकार के राजकीय चिह्न 'अशोक चक्र' के नीचे लिखा 'सत्यमेव जयते' शासन एवं प्रशासन की शुचिता का प्रतीक है। यह हर भारतीय को अहसास दिलाता है कि सत्य हमारे लिये एक तथ्य नहीं वरन् हमारी संस्कृति का सार है। साहित्य, फ़िल्म एवं लोक विधाओं में भी अंततः सत्य की विजय का ही उद्घोष होता है।