I want a poem on the topic Naitik mulya in hindi.......i am not able to make it.......please help
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राजगढ़ के राजा बड़े ही न्यायप्रिय राजा के रूप में जाने जाते थे। वे अपनी प्रजा के हर दु:ख-दर्द का ध्यान रखते थे और यथासम्भव कोशिश करते थे कि उनकी प्रजा हमेंशा सुखी व सम्पन्न रहे। प्रजाजन में किसी को कोई भी परेशानी हो, वह राजा के दरबार में जाकर अपनी परेशानी बता सकता था और राजा उसकी उस परेशानी को जितना जल्दी हो सके, दूर करने का प्रयास करते थे। प्रजा भी राजा के उदार स्वाभाव के कारण राजा का बहुत आदर व सम्मान करती थी।
एक दिन राजा ने अपने सेनापति से कहा, “सेनापति जी… हम अपने राज्य का गुप्त रूप से भ्रमण करना चाहते हैं। हम यह देखना चाहते हैं कि हमारे राज्य में किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं है।”
सेनापति ने राजा की बात को सही मानते हुए कहा, “महाराज… मैं भी आपके साथ राज्य भ्रमण पर चलने की आज्ञा चाहता हूँ।“
राजा ने कहा, “ठीक है… सेनापति हम कल ही राज्य भ्रमण पर चलेंगे।“
राजा और सेनापति दोनों ही गुप्त वेष में अपने राज्य के भ्रमण पर निकल गए। जहाँ भी राजा और सेनापति जाते, हर किसी से पूछते कि, “आपको राजा से कोई शिकायत तो नहीं है। या आपको किसी प्रकार की कोई समस्या तो नहीं है?“
राज्य की सारी प्रजा ने राजा का गुणगान ही किया। कुछ समय बाद राजा ने सेनापति से कहा, “सेनापति जी… हमें लगता है कि हमारे राज्य में किसी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं है। हमें अब राज-महल चलना चाहिए।“
सेनापति ने अपना सिर हाँ में हिलाते हुए कहा, “जी महाराज… आप सही कहते हैं।“
राजा और सेनापति जिस रास्ते से राज-महल जा रहे थे, उसी रास्ते में एक वृद्ध किसी छोटे से पौधे को रोप रहा था। राजा और सेनापति यह देख कौतूहलवश उस वृद्ध के पास गए और उससे पूछा, “ये आप कौनसा पौधा लगा रहे है?“
वृद्ध ने धीमे स्वर में कहा, “आम का पौधा।“
राजा को बड़ा आर्श्चय हुआ क्योंकि आम के पौधे को पेड़ बनने और उस पर आम लगने में लगभग 100 वर्ष का समय लगता है। इसलिए राजा ने बडे़ आश्यर्च से उस वृद्ध की ओर देखते हुए पूछा, “आप जानते हैं न कि इस पौधे में लगने वाले आमों को खाने के लिए आप जीवित भी नहीं रहेंगे, फिर भी आप आम का पौधा क्यों लगा रहे हैं? आपको तो कोई ऐसा पौधा लगाना चाहिए, जिसमें जल्दी से जल्दी फल लग सकें, ताकि आप उनका उपभोग कर सकें। “
वृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “राहगीर, आप सोच रहे होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूँ। आखिर जिस चीज से मुझे मेरे जीवनकाल में कोई फायदा नहीं होने वाला, उस पर मैं बेकार की मेहनत क्यों कर रहा हूँ, लेकिन यह भी तो सोचिए, कि मैंने भी मेरी जिन्दगी में बहुत सारे आम खाए हैं, और उन आमों को मैंने नहीं उगाया था। वे सभी आम मुझ पर कर्ज के समान हैं। मैं उसी कर्ज को उतारने के लिए इस आम के पौधे को लगा रहा हुँ, ताकि अपनी आने वाली पीढ़ी को वे आम लौटा सकूॅं, जिन्हें मैंने अपनी पिछली पीढ़ी से उधार लिया है।“
इतना कहकर वह वृद्ध फिर से उस पौधे को लगाने में जुट गया और राजा व सेनापति उस वृद्ध की अपनी मृत्यु से पहले दुनियाँ को फिर से कुछ लौटाने की भावना से काफी प्रभावित हुए।
एक दिन राजा ने अपने सेनापति से कहा, “सेनापति जी… हम अपने राज्य का गुप्त रूप से भ्रमण करना चाहते हैं। हम यह देखना चाहते हैं कि हमारे राज्य में किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं है।”
सेनापति ने राजा की बात को सही मानते हुए कहा, “महाराज… मैं भी आपके साथ राज्य भ्रमण पर चलने की आज्ञा चाहता हूँ।“
राजा ने कहा, “ठीक है… सेनापति हम कल ही राज्य भ्रमण पर चलेंगे।“
राजा और सेनापति दोनों ही गुप्त वेष में अपने राज्य के भ्रमण पर निकल गए। जहाँ भी राजा और सेनापति जाते, हर किसी से पूछते कि, “आपको राजा से कोई शिकायत तो नहीं है। या आपको किसी प्रकार की कोई समस्या तो नहीं है?“
राज्य की सारी प्रजा ने राजा का गुणगान ही किया। कुछ समय बाद राजा ने सेनापति से कहा, “सेनापति जी… हमें लगता है कि हमारे राज्य में किसी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं है। हमें अब राज-महल चलना चाहिए।“
सेनापति ने अपना सिर हाँ में हिलाते हुए कहा, “जी महाराज… आप सही कहते हैं।“
राजा और सेनापति जिस रास्ते से राज-महल जा रहे थे, उसी रास्ते में एक वृद्ध किसी छोटे से पौधे को रोप रहा था। राजा और सेनापति यह देख कौतूहलवश उस वृद्ध के पास गए और उससे पूछा, “ये आप कौनसा पौधा लगा रहे है?“
वृद्ध ने धीमे स्वर में कहा, “आम का पौधा।“
राजा को बड़ा आर्श्चय हुआ क्योंकि आम के पौधे को पेड़ बनने और उस पर आम लगने में लगभग 100 वर्ष का समय लगता है। इसलिए राजा ने बडे़ आश्यर्च से उस वृद्ध की ओर देखते हुए पूछा, “आप जानते हैं न कि इस पौधे में लगने वाले आमों को खाने के लिए आप जीवित भी नहीं रहेंगे, फिर भी आप आम का पौधा क्यों लगा रहे हैं? आपको तो कोई ऐसा पौधा लगाना चाहिए, जिसमें जल्दी से जल्दी फल लग सकें, ताकि आप उनका उपभोग कर सकें। “
वृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “राहगीर, आप सोच रहे होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूँ। आखिर जिस चीज से मुझे मेरे जीवनकाल में कोई फायदा नहीं होने वाला, उस पर मैं बेकार की मेहनत क्यों कर रहा हूँ, लेकिन यह भी तो सोचिए, कि मैंने भी मेरी जिन्दगी में बहुत सारे आम खाए हैं, और उन आमों को मैंने नहीं उगाया था। वे सभी आम मुझ पर कर्ज के समान हैं। मैं उसी कर्ज को उतारने के लिए इस आम के पौधे को लगा रहा हुँ, ताकि अपनी आने वाली पीढ़ी को वे आम लौटा सकूॅं, जिन्हें मैंने अपनी पिछली पीढ़ी से उधार लिया है।“
इतना कहकर वह वृद्ध फिर से उस पौधे को लगाने में जुट गया और राजा व सेनापति उस वृद्ध की अपनी मृत्यु से पहले दुनियाँ को फिर से कुछ लौटाने की भावना से काफी प्रभावित हुए।
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