hindi essay- telephone ki atmakatha
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टेलीफोन की आत्मकथा
मैं टेलीफोन हूँ | मुझे सब दूरभाष के नाम से भी जानते है | मैं एक संचार का साधन हूँ | मेरे उपयोग से हम आपस में कभी भी बात कर सकते है | घर पर रह कर कभी भी संदेश दे सकते है | हम अपनी भावनाएं एक दूसरे को बता सकते है | मैं टेलीफोन सब को अपने जरिए जोड़ कर रखता हूँ | मेरा काम सब को खुश रखना है |
आज के समय में हर घर-घर में पाया जाता हूँ | चाहे शहर हो, छोटे कस्बे हो , महानगर हो , गांव हो मैं सब को जोड़ कर रखता हूँ | मुझे दुःख इस बात का होता की कुछ लोग मेरा गलत उपयोग करते है और उससे शरीफ लोगों तो तंग करते है | मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी होती है की मैं सब के काम आता हूँ |
◆◆टेलीफोन की आत्मकथा◆◆
नमस्ते दोस्तों, मैं आपका पुराना दोस्त, "टेलीफोन" बोल रहा हूं। आज मैं आपको अपनी कहानी बताने जा रहा हूं।
मेरा जन्म एक कारखाने में हुआ था, वहां मेरे जैसे मेरे कई दोस्त थे। फिर हमें बिक्री के लिए एक दुकान में ले जाया गया।
कुछ दिनों बाद मेरे मालिक ने मुझे खरीद लिया। मैं उस दिन बहुत खुश था। मैंने बहुत वर्षों तक उसकी मदद की।जरूरी संदेश पहुँचाने के लिए,बातचीत करने के लिए मेरे मालिक के परिवारवालों ने मेरा उपयोग किया।
लेकिन, कुछ सालों के बाद मेरे मालिक के बेटे ने एक मोबाइल फोन खरीद लिया। मोबाइल के आने के बाद, सब लोग मुझे भूल गए।
कई दिनों तक मेरा उपयोग न होने के कारण मैं खराब हो गया।तब, मेरे मालिक ने मुझे बेच दिया।
अब मैं एक मोबाइल शॉप में एक कोने में पड़ा हुआ हूँ। यह थी मेरी आज तक की जीवन कहानी।