Harishankar parsai Ne rajnaitik Jeevan Mein vyapt bhrashtachar par vayang Kiya Hai is sandarbh Mein Bhed aur bhediya Kahani Ko Aadhar Banakar aaj ki rajnaitik uthal puthal par vichar vyakt kariye ?????????
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हरिशंकर परसाई ने राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग किया है इस संबंध में ‘भेड़ें और भेड़िया’ पाठ को आधार बनाकर आजकल की राजनीतिक उथल-पुथल पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
‘हरिशंकर परसाई’ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। उन्होंने अपने व्यंग्यों के माध्यम से समाज की अनेक कटु वास्तविकताओं को हल्के-फुल्के और मनोरंजक रूप में हमारे सामने प्रस्तुत किया है। उनकी रचनायें न केवल हमारे मन गुदगुदी पैदा करती हैं बल्कि हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
“भेड़ और भेड़िया” ‘हरिशंकर परसाई’ द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध कहानी है इस कहानी के माध्यम से उन्होंने राजनीति पर करारा व्यंग्य किया है उन्होंने अपनी व्यंग्यात्मक शैली के द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कटाक्ष किया है
कई वर्षों पूर्व लिखे गए उनका यह व्यंग्य आज की राजनीति में एकदम फिट बैठता है।
‘भेड़ और भेड़िये’ कहानी की पृष्ठभूमि एक जंगल की है। वहाँ सभी जानवरों को लगने लगा है कि अब वह लोग विकास के उस स्तर पर पहुंच गए हैं कि जहां अब उन्हें एक सुदृढ़ शासन व्यवस्था की जरूरत है। उसके लिए उन्हें भी लोकतंत्र रूपी शासन को अपन लेना चाहिए। ये सुनकर भेडें जो एकदम शाकाहारी और अहिंसक प्राणी थीं, उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा उन्होंने सोचा जब लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था हो जाएगी तो वे एक ऐसा कानून पास करवाएंगी कि किसी को हिंसा करने का अधिकार ना हो और सब को अपना जीवन जीने का अवसर मिले। इससे उन्हे भेड़ियों से कोई भय नही रहेगा।
उधर भेड़िए इस चिंता में थे कि अगर ऐसा कोई कानून पास हो गया तो फिर उन्हें शिकार के लिये भेड़ें नहीं मिल पाएंगी और उन्हें घास खाकर गुजारना पड़ेगा। तब भेड़िये के चाटुकार सियार ने एक तरकीब निकाली और उसने तीन सियारों को भेड़िए जैसी वेशभूषा में रंग कर तैयार कर लिया और चारों सियारों ने भेड़ों के सामने ऐसा नाटक प्रस्तुत किया जिससे भेड़े बहकावे में आ गई और उन्होंने भेड़िये को संत मानकर अपना नेता चुन लिया। भेड़िये चुने जाते ही सबसे पहले यह कानून पास किया कि उसे सुबह, दोपहर, शाम भेड़े खाने के लिए दी जाएं।
हमारी आज की राजनीति भी लगभग ऐसी ही है। नेताओं के रूप में भेड़िये हैं जो ईमानदार और जनता का परम हितैषी होने का ढोंग करते हैं और भेड़ रूपी भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाकर उनके रहनुमा बन जाते हैं और फिर अपनी असली रंग दिखाते हैं।
रंगे सियारों के रूप नेताओं के चाटुकार होते हैं जो नेताओं के पक्ष में प्रचार करते है। पहले रंगे सियार के रूप में तथाकथित बुद्धिजीवी लेखक आदि है, दूसरे रंगे सियार के रूप तथाकथित सच्चे पत्रकार हैं, तीसरे रंगे सियार के रूप में वो ढोंगी धर्माचार्य हैं।
हमारी आज की राजनीति में ऐसे रंगे सियार इसी भूमिका में बड़ी संख्या में सक्रिय हैं।
Answer:
What da dog doin z