World Languages, asked by youngmessiAR, 11 months ago

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Answered by mailshekharshirage
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Answer:

Yeh Loh

Explanation:

दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलंकृतोऽपि सन् ।

मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः ॥

दुर्जन या दुष्ट व्यक्ति से दुर ही रहना चाहिए चाहे वह कितना भा विद्वान और सुशिक्षित हो । क्या मणि से विभूषित होकर भी विषैला सर्प भयंकर नहीं होता अर्थात् जब मणिविभूषित सर्प मृत्युकारक होता है तो विद्याविभूषित दुर्जन भी नाश का कारक हो सकता है ।

आपत्सु मित्रं जानीयात् युद्धे शूरमृणे शुचिम् ।

भार्यां क्षीणेषु वित्तेषु व्यसनेषु च बान्धवान् ॥

सच्चे मित्र की कसौटी आपत्ति में, शूर की युद्ध में, पावित्र्य की ऋण में, पत्नी की वित्त जाने पर, और संबंधीयों की कसौटी व्यसन में होती है

न संशयमनारूह्य नरो भद्राणि पश्यति।

संशयं पुनरारूह्य यदि जीवति, पश्यति।।

अर्थ है कि जब तक कोई इंसान जन्म-मृत्यु से जुड़े जोखिम नहीं उठाता है, तब तक वह सुख-सौभाग्य नहीं बटोर पाता यानी उसका कल्याण नहीं होता। एक बार किसी भी सही उद्देश्य से कोई भी जोखिम उठाकर वह जीवित रहता है, तो उसका कल्याण निश्चित है यानी वह शुभ फल प्राप्त करता है। सरल शब्दों में साहस में भी महालक्ष्मी का वास होता और साहसी इंसान को ऐसी लक्ष्मी कृपा से ही बहुत शुभ फल मिलते हैं।

Answered by Aditya1234528368
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Answer:

श्लोकाः

(Verses)

षष्ठः पाठः

न संशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति ।

संशय पुनरारा यदि जीवति पश्यति IILI आपत्सु मित्र जानीयाद् युद्धे शूरमृणे शुचिम् भार्या क्षीणेषु वित्तेषु व्यसनेषु च बान्धवान् 11211 दुर्जनः परिहर्तव्यः विद्ययाऽलंकृतोऽपि सन् मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः 11311 सन्त एवं सता नित्यमापदुद्धरणक्षमाः गजाना पंकमग्नाना गजा एव धुरंधरा 141 उपायेन हि पच्छक्य न तच्छक्यं पराक्रमैः । मृगालेन हतो हस्ती गच्छता पंकवर्त्मना|5|

Explanation:

this is full verses

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