gum hota bachpan pr aalekh likhe
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हमारी पेंट की जेब में कंचे, रंग-बिरंगे पत्थर, कांच की चूड़ियों के टुकड़े, माचिस की खाली डिब्बियां होती थीं। रिमझिम बारिश में खूब भीगते थे। खेत की गीली मिट्टी से ट्रेक्टर बनाते थे। बालू के ढेर में गड्ढे बना कर नीचे से हाथ मिलाते थे। कागज की नाव बना कर नालियों में तैराकी की स्पर्द्धा हुआ करती थी। और तो और, दूसरे के बगीचे से आम, अमरूद और बेर चुरा कर खाते थे। उसका अपना एक अलग ही मजा था। कभी-कभी पकड़े जाते तो डांट भी खूब पड़ती थी। शरारत, खेलकूद, मौजमस्ती….. न कल की फिक्र थी न आज की चिंता।
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