Hindi, asked by sheetabakshi, 1 year ago

How do u feel that role of ancient guru has changed in present society in hindi

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Answered by Geekydude121
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प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था, गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, तथा ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव था ।जो आज के गुरुओं और शिष्यों में नहीं है।

शिष्य में होती थी, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता। अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है।

गुरु और शिष्य के बीच में केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था, बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में कार्य करता था ।

उनका  उद्देश्य होता था शिष्य का समग्र विकास. शिष्य को भी यह विश्वास रहता था कि गुरु उसका कभी अहित सोच भी नहीं सकते।यही विश्वास गुरु के प्रति  उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।

अगर फिर से वह गुरु शिष्य प्रथा वापस आ जाऐगा न तो देश की स्थिति बहुत हद तक सुधरेगी।

Answered by tiger009
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गुरु शब्द ही अपने आप में एक पूरा ब्रम्हांड है किन्तु प्राचीन काल में क्योंकि ब्रम्हांड में हर तरह के प्राणी का समावेश है,और ब्रम्हांड से मिलने वाली सारी शक्तियां सबको समान  रूप से उपलब्ध हैं और उसके बदले कुछ की भी अपेक्षा ब्रम्हांड को नहीं होती,वैसे ही वो गुरु हुआ करते थे जिनका स्वभाव ही था केवल देना,बिना किसी अपेक्षा के!तो फिर उस काल में शिष्य भी  वैसे ही हुआ करते थे,पूर्ण समर्पित और अभिभावक भी वैसे ही थे,पूर्ण आश्वस्त कि गुरु उनकी संतान को स्नेह दें या दंड सब गुरु का आशीर्वाद ही होगा!

किन्तु आज का गुरु वास्तव में गुरु नहीं "टीचर "है,एक जॉब प्रोफाइल बस,कोई प्रतिबद्धता नहीं कोई सिद्धांत नहीं अपने विद्यार्थियों पर कोई विशेष अधिकार नहीं,अभिभावक के मन में भी  टीचर अब बस एक वेतनभोगी है,पैसे लेकर पढ़ाने वाला इन्सान!आज के टीचर के हाथ बंधे हैं,तो स्टूडेंट के सिर पर रिजल्ट का ऐसा दबाव कि आत्महत्या तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है!आज के "टीचर "में ना ही वो शुद्धता है ना  ही ब्रम्हचर्य का तेज,आज कोई सिद्धांत कोई शपथ ही नहीं है बाल निर्माण,व्यक्तित्व निर्माण और चरित्र निर्माण के लिए तो फिर "टीचर "राष्ट्र निर्माण कहाँ से कर पायेगा?आज हर काम एक पेशा है,रोज़गार है,जीवन की मार से स्वयं  प्रभावित "टीचर"विद्यार्थी को जीवन से लड़ना कैसे सिखा पायेगा?छात्रा के साथ दुष्कर्म की बात सोचने वाला,दुष्कर्म करने वाला "टीचर"विद्यार्थी का चरित्र निर्माण भला कैसे करेगा?

                              पहले एक भी गुरु ऐसे भाव नहीं रखता था,आज ऐसे "टीचर"अपवाद कहलाते हैं!ऐसा नहीं कि आज टीचर ऐसा ही है लेकिन ये भी सच है कि आज टीचर ऐसा भी है!आज भी जोसिद्धांतवादी,विचारवादी शिक्षक हैं तो उनके पास कुछकरने की  स्वतंत्रता ही नहीं है,कभी विद्यालय का दिशा निर्देश तो कभी विभाग का,कभी अभिभावक की चेतावनी तो कभी विद्यार्थी की तो कभी प्रधानाध्यापक की! ऐसे बंधे हाथों से एक गुरु अपने शिष्य को देगा भी तो क्या देगा?आज  शिक्षक अपने विद्यार्थी के कान तक नहीं  उमेठ सकता,ऐसे भय के साए में टीचर आखिर स्टूडेंट पर कितना दबाव देगा?

                      भूमिका तो आज भी गुरु की यही है कि बाल निर्माण से राष्ट्र निर्माण की पूरी जिम्मेदारी वही निभायेकिन्तु आज के बदले हालातऔर शिक्षक के प्रति घटता हुआ आदर भाव उन्हें खुल कर अपनी भूमिका निभाने ही नहीं दे रहा,अतः आज सर पर तमाम बोझ होने के बाद भी  चरित्र निर्माण या राष्ट्र निर्माण करने का उनपरकोई दबाव नहीं,इसलिए आज का विद्यार्थी सच्चरित्र हो या नहीं हो अकेले गुरु का ये दायित्व नहीं,वो लायक बने या नहीं गुरु की कोई जवाबदेही नहीं!संक्षेप में यही कह सकते हैं कि तब के गुरु अब विलुप्त हो चुके हैं अब तो  By profession टीचर पाए जाते हैं!

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