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वहीदा रहमान से की हिंदी की तुलना
कुमार विश्वास ने कहा कि अंग्रेजी कमजोर होगी तो हिंदी मजबूत होगी, ऐसा मत सोचिए। अंग्रेजी खूब अच्छी है, फ्रेंच भी ग्रो करें, लेकिन ङ्क्षहदी इसलिए प्यारी होनी चाहिए क्योंकि ये हमारी मां की बोली है। कोई दूसरी जुबान अच्छी हो सकती है। मैंने भारतीय भाषाएं पूरी नहीं पढ़ी हैं, हो सकता है उर्दू अच्छी जुबान हो, लेकिन मेरी लिए हिंदी से अच्छी नहीं हो सकती है। इस दौरान उन्होंने हिंदी को फेमस बॉलीवुड एक्ट्रेस से कम्पेयर करते हुए कहा कि वहीदा रहमान कितनी भी खूबसूरत हो, लेकिन मेरी मां से खुबसूरत नहीं हो सकती है। हिंदी को अगर आदर देना है तो पहले इंग्लिश को अच्छे से सीखें। इंग्लिश की नोबल पढ़ें, उसके बाद आप निराला, प्रेमचंद को पढ़ें। आपको पता लग जाएगा कि हमारे साहित्कार कहीं आगे है।
फिल्मी सितारों पर भी किया कमेंट
सरकार हिंदी दिवस मनाने को बोलती है और उसके लिए सभी को इंग्लिश में सर्कुलर जारी करती है। गाने हिंदी में लिखी जाती है , फिल्मों में डायलॉग हिंदी में होते है, लेकिन बातचीत इंग्लिश में करते हैं, कमाई हिंदी की, गाड़ी हिंदी का। लेकिन जब फिल्म फेयर में जाते है तो हिंदी बोलने में शर्म आती है। ये उनका ओछापन है। आज हम ऐसे जमाने में हैं जहां न हम हिंदी ठीक से बोल पा रहे हैं ना ही इंग्लिश ठीक से बोल पाते हैं । कम से कम एक भाषा तो ठीक से बोल लीजिए।
आते जाते जाते एक लूंगा कि हिंदी को वैकल्पिक नहीं संकलपिक भाषा बनाइए
कोई कारण मुझको नहीं देखता की हिंदी उत्तम धर्मिता की भाषा नहीं, हिंदी का बाजार बनाना है या बाजार की हिंदी बनानी है यह आपको तय करनी है, और केवल शब्द और केवल संवाद, मैं इस बात से सहमत हूं कि हिंदी मां की रसोई केवल 200 करोड व्यक्तियों की है, लेकिन हमारे बनाने वाले ओछे है बनाते नहीं हैं।
बडे़ से साहित्यकार उपन्यास लिखते हैं
1000 copy छपती है 200 कॉपी व समीक्षकों को भेज कर देते हैं 300 कॉपी पुस्तकालय में चली जाती है और 500 कॉपी पब्लिकेशन के पास रखी होती हैl
अगर आप 3000000 ग्राहकों में से अपने लिए 5000 ग्राहक नहीं पैदा कर पा रहे हैं तो मां छोट्टी नहीं, बेटो की काम छोटी है, आपको लोकप्रिय साहित्य लिखना पड़ेगा आपको जनता की भाषा में लिखना पड़ेगा उसके संवेदना समझने पड़ेगी, हिंदुस्तान में जो 500 साल गुलामी की हीन भावना है,वो वह दिनकर में खत्म नहीं, रामचरित्र मानस में खत्म नहीं हुई। कहीं ना कहीं हमारी ही गलती है हिंदी की बेटों की ही गलती है हिंदी में कविता लिखोगे और सेल्फी लेने समय अंग्रेजी में चालू हो जाते हो।
मेरा मतलब है आप खुद पर गर्व अनुभव करिए। कि आप ऐसे भाषा में पैदा किए जिसके पास बड़ा शब्दकोश है। साहित्य इतिहास है।
कबीर कहते हैं भाषा बहता नीर, आपको तय करना है कि आपको हिंदी का बाजार बनाना है या बाजार का हिंदी बनाना है। आपने जो वाशिंगटन की नई भाषा बनाई है जो अमेरिका से भारत के कूड़ेदान में फेंके जाई, मुझे ऐसे लोगों की जरूरत है जो उस पूरे को न्याय कृत कर दे।
