हिंदी साहित्य के विभिन्न कालों में तुलसी, जायसी, मतिराम, द्विजदेव, मैथिलीशरण गुप्त आदि कवियों ने भी शरद ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। आप उन्हें तलाश कर कक्षा में सुनाएँ और चर्चा करें कि पतंग कविता में शरद ऋतु वर्णन उनसे किस प्रकार भिन्न है ?
Answers
ये एक प्रायोगिक कार्य है। छात्र प्रश्न में दिये कवियों की शरद ऋतु से संबंधित रचनायें पढ़ें और अपनी कक्षा में सुनाकर उसके बारे में चर्चा करें....
छात्रों की सहायता के लिये उपर्युक्त कवियों में से कुछ कवियों की शरद ऋतु से संबंधित रचनायें यहाँ पर दी जा रही हैं।
मैथिली शरण गुप्त की रचना...
चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही है जल थल में,
स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है,
अवनि और अंबर तल में,
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोंको से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी,
मंद पवन के झोंकों से।
तुलसी की एक रचना
जानि सरद रितु खंजन आए।
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।
जायसी की एक रचना
भइ निसि, धनि जस ससि परगसी। राजै-देखि भूमि फिर बसी॥
भइ कटकई सरद-ससि आवा। फेरि गगन रवि चाहै छावा॥
मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता में रात के समय चाँद के सौंदर्य का वर्णन किया है। वहीं तुलसी ने शरद ऋतु में खंजन पक्षी का वर्णन किया है। जायसी ने भी शरद ऋतु के समयकाल में चाँद और रात का वर्णन किया है। वहीं पतंग कविता कविताओं से इस प्रकार भिन्न है कि पतंग कविता में बाल मन की दृष्टि से शरद ऋतु का वर्णन किया है और शरद ऋतु में बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने का दृश्य बताया गया है। इस कविता में शरद ऋतु की सुबह का वर्णन मिलता है।