हम जब होंगे बड़े, घृणा का नाम मिटाकर लेंगे दम। हिंसा के विषयम प्रवाह में, कब तक और बहेगा देश! जब हम होंगे बड़े, देखना नहीं रहेगा यह परिवेश! भ्रष्टाचार जमाखोरी की, आदत बहुत पुरानी है, ये कुरीतियाँ मिटा हमें तो, नई चेतना लानी है। एक घरौंदे जैसा आखिर, कितना और ढहेगा देश, जब हम होंगे बड़े देखना, ऐसा नहीं रहेगा देश! इसकी बागडोर हाथों में, ज़रा हमारे आने दो, थोड़ा-सा बस पाँव हमारा, जीवन में टिक जाने दो। हम खाते हैं शपथ, दुर्दशा कोई नहीं सहेगा देश घोर अभावों की ज्वाला में, कल से नहीं ढहेगा देश। क) कविता में बच्चा अपने बड़े होने पर क्या-क्या परिवर्तन करने का इच्छुक है? दो का उल्लेख दीजिए। ख) हमारे समाज और परिवेश में क्या-क्या बुराइयाँ आ गई हैं? ग) कवि क्या शपथ खाता है और क्यों?
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निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार है :
क) कविता में बच्चा अपने बड़े होने पर क्या-क्या परिवर्तन करने का इच्छुक है? दो का उल्लेख दीजिए।
उतर: कविता में बच्चा देश में फैली कुरीतियाँ मिटा देने की बात करता है और कहता है
हमें तो देश में नई चेतना लानी है। अपने बड़े होने पर देश में व्याप्त घृणा, हिंसा, भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों को समाप्त कर देश के परिवेश में बदलाव लाने का इच्छुक है।
ख) हमारे समाज और परिवेश में क्या-क्या बुराइयाँ आ गई हैं?
उतर: हमारे समाज और परिवेश में भ्रष्टाचार और जमाखोरी जैसी बुराइयां आ गई है | समाज में फैली यह कुरीतियों ने हमारे देश की हालत खराब कर दी है | इसके कारण देश प्रगति नहीं कर पा रहा है , आप में लड़ाई कर रहा है| ष्टाचार और जमाखोरी जैसी बुराइयां के कारण गरीब एवं अभावग्रस्त लोगों को अनेक कठिनाइयों से भरा जीवन गुजारना पड़ रहा है|
ग) कवि क्या शपथ खाता है और क्यों?
उतर: कवि अपने देश की दुर्दशा को समाप्त कर देश में फैली भ्रष्टाचार और जमाखोरी जैसी बुराइयां से मुक्त करवाने की शपथ खाता है ताकि देश उन्नति कर सके|