Hindi, asked by sachinsharma1282006, 2 days ago

five in-text questions of ch mati vaali
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Answers

Answered by ashayadav7710
6

Explanation:

टिहरी की महिलाएँ माटी वाली से अपनी सहानुभूति तथा दया किस प्रकार प्रकट करती थीं?

टिहरी की ठकुराइन जो माटी वाली की ग्राहक थी, ने अपने पूर्वजों की विरासत को किस प्रकार सहेजकर रखा था? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।

माटी वाली के चरित्र की कौन-सी विशेषताएँ आपको प्रभावित करती हैं, लिखिए?

माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?

माटी वाली के बुड्ढे को अब रोटियों की आवश्यकता क्यों नहीं रह गई थी?

भूख मीठी कि भोजन मीठा से क्या अभिप्राय है? माटी वाली पाठ के सन्दर्भ में लिखिए।

माटी वाली

Answer

माटी वाली अत्यंत गरीब महिला थी, जिसकी आजीविका का साधन माटाखान से लाई मिट्टी घरों तक पहुँचाना था। घर पर उसका बीमार पति अकेला रहता था। माटी वाली अपना काम अत्यंत तन्मयता से करती थी। वह सभी के घर बिना भेदभाव के लाल मिट्टी दिया करती थी।

माटी वाली की स्थिति का अनुमान कर महिलाएँ कुछ पैसों के साथ ही उसे चाय या शाम की बासी एक-दो रोटियाँ भी दे दिया करती थीं। कभी-कभी कोई महिला रोटी के साथ कुछ साग आदि देकर अपनी सहानुभूति तथा दया प्रकट कर दिया करती थी।

माटी वाली की ग्राहक टिहरी की ठकुराइन को पूर्वजों की विरासत से विशेष लगाव था। वे उनकी विरासत की प्रत्येक वस्तु को बहुत सँभालकर रखती थी। आम मनुष्य पूर्वजों की वस्तुओं को कबाड़ या पुराने फैशन की कहकर उन्हें कबाड़ी के हाथों औने-पौने दामों में बेच देता है, पर इसके विपरीत ठकुराइन ने पूर्वजों की विरासत भले ही वह पीतल का साधारण गिलास ही क्यों न हो सँभाल रखा है। वे उसे पुरखों की गाढ़ी कमाई से अर्जित किया हुआ मानती है, जिसमें पुरखों की मेहनत और यादें समाई हैं।

माटी वाली गरीब, लाचार महिला है जो अपनी रोजी-रोटी के लिए सुबह से शाम तक परेशान रहती है। वह प्रातःकाल माटाखान जाती है और माटी लाकर घर-घर में देती है। वह अत्यंत परिश्रमी महिला है।

माटी वाली बुढ़िया का पति बीमार एवं असक्त था। वह बिस्तर पर लेटा रहता था। माटी वाली शहर से आते ही सबसे पहले अपने पति के भोजन की व्यवस्था कर उसकी सेवा में जुट जाती थी। उसकी पतिपरायणता अनुकरणीय थी। माटी वाली का स्वभाव अत्यंत विनम्र था। वह सभी की प्रिय थी। सभी उसके कार्य-व्यवहार से खुश रहते थे। इस प्रकार माटी वाली की परिश्रमशीलता, मृदुभाषिता, पति-परायणता तथा व्यवहारकुशलता मुझे प्रभावित करती है।

माटी वाली की वृद्धावस्था तथा गरीबी पर तरस खाकर घर की मालकिनें बची हुई एक-दो रोटियाँ, ताजा-बासी साग, तथा बची-खुची चाय दे दिया करती थीं, वह उनमें से एकाध रोटी अपने पेट के हवाले कर लेती थी तथा बाकी बची रोटियाँ कपड़े में बाँधकर रख लेती थी, ताकि वह इसे ले जाकर अपने वृद्ध, बीमार एवं अशक्त पति को खिला सके। माटी वाली को जैसे ही दो या उससे अधिक रोटियाँ मिलती थीं वह तुरंत सोचने लगती थी कि इतनी रोटी मैं स्वयं खाऊँगी तथा इतनी बची रोटियाँ अपने पति के लिए ले जाऊँगी। उसके द्वारा रोटियों का यूँ हिसाब लगाना उसकी गरीबी, मजबूरी तथा विवशता को प्रकट करता है।

माटी वाली घर की मालकिन से मिली तीन रोटियाँ लेकर जा रही थी। वह मन-ही-मन आज बहुत खुश थी। घर पहुँचने पर कदमों की आहट सुनकर भी जब बुड्ढे के शरीर में हलचल न हुई तो बुढ़िया का माथा ठनका, उसने देखा कि बुड्ढा मर चुका था। उसे अब और रोटियों की जरूरत न थी।

भूख और भोजन का आपस में बहुत ही गहरा रिश्ता है। यदि खाने वाले को भूख लगी हो तो भोजन रुचिकर तथा स्वादिष्ट लगती है और खाने वाला का पेट पहले से भरा हो तो वही भोजन उसे अच्छा नहीं लगेगा। उसे भोजन में कोई स्वाद नहीं मिलेगा। भोजन की ओर देखने का उसका जी भी न करेगा। अतः स्वाद भोजन में नहीं बल्कि भूख में हैं।

Answered by rameshrajput16h
2

Answer:

Question 1:

'शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।' आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते 'माटी वाली' को सब पहचानते थे?

ANSWER:

पूरे शहर में माटी वाली एकमात्र माटी देने वाली औरत थी जो घर जाकर माटी दे आती थी। चूंकि पूरे गाँव में कोई माटीखाना नहीं था इसलिए वह ही माटी का एक मात्र साधन थी। लोगों के पास इतना वक्त नहीं था कि वो स्वयं जाकर माटी ले आएँ। घर-घर में माटी से घर व चूल्हें लीपे जाते थे। लोगों को इस कारण भी माटी की आवश्यकता थी। माटी वाली का कोई प्रतिद्वंदी नहीं था। सालों से वो माटी देती आ रही थी जिस कारण उस शहर का बच्चा-बच्चा तक उसको व उसके कंटर को पहचान लेता था।

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