Hindi, asked by kimarejsadwiv, 1 year ago

I need a speech on social evils in society in hindi...I would like to deliver a speech related to girls...Please give me answer as fast as possible..

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Answered by Anonymous
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See i thought it would be better
सामाजिक बुराई भारत में सबसे विविध धर्म और समृद्ध संस्कृति है सामाजिक बुराइयों ने भारत की प्रगति को कम किया है लिंग असमानताओं ने एक ऐसी रूढ़िवादी रचनाएं बनाई हैं जो सामाजिककरण पर प्रभाव डालती हैं। इस तरह की रूढ़िवाणियों के कारण विपरीत लिंग के बीच एक बंधन पैदा होता है। अधिक लड़कियों से नफरत है भारतीय समाज में ड्रॉसी सिस्टम अधिक बैठा है कम शिक्षा और गरीबी के कारण वहां अमीर और गरीब के बीच एक बड़ा अंतर है। बाल श्रम ने समाज को भी विभाजित किया है और जाति के सिस्टेन हमारे समाज को प्रभावित करते हैं
Answered by riyanshityagi1607
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यद्यपि भारत वर्ष में विभिन्नता में एकता कायम है। ये विभिन्नताएँ महान समस्याओं की प्रतीक हैं। जिस तरह हमारे देश में विभिन्नताएँ ही विभिन्नताएँ हैं, उस तरह से किसी दूसरे देश में नहीं दिखाई देती हैं।

हमारे देश में साम्प्रदाय जाति, क्षेत्र भाषा, दर्शन, बोली, खान पान, पहनावा-ओढ़ावा, रहन सहन और कार्य कलाप की विभिन्नताएँ एक छोर से दूसरे छोर तक फैली हुई हैं। यहाँ हिन्दु-धर्म, सिख-धर्म, ईसाई-धर्म, इस्लाम-धर्म, जैन-धर्म, बौद्ध धर्म, सनातन धर्म आदि सभी स्वतंत्रतापूर्वक हैं। हिन्दू, जैन, सिख, मुसलमान, पारसी आदि जाति और सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं। यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय हे, तो कहीं समतल है, तो कहीं पठारी है और कहीं तो घने घने जंगलों से ढका हुआ है। भाषा की विविधिता भी हमारे देश में फैली है। कुल मिलाकर यहाँ पन्द्रह भाषाएँ और इससे कहीं अधिक उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। खान पान, पहनावे आदि की विभिन्नता भी देखी जा सकती है। कोई चावल खाना पसन्द करता है, तो कोई गेहूँ, कोई मांस मछली चाहता है तो कोई फल सब्जियों पर ही प्रसन्न रहता है। इसी तरह से विचारधारा भी एक दूसरे से नहीं मिलती है।

इन विभिन्नताओं के परिणामस्वरूप हमारे देश में कभी बड़े बड़े दंगे फसाद खड़े हो जाते हैं। इनके मूल में प्रान्तीयता, भाषावाद, सम्प्रदायवाद या जातिवाद ही होता है। इस प्रकार से हमारे देश की ये सामाजिक बुराई राष्ट्रीयता में बाधा पहुँचाती है।

अंधविश्वास और रूढि़वादिता हमारे देश की भयंकर सामाजिक समस्या है। कभी किसी अपशकुन जो अंधविश्वास के आधार पर होता है। इससे हम कर्महीन होकर भाग्यवादी बन जाते हैं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है

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