Hindi, asked by Premansh5307, 10 months ago

घर के बड़े-बूढों द्वारा बच्चों को सुनाई जानेवाली किसी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन परिस्थितियों से जीतने का संदेश हो।

Answers

Answered by bhatiamona
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Answer:

घर में बड़े-बूढ़ों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाले ऐसे कई किस्से और कहानियां। इन्हीं में से एक है मनबुद्धी से बुद्धीमान बने बालक मोहन की कहानी।

मोहन  एक मनबुद्धी बालक था। मोहन पढ़ने में बहुत कमजोर था। इस वजह से सब उसका बहुत मजाक उड़ाते थे, कोई उसे मंदबुद्धि कहता तो कोई मूर्ख कहता था। उसके सभी सहपाठी जो उसके साथ पढ़ते थे वे आगे की कक्षा में पहुंच गए,लेकिन बालक मोहन एक ही कक्षा में कई साल तक अटका रहा। उसे पढ़ाई लिखाई समझ में नहीं आती थी।

पढ़ाई में कमजोर होने की वजह से शिक्षक उसे पसंद नहीं करते थे। अंत में उसे विद्यालय से यह कहकर निकाल दिया गया की वह पढ़ने लिखने में असमर्थ हैं। इसके बाद निराश माता-पिता ने मोहन को पढ़ने के लिए गुरुकुल भेज दिया । वहां भी मोहन का पढ़ाई में हाल ऐसा ही था।

शिक्षकों और सहपाठियों के तानों से परेशान एक दिन मोहन कड़ी धूप में कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे बहुत प्यास लगी। मोहन ने अपने आस-पास देखा तो दूर उसे एक कुआँ नजर आया। मोहन उस कुएँ के पास पहुँचा। वहां मोहन ने देखा कि कुएं की जगत पर रस्सी की रगड़ ने पत्थर पर भी निशान बना दिए हैं। इस घटना ने बालक मोहन के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। उसे समझ आ गया कि रस्सी की लगातार रगड़ से जब पत्थर में भी लकीरें पड़ सकती हैं तो बार-बार अभ्यास करने से उसे भी पढ़ना क्यों नहीं आएगा।    उस दिन के बाद मोहन का जीवन एकदम बदल गया। वह पढ़ाई में ध्यान देने लगा, गुरु जी जो सिखाते मोहन उसे ध्यान से सुनता, अपना पाठ याद कर गुरु जी को सबसे पहले सुनता और अपनी कक्षा में सबसे ज्यादा पढ़ाई करता था। बहुत जल्द मोहन एक मूर्ख से बुद्धिमान बालक बन गया।  

Answered by BrainlyHeroSumit
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Answer:

घर में बड़े-बूढ़ों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाले ऐसे कई किस्से और कहानियां। इन्हीं में से एक है मनबुद्धी से बुद्धीमान बने बालक मोहन की कहानी।

मोहन  एक मनबुद्धी बालक था। मोहन पढ़ने में बहुत कमजोर था। इस वजह से सब उसका बहुत मजाक उड़ाते थे, कोई उसे मंदबुद्धि कहता तो कोई मूर्ख कहता था। उसके सभी सहपाठी जो उसके साथ पढ़ते थे वे आगे की कक्षा में पहुंच गए,लेकिन बालक मोहन एक ही कक्षा में कई साल तक अटका रहा। उसे पढ़ाई लिखाई समझ में नहीं आती थी।

पढ़ाई में कमजोर होने की वजह से शिक्षक उसे पसंद नहीं करते थे। अंत में उसे विद्यालय से यह कहकर निकाल दिया गया की वह पढ़ने लिखने में असमर्थ हैं। इसके बाद निराश माता-पिता ने मोहन को पढ़ने के लिए गुरुकुल भेज दिया । वहां भी मोहन का पढ़ाई में हाल ऐसा ही था।

शिक्षकों और सहपाठियों के तानों से परेशान एक दिन मोहन कड़ी धूप में कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे बहुत प्यास लगी। मोहन ने अपने आस-पास देखा तो दूर उसे एक कुआँ नजर आया। मोहन उस कुएँ के पास पहुँचा। वहां मोहन ने देखा कि कुएं की जगत पर रस्सी की रगड़ ने पत्थर पर भी निशान बना दिए हैं। इस घटना ने बालक मोहन के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। उसे समझ आ गया कि रस्सी की लगातार रगड़ से जब पत्थर में भी लकीरें पड़ सकती हैं तो बार-बार अभ्यास करने से उसे भी पढ़ना क्यों नहीं आएगा।    उस दिन के बाद मोहन का जीवन एकदम बदल गया। वह पढ़ाई में ध्यान देने लगा, गुरु जी जो सिखाते मोहन उसे ध्यान से सुनता, अपना पाठ याद कर गुरु जी को सबसे पहले सुनता और अपनी कक्षा में सबसे ज्यादा पढ़ाई करता था। बहुत जल्द मोहन एक मूर्ख से बुद्धिमान बालक बन गया।  

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