hajari prasàd dwivedi ke kabir granthawali se paanch dohe dhundkar likho
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कबीरदास जी जैसे संत आज के युग में मिलना असंभव है। वह जिस तरह से सभी को साथ लेकर चलते थे। वह समाज को समय समय पर संदेश देते थे। उनके दोहे कुछ इस प्रकार से हैं--
१)जाति जुलाहा मति कौ धीर।
हरिष हरिष गुन रमै कबीर।
तू ब्राह्मन मैं काशी का जुलाहा।
२)मनवां तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरै नाहि।
३)यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़ै घुल जाना है।आऊंगा न जाऊंगा, मरूँगा न जीऊंगा।।
४)संगत किजे साधु की कभी न निष्फल होए लोहा परस पारस ते , सो भी कंचन होए ।।
५)माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
१)जाति जुलाहा मति कौ धीर।
हरिष हरिष गुन रमै कबीर।
तू ब्राह्मन मैं काशी का जुलाहा।
२)मनवां तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरै नाहि।
३)यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़ै घुल जाना है।आऊंगा न जाऊंगा, मरूँगा न जीऊंगा।।
४)संगत किजे साधु की कभी न निष्फल होए लोहा परस पारस ते , सो भी कंचन होए ।।
५)माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
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