HinDi pollution poems with summary in hindi
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आज शहर में बढ़ा प्रदूषण
मुश्किल हुआ साँस का लेना,
शुद्ध हवा के बिन जीवन की
संभव नहीं नाव को खेना।
चारों ओर धुआँ है फैला
धुन्ध गगन में लगती छाई,
थोड़ी - सी दूरी की चीजें
पड़ती हैं अब नहीं दिखाई।
धरती पर कुहरा - सा छाया
घुटा घुटा - सा रहता है दम,
दुबके रहते लोग घरों में
निकल रहे हैं बाहर भी कम।
फैलाती हैं रोज प्रदूषण
‘प्रदूषण - पर्यावरण के लिए अभिशाप’
‘प्रदूषण - पर्यावरण के लिए अभिशाप’ कविता योगेश कुमार सिंह द्वारा लिखी गई है|
जिसे कहते है पृथ्वी का आवरण वह है हमारा पर्यावरण,
प्रदूषण बन गया है पर्यारण के लिए चिंता का कारण|
यह प्रदूषण इस कदर बढ़ रहा जिसका नही कोई है माप,
देखो कैसे धीरे-धीरे यह प्रकृति के लिए बन रहा अभिशाप|
हरियाली खत्म हो रही धधक रही सूर्य की ज्वाला,
बढ़ता प्रदूषण ओजोन परत को बना रहा अपना निवाला|
यदि ऐसे ही चलता रहा तो होगा प्रकृति को बड़ा नुकसान,
प्रकृति की रक्षा करों प्रदूषण रोक लौटाओ उसका सम्मान|
देखो कैसे चारो ओर मचा रखा है, प्रदूषण ने हाहाकार,
वृक्षारोपण करके लाओ खुशहाली, करो तुम प्रदूषण पर वार|
प्रकृति का करो सम्मान पर्यावरण स्वच्छता का रखो ध्यान,
पृथ्वी के हम है उत्तराधिकारी इसलिए करों इसका सम्मान|
प्रकृति है हमारी पृथ्वी की सुंदरता और इसका अभिमान,
इसलिए इसकी रक्षा हेतु तुम चलाओ प्रदूषण मुक्ति अभियान|
कविता का सारांश
हमारी पृथ्वी हम सब का घर है| आज के समय में यह मनुष्य द्वारा फैलाया हुआ प्रदुषण बढ़ता जा रहा है | यब बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है| यदि हम ऐसे प्रकृति के साथ बुरा करेंगे तो प्रकृति का ही नुकसान हो रहा है | हम मनुष्य को प्रकृति की रक्षा करनी होगी| प्रकृति को उसकी हरियाली वापिस करनी होगी|
चारों तरफ़ प्रदुषण फैला हुआ है| मनुष्य आए दिन पेड़ काट रहे है| हरियाली खत्म होती जा रही है| हमें अपनी पृथ्वी की ररक्षा करनी होगी| बढ़ते हुए प्रदुषण को खत्म करना होगा| प्रकृति का सम्मान करना होगा | प्रकृति हमारी धरती की शान है | पृथ्वी की रक्षा के लिए हमें मिलकर स्वच्छ बनाना होगा|