World Languages, asked by rakshabhagraina, 1 day ago

हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः​

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Answered by Anant124
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Explanation:

□ हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः

■ अर्थः इस संसार में ऐसा व्यक्ति मिलना कठिन है, जो आपके हित के लिए भी बोले और उसकी वाणी में कठोरता भी न हो, अर्थात् हितकारी बात मधुरता के साथ प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति दुर्लभ होते हैं ।

■ विदुर जी सदैव हितकारी ही वचन बोलते थे, किन्तु उनमें कठोरता अवश्य होती थी ।

नीतिकार सदैव कठोर ही हुआ करते हैं ।

नीतिकार नारद हुए, शुक्राचार्य हुए, याज्ञवल्क्य ऋषि भी नीतिकार थे, भीष्म पितामह भी नीतिकार थे, स्वयं श्रीकृष्ण महान् नीतिकार थे ।

मध्यकाल में आचार्य चाणक्य महान् नीतिकार हुए ।

लेकिन सबके सब कठोर ही थे ।

यदि ये लोग कठोर न होते तो भारतवर्ष इतना महान् नहीं होता और अखण्ड भी नहीं होता ।

आपको पता ही होगा कि भीष्म पितामह के इस प्रस्ताव का विदुर ने पुरजोर विरोध किया था, देश के दो टुकडे कर दिए जाएँ ।

उनकी नहीं सुनी गई, जिससे कुपरिणाम भी सामने आया ।

कृष्ण जुए के विषय पर कहते हैं कि यदि वह यहाँ होते तो पहले मना करते, यदि मानता तो बलपूर्वक रोक रोक देते ।

Answered by saranaveed226
2

Answer:

I don't know sorry.

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plz don't report

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