I want an essay in hindi on vasudeva kutumbakam. Can someone pls help me in writing it??
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वसुधैव कुटुम्बकम --- डा० श्रीमती तारा सिंह
ईश्वर प्रदत्त इस दुनिया में जितने भी प्राणी तैर रहे हैं,उन सबों में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो स्वतंत्र जनमता है । अन्य प्राणियों में ऐसा नहीं होता । वे दुनिया में अकेले नहीं आते, बल्कि हमशकल वाले और भी परिजन उनके साथ जनमते हैं । बावजूद, ये समाज से जुड़कर नहीं रह पाते । ज्यों-ज्यों ये बड़े होते हैं, त्यों-त्यों एक दूसरे से अलग होते चले जाते हैं । लेकिन स्वतंत्र जनम वाला मनुष्य, ज्यों-ज्यों बड़ा होता है, स्वत: ही समाज, परिवार और देश की जंजीरों से बंधता चला जाता है । लेकिन यह कहना कि मनुष्य का जीवन, बंदी जीवन है, बिल्कुल ही गलत होगा । बल्कि यह बंदी जीवन की यातना का बोध, मुक्ति की चेतना उत्पन्न करता है, जिससे कि समय के साथ वह संस्कारक होता चला जाता है । यही कारण है कि जब हम उदार दृष्टि से विचार करते हैं तब यह विश्व अपना परिवार लगने लगता है अर्थात----
” उदार चरितान्तु वसुधैव कुटुम्बकम “
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वसुधैव कुटुम्बकम पंक्ति कहती है कि यह पृथ्वी हमारे परिवार जैसी है। इसके माध्यम से मानव के अंदर प्यार तथा भाईचारे का प्रसार करने का प्रयास किया गया है। मानव ने इस सच को अनेदखा कर स्वयं को विभिन्न टुकड़ों में बाँट लिया है। हम मात्र स्वयं के माता-पिता और बच्चों को अपना परिवार मान बैठें और जीवनभर वहीं हमारा आधार रहते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि जब मानव सभ्यता का आरंभ हुआ था, तो वह एक ही परिवार से जुड़ा हुआ था। जब उस परिवार के सदस्य अलग-अलग स्थानों में जाकर बस गए, तब सीमा, क्षेत्र, राज्य, देश इत्यादि का विकास हुआ। हम सब हकीकत में एक ही परिवार के सदस्य हैं, जो सदियों पहले अलग-अलग हो गए थे। आखिर फिर यह मतभेद और भेदभाव क्यों? हमें इस पंक्ति के अनुसार से प्रेम और भाईचारे के साथ रहना चाहिए। सबकी सहायता करनी चाहिए।
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