गूगल की क्या आवश्यकता पड़ेगी हिंदी पुत्र को बुलाकर इंटरव्यू लेने की चतुर चुटकुले सुनने के मैं डॉक्टर कुमार विश्वास जी की बात कर रहा हूं जिनको गूगल ने बुलाया। क्योंकि गूगल को मालूम हो रहा है कि हिंदी का बाजार बंन रहा है। हिंदी कुमावत उस करना उस पर गर्व करना उस भाषा का अलग बाजार तैयार करना हर बेटे बेटियों की जिम्मेदारी है।
समस्या का हिंदी की बौद्धिक जो पिठिका है, हिंदी की रसोई बहुत बड़ी है परंतु इनके बनाने वाले ओछे बहुत ज्यादा है, लोकप्रियता के कारण एक कविता लिखेंगे उसका पहला पाठक लिखने वाला होगा दूसरा पाठक संपादक होगा। बस यही कारण है, उन्हें इस बात बोलने का कोई अधिकार नहीं की हिंदी कमजोर है।
कल और आएंगे नग्मों की पकृति कलियां चुनने वाले,
हमसे बेहतर कहने वाले इनसे बेहतर सुनने वाले
धन्यवाद
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हिंदी में बोलूँ
जो सोचूँ हिंदी में सोचूँ
जब बोलूँ हिंदी में बोलूँ
निपट मूढ़ हूँ पर हिंदी ने,
मुझसे नए गीत रचवाए।
जैसे स्वयं शारदा माता,
गूँगे से गायन करवाए।
हिंदी सहज क्रांति की भाषा
अमर विजय की अमिट निशानी।
शेष गुलामी के दाग़ों को,
फिर धो लूँ हिंदी से धो लूँ।।
हिंदी के घर फिर-फिर जन्मूँ
जन्मों का क्रम चलता जाए,
हिंदी का इतना ऋण मुझ पर
साँसों-साँसों चुकता जाए
जब जागूँ हिंदी में जागूँ
जब सो लूँ हिंदी में सो लूँ।।
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हिंदी मेरी प्रेमिका
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जिसे बचपन से स्वीकारा,
जिससे अगाध प्रेम किया।
भरी महफिल में जिसे,
जीवनसंगिनी का नाम दिया।
मां ,मातृभूमि जैसी हर शब्दों में,
उसी की किलकिलारी सुनी।
प्रेमचंद,कबीर ,दिनकर से उसकी, प्रशंसा जुबानी सुनी
कविता, साहित्य, गजल ,कहानी, कुमार विश्वास से उसकी प्रेम वाणी सुनी।
तेरे बिना क्या वजूद मेरा ?तुम,
मधुर सुगंध युक्त संसार मेरा।,
कैसे तुझको भूल जाऊं?
मैं तुम्हारा प्रिय तुम संसार मेरा।
बचपन की मां शब्दों से लेकर ,
मृत्यु के राम नाम पर अहसान तेरा।
देवता भी देख मुझे चकित और भरमाते जयते हैं,
कैसा है प्रेम भरा साहित्य के व्यापार तेरा?
मैंने प्रेम भरी जिंदगी में हिंदी की आह!सुनी।
कवि की दर्द भरी कविताओं में, श्रोताओं की वह, वाह! सुनी।
किसी पंचतत्व से रचित इंद्रियों की चाह नहीं मुझे,
मेरी जुबान पर कभी गुलामी भरा शब्दों का गूंज नहीं गुंजे।
कैसे तुमसे बिछड़ जाऊं जब तक इस धरती से आंख नहीं मुंडी।
मेरी रक्तिम आंखों में अंकित मेरी प्रेमिका मातृभाषा।
हिंदी का अपने ही जयचंद है खूनी।,
तब तक नहीं मरूंगा जब तक तेरे लिए ,
अखंड साहित्य की आवाज नहीं सुनीl
जिसे बचपन से स्वीकारा जिससे अगाथ प्रेम किया,
भरी महफिल में जिसे जीवनसंगिनी का नाम दिया,
मां ,मातृभूमि जैसी हर शब्दों में उसी की की किलकिलारी सुनी,
प्रेमचंद, कबीर ,दिनकर से उसकी प्रशंसा जुबानी सुनी
कविता, साहित्य गजल कहानी, कुमार विश्वास से उसकी प्रेम वाणी सुनी,
✒️लक्ष्मीकांत
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sorry I didn't understood your question........ ............,..,,?,..........
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