Hindi, asked by mukeshrathod9405, 18 days ago

Hindi poem on earth with Title and poet

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Answered by shyamahmr
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Answer:

निकल रहे हैं प्राण

निकल रहे हैं प्राण।

कोई सुन ले तो,

दे दो उसे जीवनदान।

सूख रहे हैं हलक,

मरुस्थल है दूर तलक।

सांस-सांस में कोहरा है,

इस दर्द से कोई रो रहा है।

सुन ले कोई चीत्कार,

दे दो उसे भी थोड़ा प्यार।

प्रकृति की हो रही विकृति,

अवैध खनन के नाम क्षति।

पहाड़ों को जा रहा काटा,

बिगड़ रहा है संतुलन,

हो रहा है बहुत ही घाटा।

भूकंप, सूनामी धकेल रही,

हमें रोज मौत के मुंह,

मंजर ऐसा देख कांप रही है रूह।

फिर भी बन रहा इंसान अनजान,

लिख रहा खुद ही मौत का गान।

फूंक रहीं चिमनियां धुएं की भरमार,

निकाल रहे कारखाने,

रासायनिक अपशिष्ट की लार।

नदियों के जल में मिल रहा मल,

सोचो, कैसा होगा आने वाला कल?

मृदा का हो रहा अपरदन,

ध्वनि के नाम पर भी प्रदूषण।

विकास का ऐसा बन रहा ग्राफ,

जंगल और जंतु दोनों हो रहे साफ।

इसलिए जानवर कर रहे हैं,

मानव बस्ती की ओर अतिक्रमण,

डर के मारे दिखा रहे हैं लोग उन्हें गन।

दरअसल जन बन रहे हैं जानवर,

जानवर बन रहे हैं जन,

विलुप्त हो रहे हैं संसाधन।

कर रहे हम जीवन से खिलवाड़,

काट रहे हरे-भरे वृक्ष,

कर रहे हैं पर्यावरण से छेड़छाड़।

गांव हो रहे हैं खाली,

नगरों की हालत है माली।

जनसंख्या में हो रही है वृद्धि,

नेता मान रहे इसे ही उपलब्धि।

केवल गायब नहीं हो रहा पृथ्वी से पानी,

हो रहा है लोगों की आंखों से भी गायब,

शर्म और लाज का पानी।

Explanation:

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