I want a debate on the topic ' Upbhoktavad Ne Bhartia sanskriti par nakaratmak prabhav dala hai ' in vipaksh ..
Answers
लोग कहते हैं कि उपभोक्तावाद संस्कृति ने हमारे दैनिक जीवन को पूर्ण रूप से अपने प्रभाव में ले लिया है। सुबह उठने के समय से लेकर सोने के समय तक ऐसा लगता है कि दुनिया में विज्ञापन के अलावा कोई चीज़ देखने या सुनने लायक नहीं है। परिणाम स्वरूप हम वही खाते-पीते और पहनते-ओढ़ते हैं जो विज्ञापन हमें बताते हैं।
इस प्रकार उभोक्तावादी संस्कृति के कारण हम उपभोगों के गुलाम बनते जा रहे हैं। हम सिर्फ अपने बारे में सोचने लगे हैं। इससे हमारे सामाजिक संबंध संकुचित हो गए हैं। मर्यादा और नैतिकता समाप्त हो रही है।
लेकिन यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है कि उपभोक्तावाद ने भारतीय संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। उसके कुछ सकारात्मक प्रभाव भी हैं। विज्ञापन द्वारा अशिक्षित और अनजान लोगों को नयी चीजों के बारे में ज्ञान होता है। उन्हें अपना जीवन स्तर बेहतर बनाने का अवसर मिलता है। यदि विज्ञापन न हो तो जनता के बड़े अंश को अनेक उत्पादों के बारे में पता नहीं चलेगा। अनेक विज्ञापन ऐसे होते हैं जो सही बात बताते हैं। इससे लोगों की जानकारी बढ़ती है।
उपभोक्तावाद संस्कृति के कारण देश में नए उत्पादों की मांग होती है। इस मांग को पूरा करने के लिए अधिक उत्पादन होता है। जिससे देश की आर्थिक उन्नति होती है। लोगों की जीवन शैली में सुधार आता है। सरलता पूर्वक प्रतिदिन के काम करने के साधन उपलब्ध होते हैं। लोगों को इन उत्पादों से जीवन में सुविधा पूर्वक काम करने का मौका मिलता है। ये उत्पाद उन्हें आराम और सुख का जीवन व्यतीत करने का अवसर प्रदान करते हैं।