ग्रामीण बस्ती के rekhiye प्रतिरूप का चित्र बनाइए
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Answer: ग्रामीण बस्ती
ग्रामीण बस्ती अधिक निकटता से तथा प्रत्यक्ष रूप से भूमि से नज़दीकी संबंध रखती हैं। यहाँ के निवासी अधिकतर प्राथमिक गतिविधियों में लगे होते हैं। जैसे- कृषि, पशुपालन एवं मछली पकड़ना आदि इनके प्रमुख व्यवसाय होते हैं। बस्तियों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है।
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप
ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक दूसरे से संबंधित है। गाँव की आकृति एवं प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, समीपवर्ती स्थलाकृति एवं क्षेत्र का भूभाग प्रमुख स्थान रखते हैं। ग्रामीण बस्तियों का वर्गीकरण कई मापदंडों के आधार पर किया जा सकता है -
विन्यास के आधार पर
इनके मुख्य प्रकार हैं-
मैदानी ग्राम,
पठारी ग्राम,
तटीय ग्राम,
वन ग्राम
मरुस्थलीय ग्राम।
कार्य के आधार पर
इसमें कृषि ग्राम, मछुवारों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम, पशुपालक ग्राम आदि आते हैं-
बस्तियों की आकृति के आधार पर
इसमें कई प्रकार की ज्यामितिक आकृतियाँ हो सकती हैं जैसे कि रेखीय, आयताकार, वृत्ताकार, तारे के आकार की, 'टी' के आकार की, चौक पट्टी, दोहरे ग्राम इत्यादि।
रैखिक प्रतिरूप
उस प्रकार की बस्तियों में मकान सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, नहरों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं।
आयताकार प्रतिरूप
ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरा पर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इसमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
वृत्ताकार प्रतिरूप
इस प्रकार के गाँव झीलों व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस्ती बस जाने से विकसित होते हैं। कभी-कभी ग्राम को इस योजना से बसाया जाता है कि उसका मध्य भाग खुला रहे जिसमें पशुओं को रखा जाए ताकि वे जंगली जानवरों से सुरक्षित रहें।
तारे के आकार का प्रतिरूप
जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उन मार्गों के सहारे मकान बन जाते हैं। वहाँ तारे के आकार की बस्तियाँ विकसित होती हैं।
'टी' आकार, 'वाई' आकार, क्रॉस आकार
टी के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती हैं। जबकि वाई आकार की बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं। क्रॉस आकार की बस्तियाँ चौराहों पर प्रारंभ होती हैं जहाँ चौराहे से चारों दिशा में बसाव आरंभ हो जाता है।
दोहरे ग्राम
नदी पर पुल या फेरी के दोनों ओर इन बस्तियों का विस्तार होता है।
ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ
विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों की संख्या अधिक है एवं इनका आधारभूत ढाँचा भी अविकसित है। ये नियोजकों के सम्मुख बड़ी चुनौती और सुअवसर प्रस्तुत करते हैं।
जल की आपूर्ति और बीमारियाँ
विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों में जल की आपूर्ति भी पर्याप्त नहीं है। पर्वतीय एवं शुष्क क्षेत्रों में निवासियों को पेय जल हेतु लंबी दूरियाँ तय करनी पड़ती हैं। जल जनित बीमारियाँ जैसे हैजा, पीलिया आदि सामान्य समस्या है। दक्षिणी एशिया के देश प्राय: बाढ़ एवं सूखे से ग्रस्त रहते हैं।
सिंचाई सुविधाएँ और सफ़ाई
सिंचाई सुविधाएँ कम होने से कृषि कार्य पर भी प्रभाव पड़ता है। शौचघर एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण की सुविधाएँ नगण्य हैं। जिससे इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ रहती हैं। मकानों की रूपरेखा एवं उनके लिए प्रयुक्त होने वाली गृह निर्माण सामग्री हर पारिस्थितिक प्रदेश में भिन्न होती है।
भारी वर्षा एवं बाढ़
जो मकान मिट्टी, लकड़ी एवं छप्पर के बनाए जाते हैं उन्हें भारी वर्षा एवं बाढ़ के समय काफ़ी नुकसान पहुँचता है एवं हर वर्ष उनके उचित रख-रखाव की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर मकानों की रूपरेखा भी ऐसी होती है जिसमें उपयुक्त संवातन नहीं होता है। एक ही मकान में मनुष्यों के साथ पशु भी रहते हैं। इसी मकान में पशु शेड और उनके चारा रखने की जगह भी होती है।
कच्ची सड़क एवं आधुनिक संचार के साधनों की कमी
ऐसा इसलिए किया जाता है कि जंगली जानवरों से पालतू पशुओं और उनके चारे की रक्षा उचित ढंग से हो सके। कच्ची सड़क एवं आधुनिक संचार के साधनों की कमी भी यहाँ की प्रमुख समस्या है। वर्षा ऋतु में इन क्षेत्रों का संपर्क आसपास के क्षेत्र से कट जाता है जिससे आपतकालीन सेवाएँ प्रदान करने में भी गंभीर कठिनाइयाँ उपलब्ध हो जाती है।
स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी
विशाल ग्रामीण जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करना भी कठिन हो जाता है। यह समस्या उस समय और विकट हो जाती है जब ग्रामीणीकरण उचित प्रकार से नहीं हुआ है और विशाल क्षेत्र में मकान दूर तक विकसित होते हैं।
ग्रामीण बस्तियों के प्रकार
बस्तियों के प्रकार निर्मित क्षेत्र के विस्तार और अंतर्वास दूरी द्वारा निर्धारित होता है। भारत में कुछ सौ घरों से युक्त संहत अथवा गुच्छित गाँव विशेष रूप से उत्तरी मैदानों में एक सार्वत्रिक लक्षण है। फिर भी अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अन्य प्रकार की ग्रामीण बस्तियाँ पाई जाती हैं। ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उत्तरदायी हैं। इनके अंतर्गत-
भौतिक लक्षण -
भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता,
सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक -
सामाजिक संरचना, जाति और धर्म,
सुरक्षा संबंधी कारक -
चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं।
बृहत तौर पर भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है -
गुच्छित, संकुलित अथवा आकेंद्रित
अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित
पल्लीकृत और
परिक्षिप्त अथवा एकाकी