essay on social inequality in hindi
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‘लिंग’ सामाजिक-सांस्कृतिक शब्द हैं, सामाजिक परिभाषा से संबंधित करते हुये समाज में ‘पुरुषों’ और ‘महिलाओं’ के कार्यों और व्यवहारों को परिभाषित करता हैं, जबकि, 'सेक्स' शब्द ‘आदमी’ और ‘औरत’ को परिभाषित करता है जो एक जैविक और शारीरिक घटना है। अपने सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं में, लिंग पुरुष और महिलाओं के बीच शक्ति के कार्य के संबंध हैं जहाँ पुरुष को महिला से श्रेंष्ठ माना जाता हैं। इस तरह, ‘लिंग’ को मानव निर्मित सिद्धान्त समझना चाहिये, जबकि ‘सेक्स’ मानव की प्राकृतिक या जैविक विशेषता हैं।
लिंग असमानता को सामान्य शब्दों में इस तरह परिभाषित किया जा सकता हैं कि, लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव। समाज में परम्परागत रुप से महिलाओं को कमजोर जाति-वर्ग के रुप में माना जाता हैं। वह पुरुषों की एक अधीनस्थ स्थिति में होती है। वो घर और समाज दोनों में शोषित, अपमानित, अक्रमित और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का ये अजीब प्रकार दुनिया में हर जगह प्रचलित है और भारतीय समाज में तो बहुत अधिक है।
भारतीय समाज में लिंग असमानता का मूल कारण इसकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में निहित है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री सिल्विया वाल्बे के अनुसार, “पितृसत्तात्मकता सामाजिक संरचना की ऐसी प्रक्रिया और व्यवस्था हैं, जिसमें आदमी औरत पर अपना प्रभुत्व जमाता हैं, उसका दमन करता हैं और उसका शोषण करता हैं।” महिलाओं का शोषण भारतीय समाज की सदियों पुरानी सांस्कृतिक घटना है। पितृसत्तात्मकता व्यवस्था ने अपनी वैधता और स्वीकृति हमारे धार्मिक विश्वासों, चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम या किसी अन्य धर्म से ही क्यों न हों, से प्राप्त की हैं।
उदाहरण के लिये, प्राचीन भारतीय हिन्दू कानून के निर्माता मनु के अनुसार, “ऐसा माना जाता हैं कि औरत को अपने बाल्यकाल में पिता के अधीन, शादी के बाद पति के अधीन और अपनी वृद्धावस्था या विधवा होने के बाद अपने पुत्र के अधीन रहना चाहिये। किसी भी परिस्थिति में उसे खुद को स्वतंत्र रहने की अनुमति नहीं हैं।”
मनु द्वारा महिलाओं के लिये ऊपर वर्णित स्थिति आज के आधुनिक समाज की संरचना में भी मान्य हैं। यदि यहाँ-वहाँ के कुछ अपवादों को छोड़ दे तो महिलाओं को घर में या घर के बाहर समाज या दुनिया में स्वतंत्रतापूर्वक निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं मिली हैं।
मुस्लिमों में भी समान स्थिति हैं और वहाँ भी भेदभाव या परतंत्रता के लिए मंजूरी धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी परंपराओं द्वारा प्रदान की जाती है। इसीस तरह अन्य धार्मिक मान्याताओं में भी महिलाओं के साथ एक ही प्रकार से या अलग तरीके से भेदभाव हो रहा हैं।
हमारे समाज में लैंगिक असमानता की दुर्भाग्यपूर्ण बात भी महिलाएँ है, प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों के कारण उन्होंने पुरुषों के अधीन अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया हैं और वो भी इस समान पितृसत्तात्मक व्यवस्था का अंग हैं।
