explain total 6 samas in hindi with examples
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जिस समास का पहला पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण -
आजीवन - जीवन-भरयथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसारयथाशक्ति - शक्ति के अनुसारतत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
कर्म तत्पुरुष (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है।
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है।
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है।
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अव्ययीभाव समास (Avyayibhav Samas)
(2) तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)
(3) द्विगु समास (Dvigu Samas)
(4) द्वंद्व समास (Dvandva Samas)
(5) कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)
(6) बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)
अव्ययीभाव समास
इस समास में पहला पद (पूर्व पद) प्रधान होता है और पूरा पद अव्यय होता है
इसमें पहला पद उपसर्ग होता है जैसे अ, आ, अनु, प्रति, हर, भर, नि, निर, यथा, यावत आदि उपसर्ग शब्द का बोध होता है
नोट : अव्ययीभाव समास में उपसर्ग होता है
उदाहरण:
Aajanm (आजन्म) - जन्म पर्यन्त
Yathavadhi (यथावधि) - अवधि के अनुसार
Yathakram (यथाक्रम) - क्रम के अनुसार
Bekasur (बेकसूर) -
Nidar (निडर) -
तत्पुरुष समास
इस समास में दूसरा पद (उत्तर पद / अंतिम पद) प्रधान होता है इसमें कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर शेष छ: कारक चिन्हों का प्रयोग होता है
जैसे - कर्म कारक, करण कारक, सम्प्रदान कारक, अपादान कारक, सम्बन्ध कारक, अधिकरण कारक
नोट : तत्पुरुष समास में कारक चिन्हों का प्रयोग होता है
उदाहरण :
Vidyalaya (विद्यालय) - विद्या के लिए आलय
Rajputra (राजपुत्र) - राजा का पुत्र
Munhtod (मुंहतोड़) - मुंह को तोड़ने वाला
Chidimar (चिड़ीमार) - चिड़िया को मारने वाला
Janmandh (जन्मांध) - जन्म से अँधा
द्विगु समास
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है विग्रह करने पर समूह का बोध होता है
नोट : द्विगु समास में संख्या का बोध होता है
उदाहरण :
Trilok (त्रिलोक) - तीनो लोकों का समाहार
Navratra (नवरात्र) - नौ रात्रियों का समूह
Athanni (अठन्नी) - आठ आनो का समूह
Dusuti (दुसूती) - दो सुतों का समूह
Panchtatv (पंचतत्व) - पांच तत्वों का समूह
द्वंद्व समास
इसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। विग्रह करने पर बीच में 'और' / 'या' का बोध होता है
नोट : द्वंद्व समास में योजक चिन्ह (-) और 'या' का बोध होता है
उदाहरण :
Paap Punya (पाप-पुण्य) - पाप और पुण्य
Sita Ram (सीता-राम) - सीता और राम
Unch Neech (ऊँच-नीच) - ऊँच और नीच
Khara Khota (खरा-खोटा) - खरा या खोटा
Ann Jal (अन्न-जल) - अन्न और जल
कर्मधारय समास
इसमें समस्त पद सामान रूप से प्रधान होता है इसके लिंग, वचन भी सामान होते हैं इस समास में पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है विग्रह करने पर कोई नया शब्द नहीं बनता
नोट : कर्मधारय समास में व्यक्ति, वस्तु आदि की विशेषता का बोध होता है
उदाहरण :
Chandramukh (चन्द्रमुख) - चन्द्रमा के सामान मुख वाला - विशेषता
Dahi Vada (दहीवड़ा) - दही में डूबा बड़ा - विशेषता
Gurudev (गुरुदेव) - गुरु रूपी देव - विशेषता
Charan Kamal (चरण कमल) - कमल के समान चरण - विशेषता
Neel Gagan (नील गगन) - नीला है जो असमान - विशेषता
बहुव्रीहि समास
इस समास में कोई भी पद प्रधान न होकर अन्य पद प्रधान होता है विग्रह करने पर नया शब्द निकलता है पहला पद विशेषण नहीं होता है विग्रह करने पर समूह का बोध भी नहीं होता है
नोट : बहुव्रीहि समास के अंतर्गत शब्द का विग्रह करने पर नया शब्द बनता है या नया नाम सामने आता है
उदाहरण :
Trinetra (त्रिनेत्र) - भगवान शिव
Veenapani (वीणापाणी) - सरस्वती
Shwetambar (श्वेताम्बर) - सरस्वती
Gajanan (गजानन) - भगवान गणेश
Girdhar (गिरधर) - भगवान श्रीकृष्ण