हामिद का मजाक किसने उड़ाया 10th
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hamid ka majak uske dosto ne Udaya tha
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किसी छोटे से गांव मैं एक छोटा सा प्यारा बच्चा हामिद अपनी बूढी दादी माँ के साथ रहता था! एक बार की बात है ईद आने वाली थी और इसलिए पास के गांव मैं मेला लगा, रविवार का दिन था गाँव के सारे बच्चे खुशी – खुशी मेला देखने के लिए तैयार हो रहे थे और अपने – अपने माता – पिता के साथ मेला देखने जाने वाले थे ! नन्हे हामिद का भी मन किया मेला देखने के लिए उसने अपनी दादी से कहा दादी मैं भी अपने दोस्तों के साथ मेला देखने जाऊंगा ! गरीब दादी के पास पैसे नहीं थे इसलिए उसने हामिद को समझाने का प्रयास किया किन्तु हामिद के जिद करने पर उसकी दादी ने अपने पास रखा अंतिम एक रुपया हामिद को देते हुए कहा बेटा ये रुपया बड़ी संभाल कर रखना और इसे अच्छी तरह से खर्च करना कोई अनाप – शनाप खर्च न करना ! जब तुझे भूख लगे तो कुछ पैसे खाने पर खर्च करना और बाकी पैसों से अपने लिए कोई खिलौना खरीद लेना ! मेले की अनुमति और रुपया पाकर हामिद की खुशी का ठिकाना नहीं रहा ! वह भी अपने मित्रों के साथ खुशी – खुशी मेला देखने चल दिया ! मेले मैं पहुंचकर सभी बच्चे खूब मजे कर रहे थे, जगह – जगह, खाने – पीने कि चीजें थीं और खिलौनों की दुकाने थीं सभी बच्चे कुछ न कुछ खा रहे थे और खिलौने खरीद रहे थे, हामिद का मन भी बहुत कर रहा था मगर हामिद के पास सिर्फ एक रुपया था और उसे अपनी दादी की सीख याद आ रही थी बेटा इसे बहुत सोच समझकर खर्च करना, इसीलिए हामिद ने अब तक अपना एक रुपया बचा कर रखा था, मेले मैं घूमते हुए हामिद को एक बर्तन की दुकान दिखाई दी ! हामिद उस ओर बढ़ चला उसने पूरी दुकान मैं देखने के बाद एक लोहे का चिमटा उठाया और दुकानदार से उसका दाम पूछा ! दुकानदार ने उसका दाम एक रूपए बताया मासूम हामिद बहुत मायूस हो गया, क्योंकि उसके पास सिर्फ एक ही रुपया था, और उसका जी चाह रहा था कि वह भी और बच्चों की तरह खाए – पिए और खिलौने ले, किन्तु वह अपनी दादी के लिए चिमटा भी खरीदना चाहता था क्योंकि हामिद की आँखों मैं तबे पर रोटी सेकती उसकी दादी का चेहरा आ रहा था जिसकी उँगलियाँ चिमटा न होने की वजह से रोज ही तबे से जल जाती थीं, इसलिए हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदकर उसकी उँगलियों को जलने से बचाना चाहता था ! मगर इसके लिए हामिद को अपनी खुशियों का त्याग करना पड़ेगा, एक तरफ हामिद की अपनी खुशिया थीं दूसरी ओर रह – रह कर उसकी दादी की जलती उंगलियों का ख्याल ! अंत मैं नन्हे हामिद ने वीरता दिखाते हुए, दुकानदार से वह चिमटा खरीद लिया, और शान से उसे अपने काँधे पर रखकर पूरे मेले मैं यों ही घूमता रहा ! शाम हो चली थी सभी लोग एक जगह एकत्र हो वापस गाँव की ओर लौटने लगे ! हामिद के सभी मित्र हामिद का मजाक उड़ा रहे थे कि उसने ये क्या ले लिया चिमटा ! कोई उसे मिटटी का शेर दिखाता, तो हामिद उससे कहता तुम्हारा ये मिटटी का शेर २ दिन मैं टूट जायेगा किन्तु मेरा चिमटा असली शेर से भी लड़ने का काम आएगा ! यों ही हंसी मजाक करते करते सभी बच्चे अपने गाँव वापस आ गए ! घर मैं हामिद की दादी बेसब्री से हामिद का इन्तजार कर रही थी, आते ही उसने हामिद से बड़े उल्लास से पूछा मेरे लाल ने मेले मैं क्या – क्या किया और अपने लिए कौन सा खिलौना ख़रीदा ? हामिद ने झट से चहकते हुए दादी के हाथ मैं चिमटा थमा दिया ! चिमटा देखते ही दादी आग – बबूला हो उठी , बोली कमबख्त ये क्या उठा लाया तेरे पास एक ही रुपया था फिर तूने ये चिमटा क्यों ख़रीदा ! इसका क्या करेगा तू और दादी ने हामिद का चिमटा गुस्से से दूर फेंक दिया ! मासूम हामिद ने चिमटा उठाया और फिर से अपनी दादी से लिपट गया और बोला दादी ये मैं अपने लिए नहीं आपके लिए लाया हूँ ! अब रोटी सेंकते बक्त कभी भी आपकी उँगलियाँ नहीं जलेंगी ! अपने पोते की बात सुनकर बूढी दादी की ऑंखें डबडबा उठीं, दादी अपने पोते के प्यार से भाव बिभोर हो उठी और हामिद को अपने कलेजे से लगा लिया ! बेटा इतने बड़े मेले मैं भी तू अपनी बूढी दादी को नहीं भूला ! और अपनी खुशियों का त्याग करके तुझे तेरी बूढी दादी की उँगलियों को जलने से बचाने के लिए चिमटा खरीद लाया ! बूढी दादी की आँखों मैं खुशी देखकर मासूम हामिद भी खुशी से चहक
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