गोल मेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
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नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया। अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1930-32 के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के तहत तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किये गए थे। ये सम्मलेन मई 1930 में साइमन आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के आधार पर संचालित किये गए थे। भारत में स्वराज, या स्व-शासन की मांग तेजी से बढ़ रही थी। 1930 के दशक तक, कई ब्रिटिश राजनेताओं का मानना था कि भारत में अब स्व-शासन लागू होना चाहिए। हालांकि, भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक दलों के बीच काफी वैचारिक मतभेद थे, जिनका समाधान सम्मलेनों से नहीं हो सका।
ब्रिटिश सरकार ने 1930 से 1932 के बीच भारत की अनेक समस्याओं पर बातचीत करने तथा नए-नए कानूनों को पास करने के लिए गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन किया गया था। इन 3 सालों की अवधि के दरमियान तीन गोलमेज सम्मेलन बुलवाये गए, लेकिन किसी भी गोलमेज सम्मेलन में आम सहमति कभी भी नहीं बन पाई। इसके कारण जिन किसी भी गोलमेज सम्मेलन से कोई भी ठोस निर्णय निकलकर सामने नहीं आ पाया।
- पहला गोलमेज सम्मेलन 1930 में आयोजित किया गया था, जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल ही नहीं हुए। यह सम्मेलन निर्रथक साबित हुआ। इस गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी ने भाग नहीं लिया था और गांधीजी उस समय भारत की जनता के सबसे बड़े नेता थे और जब भारत का सबसे बड़ा नेता ही सभा में नहीं पहुंचे तो भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई था ही नहीं, इस कारण यह गोलमेज सम्मेलन असफल हुआ।
- ब्रिटिश सरकार को समझ आ गया कि भारत के बड़े और प्रमुख नेताओं को बुलाए बिना कोई गोलमेज सम्मेलन सफल नहीं हो सकता। इसलिए उसने दूसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 में लंदन में आयोजित किया गया। इस गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी सम्मिलित हुए जो कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे। उनके अनुसार उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है, परंतु सम्मेलन में तीन अन्य पार्टियों ने भी अपने-अपने दावे की चुनौती दी। मुस्लिम लीग ने कहा कि वो भारत के अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करती है। भारत के 556 रियासतों की पार्टी का दावा था कि उनके नियंत्रण वाले भू-भाग पर कांग्रेस का कोई अधिकार नहीं। तीसरी पार्टी भीमराव अंबेडकर की थी। उनका कहना था कि वे दलितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी देश में दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। भारत के प्रतिनिधित्व के अलग-अलग दावों के कारण ही इस सम्मेलन का भी कोई ठीस नतीजा नही निकल सका था।
- तीसरा गोलमेज सम्मेलन का आयोजन 1932 में इंग्लैंड में ही किया था। लेकिन इस सम्मेलन का इंग्लैंड के ही एक दल लेबर पार्टी ने किया। उस समय देश में आंदोलनो का दौर चल रहा था, कांग्रेस पार्टी ने इस सम्मेलन में भाग नही लिया। उसने आंदोलन की शुरुआत ने भी सम्मेलन का बहिष्कार किया और भारत की तरफ से केवल 40 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जिनका कोई खास महत्व नहीं था क्योंकि यह लोग ब्रिटिश सरकार के हिमायती थे और ब्रिटिश सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग थे।
इस तरह अलग-अलग कारणों से तीनों गोलमेज सम्मेलनों का कोई भी ठोस नतीजा नही निकल पाया।
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