महिलाओं के समाज में निचला स्तर होने के कुछ कारणों में से अत्यधिक गरीबी और शिक्षा की कमी भी हैं। गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण बहुत सी महिलाएं कम वेतन पर घरेलू कार्य करने, संगठित वैश्यावृति का कार्य करने या प्रवासी मजदूरों के रुप में कार्य करने के लिये मजबूर होती हैं। महिलाओं को न केवल असमान वेतन या अधिक कार्य कराया जाता हैं बल्कि उनके लिये कम कौशल की नौकरियाँ पेश की जाती हैं जिनका वेतनमान बहुत कम होता हैं। यह लिंग के आधार पर असमानता का एक प्रमुख रूप बन गया है।
लड़की को बचपन से शिक्षित करना अभी भी एक बुरा निवेश माना जाता हैं क्योंकि एक दिन उसकी शादी होगी और उसे पिता के घर को छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ेगा। इसलिये, अच्छी शिक्षा के अभाव में वर्तमान में नौकरियों कौशल माँग की शर्तों को पूरा करने में असक्षम हो जाती हैं, वहीं प्रत्येक साल हाई स्कूल और इंटर मीडिएट में लड़कियों का परिणाम लड़कों से अच्छा होता हैं। ये प्रदर्शित करता हैं कि 12वीं कक्षा के बाद माता-पिता लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा खर्च नहीं करते जिससे कि वो नौकरी प्राप्त करने के क्षेत्र में पिछड़ रही हैं।
सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, परिवार, खाना की आदतों के मामले में भी, वो केवल लड़का ही होता जिसे सभी प्रकार का पोष्टिक और स्वादिष्ट पसंदिदा भोजन प्राप्त होता हैं जबकि लड़की को वो सभी चीजें खाने को मिलती हैं जो परिवार के पुरुष खाना खाने के बाद बचा देते हैं जो दोनों ही रुपों गुणवत्ता और पोष्टिकता में बहुत ही घटिया किस्म का होता हैं और यही बाद के वर्षों में उसकी खराब सेहत का प्रमुख कारण बनता हैं। महिलाओं में रक्त की कमी के कारण होने वाली बीमारी एनिमीया (अरक्त्ता) और बच्चों को जन्म देने के समय होने वाली परेशानियों का प्रमुख कारण घटिया किस्म का खाना होता हैं जो इन्हें अपने पिता के घर और ससुराल दोनों जगह मिलता हैं इसके साथ ही असह्याय काम का बोझ जिसे वो बचपन से ढोती आ रही हैं।
अतः उपर्युक्त विवेचन के आझार पर कहा जा सकता हैं कि महिलाओं के साथ असमानता और भेदभाव का व्यवहार समाज में, घर में, और घर के बाहर विभिन्न स्तरों पर किया जाता हैं।
आर्थिक असमानता से जुड़ी सामाजिक असमानता, आमतौर पर आय या धन के असमान वितरण के आधार पर वर्णित है, अक्सर सामाजिक असमानता का अध्ययन किया गया प्रकार है। यद्यपि अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के विषयों में आम तौर पर आर्थिक असमानता की जांच और समझने के लिए विभिन्न सैद्धांतिक दृष्टिकोण का उपयोग होता है, दोनों क्षेत्रों में इस असमानता को शोध में सक्रिय रूप से शामिल किया गया है। हालांकि, विशुद्ध रूप से आर्थिक संसाधनों के अलावा सामाजिक और प्राकृतिक संसाधन भी अधिकांश समाजों में असमान रूप से वितरित किए जाते हैं और सामाजिक स्थिति में योगदान कर सकते हैं। आवंटन के नियम भी अधिकारों और विशेषाधिकार, सामाजिक शक्ति के वितरण, शिक्षा या न्यायिक प्रणाली जैसे सार्वजनिक सामान, पर्याप्त आवास, परिवहन, क्रेडिट और वित्तीय सेवाओं जैसे बैंकिंग और अन्य सामाजिक वस्तुओं और सेवाओं के वितरण को प्रभावित कर सकते हैं।
दुनिया भर में कई समाज गुणों का दावा करते हैं- अर्थात, उनके समाज विशेष रूप से योग्यता के आधार पर संसाधनों को वितरित करते हैं। माइकल यंग ने 1 9 58 में डाइस्टोपियान निबंध "द रिय्ज़ ऑफ़ द मेरिटोकसी" में "मेरिट्रॉसी" शब्द को सोशल डिशफेंक्शन का प्रदर्शन करने के लिए प्रख्यापित किया, जिसने उन समाजों में उत्पन्न होने की आशा की थी, जहां एलिट्स का मानना है कि वे पूरी तरह से योग्यता के आधार पर सफल हैं, इसलिए अंग्रेजी में इस शब्द को अपनाने के बिना नकारात्मक अर्थों को विडंबना है।